सिनेमा ने नहीं छोड़ा प्रेम चंद का साहित्य, उत्थान फाउंडेशन के वेबिनार में साहित्यकारों ने रखे विचार

प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में रविवार को उत्थान फाउंडेशन द्वार नई दिल्ली की ओर से अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। सह-आयोजक तरुण घवाना ने बताया कि वेबिनार में ‘प्रेम चंद साहित्य के विविध आयाम और व्यापकता’ विषय पर चर्चा हुई।

खास बात यह थी कि प्रवासी भारतीयों के अलावा विदेशी गैर हिंदी मेहमानों ने भी प्रेमचंद पर अपने वक्तव्य दिए। भारत के साथ 11 देशों के वक्ताओं ने इस वेबिनार में भाग लिया। उत्थान फाउंडेशन की संचालिका अरुणा घवाना ने पे्रम चंद और सिनेमा पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि प्रेम चंद ने सिनेमा को तो छोड़ दिया था, पर सिनेमा ने प्रेम चंद के साहित्य को कभी नहीं छोड़ा।

इस वेबिनार की मुख्य अतिथि कनाडा से डा. स्नेह ठाकुर ने ‘नमक का दारोगा’ कहानी का जिक्र करते हुए चरित्र चित्रण किया। नीदरलैंड्स से जाने माने भाषाविद प्रो. मोहनकांत गौतम अतिथि वक्ता ने कहा कि प्रेमचंद एक समाज वैज्ञानिक थे। भारत को समझने के लिए प्रेमचंद के साहित्य को समझना जरूरी है।

वहीं यूके से साहित्यकार एवं संपादिका शैल अग्रवाल, यूएसए से अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह की संस्थापिका डा. मीरा सिंह, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार डा. बलराम पंडित, श्रीलंका से हिंदी शिक्षिका सुभाषिनी रत्नायके, सूरीनाम से हिंदी शिक्षिका लैला लालाराम, पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. शिवकुमार सिंह, उज्बेकिस्तान से डा. नीलूफर खोजाएवा, पोलैंड से डा. संतोष कुमार आदि ने अपने विचार साझा किए।