बिहार के मिथिला मखाना (Mithila Makhana of Bihar) को भारत सरकार ने ज्योग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग (Geographical Indication Tag, GI Tag) दिया है. GI Tag मिलने से किसानों को अधिक लाभ होगा और मखाना उत्पाद से कमाई आसान होगी. सुपरफ़ूड मखाने का उत्पाद आसान नहीं है, पूरी प्रक्रिया में बहुत समय और मेहनत लगती है.
लंबे समय से हो रही थी GI Tag की मांग
मिथिलांचल के लोग लंबे समय से मखाना को GI Tag देने की मांग कर रहे थे. ये GI Tag मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ को दिया गया है. प्रभात खबर की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार सरकार ने मिथिला रोहू मछली को भी GI Tag दिलाने के लिए केंद्र से संपर्क करने का निर्णय लिया है. राज्य सरकार ने मिथिला रोहू मछली पर शोध कर रिपोर्ट बनाने के लिए दो विशेषज्ञों की नियुक्ति भी कर दी है. इससे पहले बिहार के कतरनी चावल, जरदालु आम, शाही लीची और मगही पानी को भी GI Tag दिया जा चुका है.
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि विभाग और बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 5 साल तक परिश्रम करके मखाना के ऐतिहासिक दस्तावेज़ तैयार किए. इन दस्तावेज़ों के साथ GI Tag का आवेदन भारत सरकार को भेजा गया और आखिरकार भारत सरकार ने मिथिला मखाना को GI Tag दिया.
मिथिला मखाना के बारे में जानिए
मिथिला मखाना को मिथिलांचल में मखान के नाम से भी जाना जाता है. इसका बोटैनिकल नेम Euryale Ferox Salisb है. बिहार के मिथिलांचल और नेपाल के कुछ इलाकों में इस ‘स्पेशल एक्वैटिक फ़ॉक्स नट्स’ की खेती होती है. मखाना सूपरफ़ूड है और इसमें मैगनिश्यम, कैल्शियम, फ़ॉसफ़ोरस और आयरन जैसे कई माइक्रोन्यूट्रीएंट्स पाए जाते हैं.
कैसे बनता है मखाना ?
बिहार के कृषि विभाग द्वारा राज्य में मखाना उत्पाद बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं. अभी बिहार के इन नौ ज़िलों- दरभंगा, मधुबनी, कटिहार, पुर्णिया सहरसा, सुपौल, किशनगंज, मधेपुरा और अररिया में मखाने की खेती होती है. इन ज़िलों के अतिरिक्त पश्चिमी चंपारण और सीतामढ़ी में भी मखाने की खेती को बढ़ावा देने की योजना है.
बिहार करता है भारत का 90% मखाना उत्पादन
केंद्र मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर मिथिला मखाना को GI Tag मिलने की बात कही. GI Tag मिलने के बाद मखाना उत्पादकों को अपने उत्पाद के लिए पहले से बेहतर दाम मिलेंगे. मिथिला मखाना न सिर्फ़ अपने पोषक तत्वों बल्कि अपने लज़ीज़ स्वाद के लिए भी मशहूर है. बता दें कि भारत के 90% मखाने की खेती बिहार में ही होती है और विदेशी बाज़ारों में भी इसकी धूम है.
अगर किसी उत्पाद को GI Tag मिल जाता है तो कोई अन्य व्यक्ति या कंपनी वो उत्पाद उसी नाम से नहीं बेच सकती. ये टैग 10 सालों के लिए वैलिड होता है और इसे रिन्यू करवाया जा सकता है. GI Tag मिलने से उत्पाद को कानूनी तौर पर सुरक्षा भी मिल जाती है. GI Tag मिलने से गुणवत्ता की भी गारंटी मिल जाती है.