सेब में स्कैब, असामयिक पतझड़ व अल्टरनेरिया धब्बा रोग के प्रबंधन के लिए सिफ़ारिशें
मानसून के आने से वातावरण में नमी की अधिकता हो जाती है जिसके उपरांत पौधों में रोगों का प्रकोप भी दिखाई देने लगता है। सेब में स्कैब की समस्या जो लगभग समाप्त समझी
जा रही थी पिछले वर्ष से हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रकोप दिखाई दिया है। इस वर्ष स्कैब रोग की समस्या प्रदेश के कुल्लू, मंडी और शिमला के कुछ क्षेत्रों में आ रही है।
इसलिय समय रहते रोग की बढ़वार को रोकने के लिए उपाय करना आवश्यक है। डॉ वाईएस परमार औदयानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने सेब बागवानों को इन रोगों के
प्रबंधन के लिए सलाह दी है। सेब के स्कैब रोग, असामयिक पतझड़ व अल्टरनेरिया धब्बा रोग को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, निम्नलिखित सिफ़ारिशें का पालन किया जाना
चाहिए।
ऊंची एवं मध्य पहाड़ियों वाले क्षेत्र
- प्रोपीनेब के स्प्रे @ 0.3% (600 ग्राम / 200 लीटर पानी) या डोडिन @ 0.075% (150 ग्राम / 200 लीटर पानी) या मेटिरम 55% + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% WG @ 0.150% (300 ग्राम /200 लीटर पानी) या टेबुकोनाज़ोल 8% + कप्तान 32% SC @ (500ml/ 200 लीटर पानी) ऐप्पल स्कैब के प्रबंधन के लिए सिफारिश की जाती है।
- मेटिरम 55% + पाइरक्लोस्ट्रॉबिन 5% WG @ 0.150% (300 ग्राम / 200 लीटर पानी) या फलक्सापाइरोकसाड + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 500 ग्राम / लीटर SC @ 0.01% (20ml / 200लीटर) का असामयिक पतझड़ व अल्टरनेरिया धब्बा रोग के प्रबंधन के लिए अनुशंसित हैं।
निम्न ऊंचाई वाले क्षेत्र
- स्कैब के प्रबंधन के लिए प्रोपीनेब @ 0.3% (600 ग्राम/200 लीटर पानी) के स्प्रे की सलाह दी जाती है, जबकि समय से पहले पत्ती गिरने के प्रबंधन के लिए टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% WG @ 0.04% (80 ग्राम/ 200 लीटर पानी) की सिफारिश की जाती है।
- कटाई से पूर्व (फसल लेने से 20-25 दिन पहले), स्कैब और अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट के प्रबंधन के लिए मेटिरम 55% + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% WG @ 0.1% (200 ग्राम/200 लीटर पानी) के स्प्रे की सिफारिश की जाती है।
विश्वविद्यालय ने किसानों को सलाह दी है कि वे विश्वविद्यालय और बागवानी विभाग द्वारा अनुशंसित स्प्रे शेड्यूल का सख्ती से पालन करें और स्प्रे करते वक़्त सभी एहतियात बरते।
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने बताया की विश्वविद्यालय इस पूरे मामले में सजग है और यह सुनिश्चित किया गया है कि जिन क्षेत्रों से इस तरह की सूचनाएँ मिल
रही है वहाँ के कृषि विज्ञान केन्द्रों, क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों और विभाग में कार्यरत वैज्ञानिकों को बागवानों की समस्याओं का निदान करने के निर्देश दिये जा चुके है। जिन क्षेत्रों में जरूरत
पड़ रही है, विवि के वैज्ञानिक बगीचों का दौरा भी कर रहे है और वैज्ञानिक परामर्श भी दे रहें है। विश्वविद्यालय इस स्थिति की तरफ काफी सतर्क है ताकि बागवानों को नुकसान न
उठाना पड़े।
क्या है स्कैब रोग
लक्षण: यह रोग वेंचूरिया इनैक्वैलिस नामक फफूँद द्वारा उत्पन्न होता है। इस रोग का आक्रमण सर्वप्रथम सेब की कोमल पतियों पर होता है। मार्च-अप्रैल में इन पत्तियों की निचली सतह
पर हल्के जैतूनी हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में भूरे तथा काले हो जाते हैं। बाद में पत्तों की ऊपरी सतह पर भी ये धब्बे बन जाते हैं जो अक्सर मखमली भूरे से काले रंग वाले
तथा गोलाकार होते है। कभी-कभी संक्रमित पत्ते मखमली काले रंग से ढक जाते हैं जिसे शीट स्कैब कहते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां समय से पूर्व (गर्मियों के मध्य में ही) पीली पड़ जाती है।
इस रोग के धब्बे फलों पर भी प्रकट होते हैं। बसंत ऋतु के आरंभ में ये धब्बे फलों के निचले सिरे यानि 'पुशकोश अंत' पर पाये जाते है जो प्रयः गोलाकार तथा भूरे से काले रंग के होते हैं।
अधिक संक्रमण होने पर फल विकृत हो जाते हैं, तथा उनमें दरारें पड़ जाती है।
स्कैब की फफूँद अक्तूबर-नवम्बर माह में पतझड़ होने के बाद रोगग्रस्त पत्तियों पर पिन के सिरे से भी छोटे 'सूडोथिसिया' के रूप में जीवित रहती है। मार्च- अप्रैल में ये सूडोथिसिया
परिपक्व होने लगते हैं व वर्षा की बौछारों द्वारा इनमें से असंख्य बीजाणु बाहर निकलकर नई पत्तियों व फलों की पंखुड़ियों पर पहुँचकर स्कैब के जैतुनी काले धब्बे 9-17 दिन में पैदा
करते हैं। धब्बों में उबरने के बाद इनमें भारी मात्रा में कोनिडिया (फफूंद के बीजाणु) फल तुड़ान से पूर्व तक अपने स्थान से छूट कर दूसरी स्वस्थ पत्तियों व फलों पर पहुँचकर स्कैब के
नए धब्बे पैदा करतें है।