शाहपुर सीट पर कांग्रेस में एक आनार सौ बीमार जैसा हाल! अब कर्ण परमार ने ठोंकी दावेदारी

धर्मशाला. हिमाचल प्रदेश की सियासी राजधानी कहे जाने वाले कांगड़ा में ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनावों की घड़ी नजदीक आती जा रही है, त्यों-त्यों हर सियासी दलों के बीच में चुनाव लड़ने वाले दावेदारों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है.

कर्ण परमार ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शाहपुर सीट पर कांग्रेस की तरफ से दावेदारी ठोंक दी. (फोटो- News18)

कुछ तो गुपचुप तरीके से रणनीति के तहत गांव-गांव, घर घर, गली मौहल्लों में जाकर अभी से अपना प्रचार-प्रसार शुरू कर चुके हैं तो कई सामने आकर ताल ठोक रहे हैं. इसी कड़ी में शाहपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी में एक आनार सौ बीमार जैसी स्थिति बनती जा रही है.

कांग्रेस पार्टी के पुराने सिपाही और मनकोटिया गुट के खासमखास पूर्व में ब्लॉक समिती के चेयरमैन रह चुके कर्ण परमार ने तो शनिवार को प्रेस वार्ता करके कांग्रेस पार्टी से टिकट की अपील करके सियासी मैदान में अपनी दावेदारी की ताल ठोक दी है. हालांकि इससे पहले भी कर्ण परमार शाहपुर विधानसभा में बाप-दादाओं के वक्त से खानदानी और वरिष्ठ कांग्रेसी होने के नाते अपने लिए इस क्षेत्र से टिकट की पैरवी करते और करवाते रहे हैं.

कभी वीरभद्र सिंह के नजदीकी माने जाने वाले कर्ण परमार का सियासी झुकाव विजय सिंह मनकोटिया की ओर हो गया, इतना ही नहीं परमार पूर्व में कौल सिंह गुट के भी खास माने जाते रहे हैं और अबकी बार मनकोटिया का चुनाव लड़ने की मनसा स्पष्ट न होने के कारण परमार ने साफ तौर पर अपनी मनसा जाहिर करते हुए दावा ठोक दिया है कि शाहपुर में बीते पंद्रह सालों से कांग्रेस पार्टी के लिए पड़े सूखे वही हरियाली में तब्दील कर सकते हैं.

काबिले गौर है कि कर्ण परमार तत्कालीन चम्बा रियासत की रेहलू जागीर में जैलदार रह चुके महालो राम और आजादी के बाद अपने क्षेत्र के नंबरदार रहे प्यार सिंह परमार के बेटे हैं. कर्ण परमार के प्रोफेशनल करियर की बात करें तो इन्होंने साल 1980 में हिमाचल प्रदेश पुलिस में सिपाही के तौर पर अपनी सेवाएं दीं. मगर कांग्रेस पार्टी में एक्टिव सदस्य होने के नाते सेवाकाल के महज पांच साल के बाद ही त्यागपत्र देकर चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय हो गए. इस दौरान साल 1991 में ग्राम पंचायत रेहलू के प्रधान पद का चुनाव जीतकर प्रधान बने.

इसी तरह से साल 2000 से 2005, 2010 से 2015 तक पंचायत के प्रधान बनते रहे. बीच-बीच में पंचायत समिती के सदस्य के तौर पर भी चुने जाते रहे. इतना ही नहीं ब्लॉक कमेटी रैत में निर्वाचित चेयरमैन भी रहे. इन्हीं ओहदों और अपनी सेवाओं के कार्यकाल को गिनाते हुए कर्ण परमार ने सियासी सरजमीं पर ताल ठोकते हुए कांग्रेस से अपने लिए टिकट की मांग करके शाहपुर के मौजूदा कांग्रेस संगठन में भी खलबली मचा दी है.