गर्मी ने दस्तक दे दी है. इस बार अभी से रिकॉर्ड गर्मी पड़ी रही है. हीट वेब का असर अभी से दिखने लगा है. इन सबके बीच सबसे ज्यादां चिंता पानी की है. जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में देश के कई राज्य और राज्यों के कई शहर बुरी तरह से पानी की कमी का शिकार हुए हैं, उससे इस साल हालात कुछ बेहतर होती नहीं दिख रही है.
लेकिन, ऐसे वक्त में हम कुछ जल योद्धाओं की बात करते हैं, जिन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में भी हिम्मत नहीं हारी और सिर्फ अपना ही नहीं आस-पास के इलाके के लोगों की भी पानी की किल्लत को दूर किया.
भाई की मौत के बाद ऑटो को बना दिया ‘वाटर टैंक हट’
मोहम्मद आबाद रजास्थान के चूरू जिले के रहने वाले हैं. सुबह 6 बजे वह अपना यूनिक ऑटो रिक्शा निकालते हैं. यह ऑटो रिक्शा एक तरह से वाटर टैंक है. इसे लेकर वह शाम तक सुजानगढ़ के कई इलाकों में जाते हैं.
दूसरे ऑटो रिक्शा ड्राइवर की तरह वह अपने ऑटो में सवारी बैठाकर इधर-उधर नहीं जाते हैं. 48 साल के शख्स ने अपने ऑटो को दूसरों की मदद करने वाला एक संशाधन बना दिया है. उन्होंने अपने पूरे ऑटो रिक्शा को वाटर टैंक बना लिया है. यह बिल्कुल एक झोपड़ी नुमा है और इसके ऊपर उन्होंने लिखा है, ‘शुद्ध फिल्टर पानी.’ इसके बाद वह यह पानी पूरे इलाके में फ्री में पहुंचाते हैं.
आबाद दावा करते हैं कि वह रोज 3 हजार लोगों को अपने वाटर हट से पानी पिलाते हैं. शहर के सबसे ज्यादा आबादी वाले जगह पर वह 30 मिनट देते हैं. सबसे पहले वह सरकारी अस्पताल जाते हैं. फिर सरकारी दफ्तर और कोर्ट जाते हैं. इसके बाद वह सब्जी मार्केट होते हुए रेलवे और बस स्टेशन पहुंच जाते हैं.
एक एक्सीडेंट में उनके भाई की मौत हो गई. इसके बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने भाई की याद में परेशान लोगों की मदद करेंगे. अपनी बचत से 2 हजार प्रतिदिन वह खर्च करके एक आरओ प्लांट से 2 हजार लीटर ठंडा पानी खरीदते थे. फिर वह अपने ऑटो में ही स्टील के ग्लास लगवा दिए. वह सलाना 60 हजार रुपये खर्च करते हैं.
पुलिस वालों ने एक हफ़्ते में बना डाला मिनी वॉटर टैंक
तेलंगाना के कुमरम भीम असीफाबाद जिले में Pangidi नाम का एक छोटा सा गांव है. यहां आदिवासी समूह के लिए सरकार ने पानी की पाइपलाइन डाली. यह मिशन भागीरथ प्रोजेक्ट के तहत शुरू हुआ था. इसके बावजूद गांव वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि उनके पास पानी जमा करने लायक पानी का टैंक नहीं था और पानी हमेशा एक निश्चित समय पर ही आता था.
गांव में बिजली की कटौती भी होती रहती है है, जिसकी मतलब ये हुआ कि पानी भी बिजली रहते हुए ही भरा ही जा सकता था. अब हुआ ये कि गांव में पिछले 4-5 दिनों से बिजली नहीं आ रही थी. इससे गांववालों कोे पीने के पानी के भी लाले पड़ गए. गांव में रहने वाले 30 परिवारों को टैंकर और नदी का दूषित पानी पीना पड़ा.
