32 साल पहले ली थी ₹100 रिश्वत, 82 साल के आरोपी को अब मिली 1 साल जेल और 15,000 जुर्माने की सजा

आंकड़ों की मानें तो देश के न्यायालयों में लंबित पड़े मामलों की संख्या लगभग 3.5 करोड़ से अधिक पहुंच गई है. बहुत से लोग ऐसे हैं जो लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा में हैं, वहीं कई मामले ऐसे हैं जिन पर फैसला ना आने के कारण लोग बिना सजा पाए सालों से जेलों में बंद हैं. हाल फिलहाल में भी कोर्ट फैसले में देरी का एक मामला सामने आया. 32 साल बाद आए इस फैसले के बारे में जानकार आप हैरान रह जाएंगे.

32 साल पुराना था मामला

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दरअसल, लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने 32 साल बाद एक मामले पर अपना फैसला सुनाया है. ये मामला रिश्वत लेने का था. 32 साल पहले एक शख्स पर 100 रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगा था. अब 82 वर्ष के हो चुके इस आरोपी को अदालत ने अपना फैसला सुनाया है. ये आरोपी सेवानिवृत्त रेलवे लिपिक है, जिसे बृहस्पतिवार को एक साल की सजा सुनाई गई है.

अब मिली सजा

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ये फैसला विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश अजय विक्रम सिंह ने सुनाया है. फैसला सुनाते समय न्यायाधीश ने अभियुक्त की वृद्धावस्था को देखते हुए भी कोई रियायत नहीं दी. उनका कहना था कि अगर इस मामले में आरोपी को रियायत दी जाती है तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा. अदालत ने सेवानिवृत्त रेलवे लिपिक को एक साल की सजा के साथ 15 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया.

100 रुपये ली थी रिश्वत

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मामले पर फैसला आने से पहले अभियुक्त राम नारायण वर्मा ने अदालत से दरख्वास्त की थी कि वह 32 साल पहले 100 रुपये की रिश्वत लेने के मामले में दो दिन जेल में काट चुका है. बचाव पक्ष ने अदालत से आग्रह किया था कि वह सजा को राम नारायण वर्मा द्वारा पूर्व में जेल में बिताए गए दिनों तक सीमित कर दे ताकि उसे इस उम्र में जेल न जाना पड़े. अदालत ने अभियुक्त की अर्जी नामंजूर कर दी और कहा कि दो दिन की सजा इस मामले में पर्याप्त नहीं है. इस मामले में न्याय होना जरूरी है, जिस वजह से इस जुर्म के लिए कम से कम एक साल की सजा काटनी होगी.

ये था पूरा मामला

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1991 में उत्तर रेलवे के सेवानिवृत्त लोको ड्राइवर रामकुमार तिवारी ने सीबीआई में एक मुकदमा दर्ज कराते हुए ये आरोप लगाया था कि उसकी पेंशन की गणना करने के लिए उसका चिकित्सीय परीक्षण जरूरी था. इसके लिए उस समय रेलवे लिपिक के पद पर तैनात रहे राम नारायण वर्मा ने उससे 150 रुपए की रिश्वत मांगी थी. बाद में मामला 100 रुपये पर तय हुआ. सीबीआई ने इस मामले में राम नारायण वर्मा को रंगे हाथ गिरफ्तार किया था. सीबीआई ने वर्मा के खिलाफ जांच की और इसके बाद आरोप पत्र दाखिल किया था.