सुनील वशिष्ट: कुरियर बांटा, पिज्जा डिलीवर किया और अब केक का बिज़नेस स्टार्ट कर बन गए करोड़पति

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जीवन में कभी ना कभी ऐसा समय ज़रूर आता है, जब लगता है कि सभी रास्ते अब बंद हैं. ऐसी स्थिति में अमूमन लोग थक-हार कर बैठ जाते हैं और किस्मत को कोसते हुए अपना बाकी जीवन निकाल देते हैं. वहीं, कुछ लोग हर मुसीबत का सामना मज़बूती से करते हैं और अपनी किस्मत खु़द लिखते हैं.

दिल्ली में पैदा हुए सुनील वशिष्ट की कहानी कुछ ऐसी ही है. कभी कुरियर बांटने और पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय जैसी नौकरी करने वाला यह इंसान आज करोड़पति है और युवाओं व महिलाओं को रोज़गार के अवसर दे रहा है. अपनी थोड़ी सी हिम्मत और बहुत सी मेहनत के दम पर सुनील आज सफलता की बुलंदी पर हैं.

ग़रीबी में बीता बचपन, 10वीं के बाद मुश्किल हुई राह

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इंडिया टाइम्स हिन्दी से खास बातचीत में सुनील ने अपने पूरे सफ़र के बारे में बात की और अपने पुराने दिनों को याद किया. सुनील बताते हैं कि उनका जन्म एक आम परिवार में हुआ. जैसे-तैसे परिवार ने उन्हें दिल्ली के एक सरकारी स्कूल से 10वीं तक की शिक्षा दिलाई. परिवार आगे की पढ़ाई के लिए फीस देने में सक्षम नहीं था, इसलिए सुनील ने पढ़ाई के साथ छोटी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने घर-घर कुरियर बांटने जैसा काम किया.

सुनील को जो भी काम मिला, उन्होंने किया. दिनभर में वो करीब 200-300 रुपए कमा लेते थे. यह उनके लिए बहुत नहीं था. मगर जीवन की गाड़ी चल रही थी. इसी क्रम में 1998 वो डोमिनोज़ पिज्जा के साथ जुड़ गए. यहां उन्हें पिज्जा डिलीवरी बॉय का काम मिला. यह काम सुनील को बुरी तरह थका देता था. मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

जब लगा कि सभी रास्ते बंद हैं, सब ख़त्म

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मेहनत रंग लाई और सुनील प्रमोट होते रहे. सब ठीक चल रहा था, जीवन पटरी पर था. तभी हालात ऐसे बने कि उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. यह एक ऐसा समय था, जब सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें. उन्हें सभी रास्ते बंद नज़र आ रहे थे. सुनील चाहते तो दूसरी नौकरी खोज सकते थे.

मगर उनके दिमाग में कुछ और चल रहा था. उन्होंने तय किया कि वो अब कुछ भी करेंगे, मगर नौकरी नहीं करेंगे. जल्दी ही उन्होंने अपनी बचत के पैसों से सड़क किनारे खाने की दुकान खोल दी. अटूट मेहनत के बाद उनका यह भोजनालय नहीं चला. इस बड़ी बिफलता के बाद सुनील ने केक का काम शुरू करने का प्लान किया. इसके लिए उन्हें रकम की ज़रूरत थी, जोकि उनके पास नहीं थी. ऐसे में सुनील ने अपने कुछ दोस्तों की मदद ली.

अंतत: सुनील ने करीब 60 हजार रुपए की मदद से ‘फ्लाइंग केक्स’ नाम से अपनी दुकान शुरू कर दी. अपनी केक की क्वॉलिटी से सुनील ने सभी को प्रभावित किया. जल्द ही उन्हें निजी कंपनियों से केक के आर्डर मिलने लगे. बस यही से सुनील के दिन बदलने लगे. देखते ही देखते उनके केक की मांग बढ़ गई.

डिलीवरी, स्वाद और ताजेपन ने बना दिया ब्रांड

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लोगों तक ताज़ा केक पहुंच सके. इसके लिए सुनील ने सुनिश्चित किया कि केक ऑर्डर पर ही तैयार होगा. कम दाम, समय से डिलिवरी, स्वाद और ताजेपन ने सुनील को एक ब्रांड बना दिया. उन्होंने एक के बाद एक नई शाखाएं खोल दी. वर्तमान समय में सुनील दिल्ली के अलावा नोएडा, बैंगलोर, पुणे और बिहार जैसे शहरों में अपनी शाखाएं खोल चुके हैं. उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर करोड़ों का है.

कोरोना काल ने सुनील के बिज़नेस पर कितना असर डाला?

इस सवाल के जवाब में सुनील कहते हैं कि निश्चित तौर पर इसका असर उनके व्यापार पर पड़ा है. उनके अधिकतर ऑर्डर निजी कंपनियों से आते हैं. अब चूंकि कोरोना काल में अधिकतर कंपनियां बंद हैं, ऐसे में उनके केक की मांग कम है. ऐसी स्थिति में सुनील ने अब अपने बिज़नेस में केक के साथ-साथ पिज्जा, बर्गर जैसे फ़ास्ट फ़ूड उत्पादों की एक नई श्रृंखला शुरू की है, साथ ही अपने आउटलेट ऐसी जगह खोल रहे हैं, जहां लोग रहते हैं और इनकी मांग है.

कोरोना काल में कायम रखा अपना आत्मविश्वास

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सुनील बताते हैं लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने साथ गृहणियों को भी जोड़ने का काम किया. उनके मुताबिक महिलाएं केक इत्यादि बनाने का नायाब हुनर रखती हैं. ऐसे में वो उनके बिज़नेस को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं. साथ ही बदले में महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर भी बनते हैं.  सुनील आगे आने वाले वक्त में देश भर में अपनी शाखाएं खोलना चाहते हैं, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक उनके केक का स्वाद पहुंच सके.

आज सुनील जिस मुकाम पर हैं, उसका श्रेय वो अपने मां-बाप को देते हैं. सुनील कहते हैं कि अगर मां-बाप ने 10वीं के बाद न कहा होता कि अब तुम्हें अपना आगे का देखना होगा, तो वो छोटी सी उम्र में कभी काम नहीं करते. उन्हें मेहनत का मोल कभी नहीं मालूम होता. अभी उन्हें बहुत मेहनत करनी है. एक खुला आसमान बाहर उनका इंतज़ार कर रहा है, जिसे वो ज़रूर छूना चाहेंगे. इसके लिए फिर चाहे उन्हें कितनी ही चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़े.

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सुनील के जज्बे को सलाम! उनकी कहानी बताती है कि एक गरीब की आंखें सिर्फ़ सपने ही नहीं देख सकती, बल्कि उन्हें पूरा भी कर सकती हैं. इसके लिए इंसान को बस थोड़ी हिम्मत और बहुत सी मेहनत करनी पड़ती है.