इस दौरान, सब इंस्पेक्टर पी. रामाराव गांव के दौरे पर निकले. गांव वालों ने उन्हें पानी की समस्या के बारे में बताया. रामाराव तुरंत एक्शन में आये, उन्होंने उच्च अधिकारियों की सलाह के बाद एक हफ्ते के अंदर ही ग्रामीणों के लिए एक पानी की मिनी टंकी का निर्माण करवा दिया.
एक शख्स की मेहनत ने गांव में दूर की पानी की किल्लत
सुंदरलाल पिछले कई वर्षों से लगातार जल संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं. उन्होंने ‘सक्रिय’ ना संस्था की स्थापना की और इसके ज़रिये गांव देहात में न सिर्फ ज़मीनी सेहत पर काम कर रहे हैं बल्कि संस्था का हर सदस्य जल से जुड़ी परेशानी में अपना योगदान दे रहे हैं.
‘सक्रिय संस्था’ हरियाणा के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व झज्जर तथा उत्तरी राजस्थान के अलवर, चूरू व बीकानेर के रेतीले क्षेत्रों/गांवों में पानी की किल्लत को ख़त्म करने का काम किया है. डार्क जोन घोषित इन गांवों में वर्षा जल संचय के ज़रिये तस्वीर बदल डाली.
साल 1979 में स्थापित यह संस्था अब हरियाणा व राजस्थान के शुष्क रेतीले क्षेत्र के 1800 गांवों तक जल संरक्षण का संदेश दे रही है. गांवों में सैकड़ों परिवार रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का अपना रहे हैं. इसके अलावा टांका पद्धति को भी अपना रहे हैं. इसमें पानी को संचय करने के लिए लोग कुएं की तरह गहरा गड्ढा खोदकर उसे सीमेंट व क्रंक्रीट की मदद से पक्का कर लेते हैं. इसमें जमा पानी से अपने कार्य किये जाते हैं.
18 महीने में पहाड़ को काटकर महिलाओं ने बना दिया पानी का रास्ता
मध्यप्रदेश के छतरपुर की महिलाओं ने कमाल कर दिया है. अंगरोठा गांव की 100 से ज्यादा महिलाओं ने समाजसेवी संस्था के साथ मिलकर 107 मीटर लंबे पहाड़ को काटकर पानी के लिए रास्ता बनाया है. गांव में पहाड़ की वजह से पानी नहीं ठहर पाता था, लेकिन 18 महीने में महिलाओं ने कमाल कर दिया है.
बता दें कि सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत गांव में 10 साल पहले तालाब बनवाया था. यह 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था. लेकिन, समस्या वहां स्थित पहाड़ की वजह से हुई जिससे पानी ठहर नहीं पाता था. इससे महिलाओं को काफी दूर पानी लेने जाना पड़ता था.
हर साल तालाब सूख जाने से परेशान होकर महिलाओं ने 18 महीने पहले पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने का प्लान बनाया. इसके बाद 100 से ज्यादा महिलाएं एक समाजसेवी संस्था परमार्थ के साथ मिलकर कााम करने लगीं. उन्होंने 107 मीटर लंबा पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया.
गांव में पानी की कमी होने पर बुज़ुर्ग ने अकेले खोदे 16 तालाब
कामेगौड़ा 85 साल के हैं. लेकिन, उनकी मेहनत और ज़ज्बे को कई पीढ़ियों को याद रखेंगी. कर्नाटक के मंडावली में रहने वाले कामेगौड़ा पेशे से एक किसान हैं. उन्होंने पानी की कमी के बाद अपने गांव के लोगों के लिए अकेले ही तालाब खोदने का फ़ैसला किया और इस काम में जुट गए. आज के समय में वह अब तक 16 तालाब खोद चुके हैं.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुप्पा ने उनके कामों की सराहना करते हुए कर्नाटक स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ने कामेगौड़ा को राज्य सरकार की बसों की सभी श्रेणियों में आजीवन फ्री पास देने का फैसला किया. उन्हें “Man Of Pond” कहते हुए सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक शिवयोगी सी. कलासाद ने कहा, “उनकी सेवा को पहचानने के लिए, केएसआरटीसी बसों में यात्रा के लिए आजीवन मुफ्त बस पास जारी किया है.”
