10 डिशेज़ जो देखने-सुनने में भारतीय हैं, हम भारतीयों के रोज़मर्रा के खाने का अहम हिस्सा हैं, लेकिन भारतीय नहीं हैं

Dal chawal

एक थके-हारे, टेंशन से भरे दिन के आख़िर में रोम-रोम को ख़ुश कर सकता है, गरम-गरम दाल-चावल और उस पर हल्की सी देसी घी. साथ में आम का अचार हो तो भाई अगले 2 दिन का स्ट्रेस रफ़्फ़ू चक्कर! आप कितने भी पिज़्जे़-बर्गर, पास्ता खा लें, जो सुकून घर के दाल-चावल में मिलता है वो कहीं नहीं. हाथ से खाने से कई लोगों को गुरेज़ है लेकिन हाथ से घर की दाल-चावल का एक निवाला, जीभ पर रखिए, तुरंत सिरदर्द, थकान सब ग़ायब होते दिखेंगे!

अब पढ़ने वाले सोच रहे होंगे, आज दाल-चावल पर इतनी गूढ़ बातें, व्हाई ब्रो! तो माई फ़्रेंड दाल-चावल कितनी देसी लगती है, नहीं? चौंकाने वाली बात ये है कि दाल-चावल ही नहीं, राजमा, समोसा-जलेबी (मुंह में पानी आ गया हो तो माफ़ी, तुरंत ऑर्डर करके खाइए) जैसी कई खाने-पीने की चीज़ें हैं जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा है लेकिन, लेकिन वो भारतीय नहीं हैं! (बैकग्राउंड में सीरियल की धुन बजती हुई)

आज हम बात करेंगे कुछ ऐसी डिशेज़ की जो देखने-सुनने में भारतीय लगती हैं लेकिन भारत में उनका जन्म नहीं हुआ. खाने-पीने के शौक़ीनों को ये नाम सुनकर हल्क सा झटका लग सकता है!

1. समोसा

Samosa The Times of India

कहीं जलेबी के साथ, कहीं चाय के साथ, कहीं छोले मिलाकर, तो कहीं चाट बनाकर. कहीं तो ऊपर से दही और हरी, लाल चटनी डालकर. कहीं ये समोसा बन जाता है तो कहीं सिंघाड़ा, तो कहीं कुछ और नाम. हमारे सुबह और शाम के चाय का साथी है समोसा. इतना गहरा याराना है न भारतीय और समोसे का लेकिन समोसे का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ. ये मध्य एशिया से सफ़र करके भारत पहुंचा. शुक्र है इन घुमंतू व्यापारियों का कि ये दिव्य खाने की वस्तु, इनके साथ घूमते-घूमते मध्य एशिया से उत्तरी अफ़्रीका, पूर्वी अफ़्रीका और दक्षिण एशिया तक पहुंच गई. दिल्ली सल्तनत के शासनकाल में मिडिल ईस्ट के खानसामों ने हिन्दुस्तानियों को समोसा चखाया और ये यहीं का होकर रह गया.

2. जलेबी

JalebiTimesnownews

समोसा, पोहा, रबड़ी का साथी, जलेबी. भारत में कहीं-कहीं जलेबी और दूध ही नाश्ता है. कुछ लोग जलेबी के साथ दही भी पसंद करते हैं और ये पत्तल में मौजूद स्वर्ग का एहसास भी भारत में नहीं जन्मा. मध्य भारत से भारत तक पहुंची, जलेबी. वहां आज भी उसे ‘ज़ुलबिया’ (Zulbia) कहते हैं. इस मिठाई को उत्तर और पूर्व अफ़्रिकी देशों में भी खूब पसंद किया जाता है.

3. गुलाब जामुन

gulab jamunFun Food Frolic

गुलाब जामुन की जगह कोई नहीं ले सकता, गाजर का हलवा भी नहीं! गुलाब जामुन एक ऐसा विषय है जिस पर शास्त्रार्थ तक किया जा सकता है, दिव्य है ये दिव्य! दिल पर पत्थर रखकर ये फ़ैक्ट ज़ाहिर कर रहे हैं कि गुलाब जामुन का भी जन्म भारत में नही, फ़ारस की खाड़ी में हुआ था. ये फ़ारसी शब्द, गोल (फूल) और आब (पानी) से बना है. इस मिठाई का फ़ारसी नाम, ‘लुक़मत अल क़ादी’ (Luqmat al Qadi) था. इसके बनाने की विधि कुछ ऐसी थी- खोए के छोटे-छोटे गोलों को शहद में डुबाया जाता और उस पर चीनी छिड़की जाती.

4. दाल चावल

Dal Chawal Medium

भारतीय घरों का शायद इससे कॉमन डिश कोई नहीं. चाय के बाद अगर किसी व्यंजन को भारतीय घरों में ऊंचा ओहदा प्राप्त है तो वो है दाल और चावल को. दोपहर के खाने में दाल और चावल बनते ही बनते हैं, बाकी कुछ और हो या न हो. दाल चावल भी भारत की पैदाइश नहीं है, कहा जाता है कि पड़ोसी देश नेपाल ने हमें दाल और चावल खाना सिखाया. नेपाल के बाशिंदों ने सबसे पहले दाल और चावल को साथ में मिलाकर खाया था. ये कॉम्बिनेशन इतना हिट हो गया कि भारतीय घरों का सदस्य बन गया.

