रविवार सुबह 10:45 पर स्टीम इंजन शेड से प्लेटफार्म नंबर एक की ओर रवाना हुआ। इस दौरान स्टीम इंजन की छुक-छुक और तीखी सीटी से स्टेशन परिसर गूंज उठा। इंजन के फोटो और वीडियो लेने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
रविवार सुबह 4:00 बजे मुख्य लोको निरीक्षक विजेंद्र सिंह कि मौजूदगी में तीन टन कोयले और 5600 लीटर पानी की मदद से स्टीम तैयार की गई। इस काम में स्टीम इंजन के ड्राइवर हंसराज, नवरत्न सिंह और जगपाल को करीब चार घंटे का समय लगा। निरीक्षण के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए आरपीएफ इंजार्च महावीर सिंह, हेड कांस्टेबल शिव कुमार अपनी टीम के साथ तैनात रहे।
पिस्टन से निकलती है छुक-छुक की आवाज, स्टीम से बजती है सीटी
रेल का पर्याय मानी जाने वाली छुक-छुक की आवाज सिर्फ स्टीम इंजन से पैदा होती है। स्टीम इंजन में भाप के पिस्टन में आगे पीछे चलने और बाहर निकलने से छुक-छुक की आवाज पैदा होती है। स्टीम इंजन में बजने वाली सीटी भाप के दबाव से बजती है। डीजल इंजन के मुकाबले स्टीम इंजन की सीटी ज्यादा तीखी और दूर तक सुनाई देने वाली होती है।
विश्व धरोहर का दर्जा पाने वाली तीसरी रेललाइन
शिमला-कालका रेललाइन विश्व धरोहर का दर्जा पाने वाली तीसरी रेललाइन है। 10 जुलाई, 2008 को यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। दार्जिलिंग रेलवे और नीलगिरि रेलवे को भी विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त है।
96 किलोमीटर में 102 सुरंगें और 800 पुल
1903 में बिछाई गई 96 किलोमीटर कालका-शिमला रेल लाइन में 102 सुरंगें, 800 पुल, 919 मोड़ और 18 रेलवे स्टेशन हैं। समुद्र तल से ट्रैक की ऊंचाई 2800 से लेकर 7 हजार फीट है।
स्टीम इंजन का इतिहास आंकड़ों की जुबानी
117 साल पुराना है केसी-520 स्टीम लोकोमोटिव इंजन
1905 में अंग्रेजों ने शिमला से कैथलीघाट के बीच चलाया
1971 के बाद 30 सालों तक वर्कशॉप में खड़ा रहा
2001 में दोबारा बन कर तैयार हुआ
41 टन है इंजन का वजन
80 टन तक खींचने की क्षमता