आजकल ऑनलाइन फ़ूड ऑर्डर करना ट्रेंड बन चुका है. इंसान होटल में जाकर इंतजार करने से अच्छा समझता है कि उसका खाना उसके घर तक पहुंच जाए. इंसान की इस इच्छा को जिन फ़ूड डिलीवरी कंपनियों ने पूरा किया उसमें एक नाम ‘ज़ोमैटो’ का भी है. मौजूदा समय में जोमैटो की गिनती मिलिनियर कंपनियों में होती है. किन्तु क्या आप जानते हैं कि जोमैटो ने यहां तक का सफर कड़े संघर्ष के बाद पूरा किया है.
कब, कैसे, और कहां से हुई जोमैटो की शुरुआत?
ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी करने वाली कंपनी जोमैटो आज 24 देशों के 10 हजार शहरों में लोगों को खाना डिलीवर कर रही है. यह दुनिया की सबसे बड़ी फ़ूड डिलीवरी कंपनियों में से एक है. इसको शुरू करने का श्रेय किसी विदेशी को नहीं जाता, बल्कि एक भारतीय दीपेंदर गोयल इसके फाउंडर हैं.
दीपेंदर पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था. कक्षा 6वीं और 11वीं में वो फेल भी हो गए थे. लेकिन उन्हें बाद में एहसास हुआ कि पढ़ाई के द्वारा ही कामयाब इंसान बना जा सकता है. फिर दीपेंदर मेहनत से पढ़ाई करते हुए IIT के लिए चयनित हुए. 2006 में आईआईटी करने के बाद ‘बेन एंड कंपनी’ में नौकरी करने लगे, जो एक एक मल्टीनेशनल कंपनी है.
एक दिन दीपेंदर रोजाना की तरह अपने ऑफिस कैंटीन में बैठे थे. तभी उन्होंने देखा कि मेन्यू कार्ड की एक झलक पाने के लिए लंबी कतार लगी हुई है. उनके दिमाग में एक आइडिया आया. उन्होंने उस मेन्यू कार्ड को स्कैन करके ऑनलाइन डाला. उनका आइडिया लोगों को पसंद आया.
फूडलेट से की शुरुआत, दर-दर की ठोकर खाई
उनके मोबाइल मेन्यू साइट फ़ूडलेट की वजह से कैंटीन में लोगों को कतार नहीं लगाना पड़ता था. जब कैफे से तगड़ा रिस्पांस मिला तो दीपेंदर ने इसे पूरे शहर में शुरू करने का फैसला किया. आगे के सफर में दीपेंदर ने फूडलेट नाम की एक वेबसाइट बनाई. इससे उन्हें बेहतर रिस्पॉन्स की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें वो सफलता नहीं मिली जिसकी वो उम्मीद कर रहे थे. ऐसे में दीपेंदर ने एक नया रास्ता अपनाया और अपनी पत्नी के संग दिल्ली के सभी रेस्त्रां जाकर उनका मेन्यू अपनी साइट पर अपलोड करना शुरू कर दिया.
दोस्त का साथ मिलते ही आसान हो गया आगे का सफर
इसके बाद भी जब दीपेंदर को बेहतर रिस्पॉन्स नहीं मिला तो उन्हें लगा कि उनकी कंपनी के नाम में ही शायद कोई प्रॉब्लम है. ऐसे में उन्होंने फ़ूडलेट का नाम बदलकर फूडीबे कर दिया. दीपेंदर का यह कदम भी उनके काम नहीं आया. दीपेंदर को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. इसी बीच उनकी मुलाकात पंकज चड्डा से हुई. पंकज भी दीपेंदर के साथ दिल्ली आईआईटी से पढ़े हुए थे.
कहते हैं, जब पंकज ने दीपेंदर की समस्या सुनी तब उन्होंने एक दिन कुछ टेक्नीकल मामले में ऐसी ट्रिक लगाई की फूडीबे का तीन गुना ट्रैफिक अचानक से बढ़ गया. ऐसे में दीपेंदर ने अपने साथी पंकज को कंपनी का को-फाउंडर बनने का ऑफर दिया. पंकज भी राजी हो गए. इस तरह जुलाई 2008 में फूडीबे को पंकज का साथ मिल गया और दोनों मिलकर कंपनी के ग्रोथ में लग गए.
बढ़ते सफर के दौरान नाम को लेकर मिली नोटिस
मार्केट में कॉम्पटीशन तगड़ा था. लेकिन दोनों मेहनत करते रहे. धीरे-धीरे इनको बढ़िया रिस्पॉन्स भी मिलने लगा. न्यूज कवरेज भी होने लगी. तब खुद कई रेस्त्रां फूडीबे पर अपना मेन्यू कार्ड अपलोड करने लगे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2008 के आखिर तक साइट पर 1400 से अधिक रेस्त्रां रजिस्टर हो चुके थे. जो कि सिर्फ दिल्ली एनसीआर के थे. इसके बाद कंपनी मुंबई और कोलकाता में अपनी पैठ बनाने पहुंच गई. अब दीपेंदर और पंकज को पूरा फोकस अपनी फूडीबे पर देने का समय आ चुका था. दोनों ने अपनी नौकरी छोड़ दी.
फूडीबे का नाम बदलकर जोमैटो क्यों कर दिया गया?
आगे 2010 में इंफोएज के फाउंडर संजीव बिखचंदानी ने इस कंपनी में एक मिलियन डॉलर का इनवेस्टमेंट किया. इसके बाद कई अन्य कंपनियों से फंड हासिल हुआ. सिकोया 35 मिलियन डॉलर का निवेश ले कर आई. दीपेंदर और पंकज की मेहनत रंग लाने लगी थी. सब कुछ ठीक जा रहा था. फिर एक दिन फूडीबे के आखिरी चार लफ्ज को लेकर एक बड़ी ईकॉमर्स कंपनी ईबे ने फूडीबे को लीगल नोटिस भेज दिया.
हालांकि, कंपनी को नाम को लेकर पहले से ही पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है. कंपनी नाम बदलने की प्रक्रिया पर पहले से काम कर रही थी. बहरहाल, साल 2010 में कंपनी ने नोटिस के पांच दिन बाद ही फूडीबे का नाम बदलकर जोमैटो (Zomato) कर दिया. नाम बदलते ही कंपनी की तकदीर बदल गई. पूरे इंडिया में जोमैटो को अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा था.
देश के साथ विदेशों में भी बजा Zomato का डंका
अब कंपनी के फाउंडर दीपेंदर ने इसे विदेशों तक ले जाने का फैसला किया. साल 2012 में कंपनी टर्की और ब्राजील पहुंची. अब कंपनी की पहुंच लगभग 24 देशों में बन चुकी है. जिसमें न्यूजीलैंड, श्रीलंका, कतर, फिलिपींस, यूएई, आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया आदि देश शामिल हैं. अपने इस सफर के दौरान कंपनी को फंड भी खूब मिले.
साथ ही कंपनी ने कई देश-विदेश की कंपनियों (ऊबर ईट्स, ग्रोसरी वेंचर ब्लिंकिट फिटसो आदि) को भी खरीदा. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सालाना 2017-18 में जोमैटो का कुल रेवेन्यू 487 करोड़ रुपए था, जो 2020-21 में बढ़कर 2,743 करोड़ रुपए हो गया. आज विश्व की नंबर वन फ़ूड डिलीवरी कंपनियों में से एक जोमैटो की कीमत करोड़ों की है. जो दीपेंदर और पंकज की मेहनत से संभव हो सका.