योग्य हैं फिर भी SC/ST डॉक्टरों को एम्स में नहीं मिल रही रेगुलर जॉब, संसदीय पैनल ने दी रिपोर्ट

संसद की एक समिति ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में टीचर फैकल्टी मेंबर्स के 367 पद खाली होने का संज्ञान लिया है। समिति ने इन पदों को तीन महीने के भीतर भरे जाने की सिफारिश की है। भाजपा सांसद किरीट पी सोलंकी की अध्यक्षता वाली समिति की मंगलवार को लोकसभा में रिपोर्ट प्रस्तुत की।

 
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नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के डॉक्टरों की रेगुलर नियुक्ति में भेदभाव को लेकर सवाल उठाया है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एम्स में एडहॉक आधार पर कई सालों तक काम करने वाले अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों को रेगुलर पोस्ट भरने के समय नहीं चुना गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रेगुलर नियुक्ति के समय कहा गया कि कोई भी उम्मीदवार प्रवेश के लिए उपयुक्त और योग्य नहीं पाया गया था। भाजपा सांसद किरीट पी सोलंकी की अध्यक्षता वाली समिति की मंगलवार को लोकसभा में रिपोर्ट प्रस्तुत की।

275 सहायक प्रोफेसर, 92 प्रोफेसर के पद खाली
लोकसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्स में कुल 1,111 संकाय पदों में से, 275 सहायक प्रोफेसर और 92 प्रोफेसर के पद रिक्त हैं। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया कि उचित पात्रता, योग्यता होने के बावजूद, पूरी तरह से अनुभवी एससी / एसटी उम्मीदवारों को देश के प्रमुख मेडिकल कॉलेज में प्रारंभिक चरण में भी फैकल्टी मेंबर्स के रूप में शामिल करने की अनुमति नहीं है। समिति ने मांग की है कि सभी मौजूदा रिक्त संकाय पदों को अगले तीन महीनों के भीतर भरा जाना चाहिए। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से उसी समय सीमा के भीतर एक कार्य योजना मांगी गई है।

6 महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रखा जाए पद
पैनल ने कहा कि भविष्य में सभी मौजूदा रिक्त पदों को भरने के बाद, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किसी भी संकाय की सीट को किसी भी परिस्थिति में छह महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रखा जाएगा। समिति ने रिपोर्ट में कहा, ‘सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण नहीं दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को अभूतपूर्व और अनुचित रूप से वंचित रखा जाता है तथा सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में अनारक्षित संकाय सदस्यों का एकाधिकार होता है।’’ उसने कहा, ‘‘आरक्षण नीति को छात्र और संकाय स्तर पर सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि वहां भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संकाय सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित हो।’

SC/ST डॉक्टरों को विदेश में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए मेकेनिज्म
समिति ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के डॉक्टरों एवं छात्रों को विदेश में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भेजने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित किया जाए ताकि सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व स्पष्ट रूप से देखा जा सके। समूह ग के पदों/निचले पदों को नियमित रूप से भरे जाने के बदले आउटसोर्स/संविदा पर रखे जाने को गरीबों को रोजी-रोटी से वंचित करने के समान बताते हुए समिति ने कहा कि सफाईकर्मी, चालक, डाटा ऑपरेटर आदि जैसे गैर-मुख्य क्षेत्रों में भी संविदात्मक/आउटसोर्स नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। उसने कहा कि संविदा नियुक्ति की नीति इन ठेकेदारों के माध्यम से दलित वर्गों के शोषण की गुंजाइश पैदा करती है। इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि सरकार किसी भी वर्ग/श्रेणी के वंचितों के इस तरह के शोषण को रोकने के लिए एक तंत्र विकसित करे। साथ ही इस संबंध में उठाए गए सुधारात्मक कदमों की जानकारी समिति को दी जाए।

रिजर्वेशन का निर्धारित प्रतिशत बनाए रखें
समिति ने कहा कि विभिन्न एम्स में MBBS और अन्य स्नातक-स्तर तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दाखिले का समग्र प्रतिशत अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत के अपेक्षित स्तर से बहुत कम है। उसने कहा, ‘‘इसलिए, समिति पुरजोर सिफारिश करती है कि एम्स को सभी पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण के निर्धारित प्रतिशत को सख्ती से बनाए रखना चाहिए। समिति इस तथ्य पर न्याय संगत रूप से पुन: जोर देती है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए और अधिक अवसर सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रतिशत बनाए रखना अनिवार्य है।