पीएम मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान कामेगौड़ा की तारीफ़ करते हुए उन्हें सलाम किया. उन्होंने कामेगौड़ा जैसे मेहनती उदाहरण को देश के सामने रखा.
85 की उम्र में भी कामेगौड़ा अपने जानवरों को घास चराने ले जाते है. गांव में पानी की भारी समस्या थी, तो उन्होंने जल संरक्षण के लिए इस खुदाई के काम के बारे सोचा और इस पर अकेले ही काम करना भी शुरू कर दिया. वह अब तक अपनी मेहनत से 16 तालाब खोद चुके हैं.
IRS अफ़सर ने 3 साल में 102 करोड़ लीटर पानी बचा सूखा खत्म कर दिया
महाराष्ट्र के धमनगाँव में क़र्ज़ में डूबे किसान ने आत्महत्या कर ली. स्थानीय नदियां सूख चुकी थी, बारिश नहीं थी और नतीजा हुआ कि साल 2016 में अपनी 40 एकड़ पर नुक्सान उठाने के बाद आत्महत्या कर ली.
मुंबई के इनकम टैक्स विभाग के जॉइंट कमिश्नर डॉ उज्जवल चवन ने जब किसानों की ये दुर्दशा देखी, तो हैरान रह गए. वो इसी गांव के हैं. उन्होंने इस दिशा में कुछ करने की ठानी और एक जल संरक्षण योजना लॉन्च की. इसके ज़रिये उन्होंने नदियों और भूजल की स्थिति को ठीक करने की ठानी. उन्होंने छोटे बाँध और जल संरक्षण के लिए खुदाई करवाई. आज उनके प्रयास से 22 करोड़ लीटर पानी जमा हो सकता है और सूखे की समस्या संपत हो गयी. 2010 बैच के IRS ने यह मॉडल सफल होने के बाद 16 अन्य गाँवों में अप्लाई किया, जिसके चलते तीन साल के अन्दर गाँव सूखे की समस्या से बाहर आ गए.
चवन ने कहा, “30 साल पहले कोई पोकलेन मशीनें नहीं थीं, इसलिए ग्रामीणों ने नुकसान की सीमा का एहसास किए बिना कुओं को मैन्युअल रूप से खोदा. कुओं की गहराई 70 फीट जितनी गहरी हो गई, जिससे पानी का गंभीर संकट पैदा हो गया. किसान केवल मानसून के दौरान खेती करने में सक्षम थे, और शेष वर्ष के लिए कोई आय नहीं थी. इससे आजीविका के लिए शहरी क्षेत्रों में जबरन पलायन हुआ. गाँव में केवल बुजुर्ग रह गए. इसने हमारे गांव के आर्थिक चक्र को सीमित कर दिया और हमारे पास कोई बचत नहीं थी. इससे पहले कि हम जानते, हम एक दुष्चक्र में फंस गए थे.”
आज उनके इस प्रयास के चलते 30 हज़ार किसानों को फायदा पहुँच रहा है. अगले दो सालों में चवन अपने इस उन्होंने 11 गाँववालों को ट्रेनिंग दी और अब प्रत्येक अगले 5 को देंगे और इस तरह चैन बढ़ेगी.प्रोजेक्ट को 65 गाँवों तक विस्तार करना चाहते हैं. इससे 500 करोड़ लीटर पानी स्टोरेज का लक्ष्य रखते हैं.
लद्दाख में पानी की समस्या से जूझ रहे थे लोग, सोनम वांगचुक ने विकसित कर दिया मॉडल
क्लाइमेट चेंज का प्रभाव लद्दाख के इलाकों में तेजी से पड़ रहा है. वहां ठंडे या सूखे दोनों तरह के प्राकृतिक जल स्त्रोतों पर इसका बुरा असर पड़ा है. बिना समय के होने वाली बर्फबारी से वहां के किसान पानी की समस्या का सामना कर रहे हैं. वहीं, ठंडियों में नदियों के जम जाने से भी उन्हें परेशानी हो रही है.
