सोलन में 21 वर्ष पहले एक युवक दिनेश लोहिया महज निवेश के तौर 18 हज़ार रूपये लेकर सोलन पहुंचा | इन 18 हज़ार रूपये से जो सपने दिनेश लोहिया ने खुली आँखों से नहीं , किन्तु दिल से देखे थे | वह न केवल पूरे किए बल्कि आज वह हज़ारों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन चुके है |
दिनेश लोहिया ने इंजीयरिंग की और उसके बाद दिल्ली में विभिन्न कंपनियों में जॉब की और फिर जो पैसे वहां संचित किए वह लेकर वह सोलन आ गए | यहाँ कुछ कंपनियों के लिए उत्पाद बना कर दिए कुछ कंपनियों ने हीरे की पहचान की , और उन्हें काम दिया ,तो कहीं से वह ठुकरा दिए गए | लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि दिनेश को अपनी मेहनत भर भरोसा था | आज वह विभिन्न बड़ी बड़ी कंपनियों के लिए सर्किट प्लेट्स बना कर दे रहे है |
खाने को दिनेश के पास नहीं होते थे पैसे
दिनेश लोहिया ने बताया संघर्ष के समय में उनके पास पैसे नहीं होते थे और छोटे से घर में वह रहते थे | ऐसे में जब उनके घर कोई मेहमान आ जाता था तो उसे खाना खिलाने की चिंता हो जाती थी | यार दोस्तों से उधार मांग कर उनके खाने का इंतज़ाम किया जाता था | लेकिन जहाँ पहले उनके पास शुरुआती दौर पर पहले खाने के पैसे नहीं होते थे | आज उनकी इंडस्ट्री में कई करोड़ो रूपये की मशीनरी लगी है और करीबन 50 युवाओं को रोज़गार भी दे रहे है |
स्कूटर से नापा है दिनेश ने हिमाचल
दिनेश ने बताया कि जब वह संघर्ष कर रहे थे तो , वह पिता के स्कूटर पर समूचे हिमाचल में इलेक्ट्रॉनिक वेइंग मशीन को बेचने के लिए जाते थे | कई बार तो उन्होंने बिना रुके 18 घंटों का सफर स्कूटर पर तह किया है | जिसके बाद वह घंटो दर्द से चिल्लाते थे और टांगे भी ठीक से सीधी नहीं होती थी | लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और दुसरे दिन वह फिर स्कूटर पर ही और मशीन बेचने निकल जाते थे |
अधरंग होने के बाद भी उनके उत्साह में नहीं आई कोई कमी
दिनेश ने बताया कि वह कुछ समय तक अधरंग से पीड़ित रहे \ चिकित्स्कों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी | लेकिन आराम शब्द उनकी डिक्शनरी में मौजूद नहीं था | वह बैड पर लेटे लेटे भी काम करते रहते थे | शरीर का एक हिस्सा काम नहीं करता था फिर भी कार चला कर ग्राहकों तक सामान ज़रूर पहुंचाते थे | दिनेश ने बताया कि उन्हें केवल काम की भूख थी और इसी भूख ने आज उन्हें कामयाबी की शिखर तक पहुंचाया है |
दिनेश क्यों रखते थे अपनी कार में बेलचा और गैंती ?
दिनेश ने बताया कि बरसातों में वह अपनी कार में बेलचा और गैंती हमेशा रखते थे , क्योंकि वह मानते थे कि जो भी ग्राहक को समय दिया है वह उसी समय पर अपने ग्राहक को सामान उपलब्ध करवाएं | यही कारण था कि वह जब अपने ग्राहक के पास जाते थे और रास्ता बंद होता था तो वह खुद बेलचा उठा कर रास्ते को साफ करते थे और अपनी गाडी निकाल कर वह ग्राहक को दिए गए समय में ही सामान सपुर्द करते थे | जिसके कारण से ग्राहकों का उन पर विश्वास बढ़ता गया और वह तरक्की की उचाईयों को छूने लगे |
दिन में 22 घंटे करते थे काम
दिनेश लोहिया ने बताया कि वह संघर्ष में समय में 22 घंटे काम करते थे और केवल दो घंटे सोते थे | यहाँ तक कि सीढ़ी से गिरने के कारण उन्हें अधरंग हो गया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लेट कर भी अपना काम करते थे | उन्होंने बताया कि उन्होंने जो भी सपने देखे वह दिल से देखे है और यही कारण है कि वह आज कामयाब उद्योगपतियों में से एक हैं |
उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि कामयाबी एक या दो वर्षों में नहीं मिलती उसके लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ता है जिसमे उन्होंने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी है और आज तक उनका यह संघर्ष जारी है |
उन्होंने बताया कि उनका उत्पाद आज देश विदेश दोनों जगह जा रहा है जिसकी गुणवत्ता में वह कभी कमी नहीं आने देते और ईमानदारी से कार्य को निभाते है | उन्होंने बताया कि वह रत्न टाटा और स्वामी विवेका नंद जैसे सफल व्यक्तित्व को पढ़ते थे और उन्ही से प्रेरती हो कर वह अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे जिसमे वह कामयाब रहे |