5. नान

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या अल्लाह तो जान निकाल दे, या तो नान निकाल दे कहावत फ़ूडीज़ ने सुनी ही होगी. चाहे कितना भी कोशिश कर लो, थाली में अगर नान हो तो ना चाहते हुए भी ज़्यादा नहीं, महा ज़्यादा खाना हो ही जाता है. हम हिन्दुस्तानियों के लिए तंदूर का मतलब ही है नान और ये नान भी फ़ारसियों की ही देन है. पर्शिया से नान भारत को मिला. गार्लिक नान, बटर नान, स्टफ़्ड नान जैसी कई वैराइटीज़ आज भारत में हैं लेकिन नान भी भारत में पैदा नहीं हुआ.

6. चिकन टिक्का मसाला

Chicken Tikka Masala Great British Chefs

पंजाबी खाने का नाम लिया जाए और चिकन टिक्का दिमाग़ में न आए, ऐसा हो सकता है क्या? स्टार्टर हो या समझ न आए कि क्या ऑर्डर करें, नॉन वेज खाने वाले चिकन टिक्का ही चुनते हैं, अफ़्गानी चिकन वगैरह बाद में ही आता है. चौंकने के लिए तैयार हो जाइए चिकन टिक्का भी भारतीय नहीं है. ग्लासगो, स्कॉटलैंड (Glasgow, Scotland) में एक शेफ़ ने एक कस्टमर के आग्रह पर ड्राई चिकन को टमाटर की ग्रैवी में बनाया था और इस तरह चिकन टिक्का का जन्म हुआ. ब्रिटिश कुज़ीन का हिस्सा है टिकन टिक्का मसाला.

7. फ़िल्टर कॉफ़ी

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दक्षिण भारतीय कुज़ीन का अभिन्न हिस्सा बन गया है फ़िल्टर कॉफ़ी. ग़ौरतलब है कि इस बेवेरेज की उत्पत्ति यमन में हुई, दक्षिण भारत में नहीं. कहते हैं भारतीय सूफ़ी संत बाबा बुदन मक्का गए थे और वो फ़िल्टर कॉफ़ी को यमन से भारत ले आए. सूफ़ी संत यमन से 7 कॉफ़ी बीन्स भारत लाए और फ़िल्टर कॉफ़ी को हम भारतीयों ने तुरंत अपना लिया.

8. बिरयानी

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आंखें मिच-मिचकर लिख रहे हैं, आपका दुख समझ सकते हैं. बिरयानी भी भारतीय नहीं है. कोलकाता की सड़कें हों, लखनऊ के नवाब की रसोई हो, बिरयानी एक ऐसी डिश है जिसका नाम सुनते ही सुकून सा आ जाता है. नहीं, हम उनमें से नहीं हैं जो वेज बिरयानी के एक्ज़िसटेन्स पर सवाल करें, वो भी स्वादिष्ट है भाई. भारत के हर राज्य की मशहूर डिश बिरयानी पर्शियन्स की ही देन है. फ़ारसी शब्द ‘बिरयान’ जिसका मतलब है (पकाने से पहले तलना) से बनी बिरयानी.

9. राजमा

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उत्तर पूर्वी खाने का अहम हिस्सा है राजमा चावल. उत्तर भारत के कुछ राज्यों के घरों में राजमा रोज़ बनता है. हॉस्टल्स के मेसवालों का भी पसंदीदा पकाऊ व्यंजन राजमा है, कुछ न मिला तो हफ़्ते में 3 बार भी खिला सकते हैं! राजमा जो हमारे प्लेट में परमनेंट सदस्य बन गया है, उसे पुर्तगाली भारत लाए थे. मेक्सिकन्स ने हमें राजमा को भिगोकर, उबालकर खाना सिखाया. हालांकि हमने ही राजमा में मसाले डाले और उसे आज का रूप दिया लेकिन ये भी बाहर से ही भारत में आया.

10. चाय

chaiThe Economic Times

दिल टूट रहा है ये लिखते हुए लेकिन 19वीं शताब्दी के शुरुआत में अंग्रेज़ों ने भारत में चाय की खेती शुरु की. चाय चीन की देन हैं, हां दूध, अदरक, शक्कर वाली चाय हम भारतीय ही पीते हैं लेकिन चीन में हज़ारों सालों से चाय को बतौर औषधी इस्तेमाल किया जा रहा है. 1830 में अंग्रेज़ों ने भारत में चाय उगाना शुरु किए, उन्हें डर था कि चाय पर चीन का एकछत्र राज हो जाएगा. एक लेख की मानें तो अंग्रेज़ों ने ही उत्तरपूर्वी राज्य के भारतीयों को चाय उगाना, प्रोसेस करना आदि सिखाया. ख़ैर, उन्होंने अपना बेनेफ़िट देखा लेकिन आज हमें लाख दुखों की एक दवा- अदरक वाली चाय मिल गई.

तो लेख से दुख, दर्द, पीड़ा हुई होगी, समझ सकते हैं. फिर भी कमेंट बॉक्स में अपनी राय बताइए.