इन सबके बूीच इंजीनियर सोनम वांगचुक अपनी स्किल और प्रयत्नशीलता से इन सभी चुनौतियों का सामना करने में लगे हैं. वह जल स्त्रोतों को रिवाइव करने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं.
इसके लिए सोनम Ice Stupa Project चला रहे हैं. इसके जरिए सोनम वांगचुक और उनकी टीम सफलतापूर्वक आर्टिफिशियल ग्लेसियर तैयार कर रही है. इसके लिए वह ठंडी के मौसम से पानी को इकट्ठा करते हैं और फिर किसानों को सिंचाई में इसके जरिए मदद मिलती है.
आर्टिफिशियल ग्लेशियर लद्दाख में जल संरक्षण के लिए एक यूनिक जरिया है. सोनम ने एक ऐसा मॉडल भी तैयार किया है,, जिसपर अल्टीट्यूड और सूर्य की रोशनी का प्रभाव नहीं पड़ता है और उनका Ice Stupa प्रोजेक्ट सफलता के आयाम गढ़ रहा है.
UP का लड़का, जो गांव-गांव जाकर लोगों को पानी की हर बूंद बचाने की शपथ दिलवा रहा है
यूपी के मेरठ का एक लड़का गांव-गांव जाकर लोगों को पानी की अहमियत समझा रहा है, और उन्हें पानी के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए प्रेरित कर रहा है. यह कहानी सावन कनौजिया की है, जो 9वीं कक्षा से पर्यावरण के लिए समर्पित हैं और अब गांव-गांव जाकर लोगों को पानी की हर बूंद बचाने की शपथ दिलवा रहे हैं.
सावन अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वो कक्षा-9 में रहे होंगे, जब उनका ध्यान स्कूल में लगे एक पानी के नल्के पर गया. नल्के से धीरे-धीरे पानी गिर रहा था. यह देखकर उन्होंने नल्का बंद कर दिया. मगर उनका दिमाग खुल गया. इसके बाद उन्होंने तय किया कि वो पानी के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ करेंगे.
शुरुआत उन्होंने खुद से की. दांत ब्रश करते समय नल बंद रखना, शावर की जगह बाल्टी से नहाना, ऐसी छोटी-छोटी चीजों से उन्होंने पानी को बचाना शुरू कर दिया. फिर एक बार जब इसकी आदत हो गई तो उन्होंने प्लान किया कि वो दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे. बस यहीं से शुरु हो गया उनका सफ़र. सावन कहते हैं कि अपने इस सफ़र में उन्हें अपने एक दोस्त प्रतीक शर्मा का पूरा साथ मिला.
उन्होंने ‘एनवायरन्मेंट क्लब’ नामक एक संगठन का गठन किया, जिसमें उनके उम्र के कई साथी शामिल थे. आगे सावन और उनके साथियों ने अपनी पॉकेट मनी से पैसे बचाकर अपना रास्ता आसान किया. इसी क्रम में अब सावन ‘पानी की बात’ नाम की एक मुहिम चला रहे हैं. इसके तहत वो गांव-गांव घूमकर जल चौपाल लगाते हैं और ग्रामीणों को पानी के महत्व को समझाते हैं. सावन लोगों को पानी की हर बूंद बचाने की शपथ भी दिलवाते हैं. सावन बताते हैं कि उनका पूरा फोकस इस बात पर होता है कि पानी को बचाना क्यों जरूरी है?
जब 100 महिलाओं ने पानी के लिए 18 महीनों में काट दिया 107 मीटर लंबा पहाड़
मध्यप्रदेश के एक गांव की महिलाओं ने इस बात को साबित कर दिखाया है कि हौसले अगर मजबूत हों तो बड़ी से बड़ी मुसीबत भी आपके रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती. पीएम नरेंद्र मोदी ने फरवरी के आखिरी रविवार को मन की बात कार्यक्रम में इन महिलाओं के बारे में देश को बताया. इसके साथ ही पीएम मोदी ने एक लड़की की खूब तारीफ भी की.
पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जिस लड़की की तारीफ की उसका नाम है बबीता राजपूत. बबीता मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड स्थित छतरपुर के अगरौठा गाँव की रहने वाली हैं. पीएम मोदी इस कार्यक्रम में जल संरक्षण के बारे में बात कर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने अगरौठा गांव की उन साहसी महिलाओं के बारे में बताया जिन्होंने पहाड़ काट कर नहर को अपने गांव के पास वाले सूखे तालाब से जोड़ दिया . इन सब में बबीता की ये भूमिका रही कि इस 19 साल की लड़की ने अपने गांव की महिलाओं को जल समस्या के प्रति जागरुक करने के साथ साथ उन्हें प्रेरित भी किया.
बबीता की प्रेरणा से 100 से ज़्यादा महिलाओं ने श्रमदान करते हुए परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सहयोग से लगभग 107 मीटर लंबे पहाड़ को काट गिराया. इस पहाड़ को काटने के बाद रास्ता बनाया गया जिसके बाद गांव का सूखा तालाब नहर से जुड़ पाया. अब ये तालाब पानी से भरने लगा है. जब तक पहाड़ था तब तक बरसात का पानी तालाब में आने की जगह पहाड़ों के रास्ते बह जाता था. 40 एकड़ में फैला ये तालाब 10 साल पहले बुंदेलखंड पैकेज के तहत बनाया गया था. बारिश का पानी यहां तक ना पहुंच पाने के कारण ये सूख कर खाली हो गया था.
आबिद सुरती
आबिद सुरती ने पिछले एक दशक में करीब 20 मिलियन लीटर पानी बचाने में मदद की है. महाराष्ट्र का 86 वर्षीय यह जल योद्धा पानी की एक-एक बूंद बचाने की जद्दोजहद कर रहा हैं. आबिद ने पानी को बचाने के लिए ‘ड्रॉप डेड’ नाम के एक फाउंडेशन की स्थापना भी की है. वह मुंबई के मीरा रोड इलाके में नियमित रूप से हर रविवार एक प्लंबर के साथ घर-घर जाते हैं और लीक हो रहे वाटर टैप को मुफ्त में ठीक करवाते हैं.
अपने इस अभियान के चलते वो अब तक लाखों लीटर पानी बर्बाद होने से बचा चुके हैं. आबिद से प्रेरित होकर अन्य लोगों ने भी उनकी इस मुहिम को महत्व दिया और उनके साथ जुड़े. दिल्ली के एक विधायक ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सुरती के मॉडल को अपनाने की बात की थी. वन मन आर्मी की तरह काम कर रहे आबिद सप्ताह में 6 दिन काम करते है और रविवार को लोगों में पानी को लेकर जागरूकता फैलाने का काम करते हैं.
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अमला रुइया
जल माता के नाम से मशहूरअमला रुइया आबिद सुरती की तरह एक अन्य जल योद्धा का नाम है. यूं तो अमला को जन्म यूपी में हुआ, मगर इस वक्त वो मुंबई में रहती हैं और देश की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं. अमला ने पूरे राजस्थान में 100 से अधिक गांवों में पारंपरिक जल संचयन तकनीकों का निर्माण करने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.
उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से जगह-जगह चेक डैम बनाने के लिए भी याद किया जाता है. पानी के संरक्षण के लिए अमला ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना भी की. इसके ज़रिए वो पानी, वनस्पति और मिट्टी के संरक्षण के साथ-साथ शिक्षा को भी बढ़ावा देने का काम करती हैं. अमला को उनके नेक कार्यों के लिए साल 2016 में ‘वुमन ऑफ वर्थ’ सोशल अवार्ड श्रेणी के लिए नामांकित किया गया था.