कुछ टीचर्स के लिए पढ़ाना ज़रूरत होती है और कुछ लोगों के लिए पैशन. टीचर्स के जुनून के कई किस्से हमने सुने हैं. ऐसे टीचर्स का सिर्फ़ का सिर्फ़ एक मकसद होता है- ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को शिक्षित करना. अपना ज्ञान उन तक पहुंचाना और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना. रिटायरमेंट नामक सरकारी टर्म भी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती. न ही उम्र उनके लिए सीमाएं बना सकता है. ऐसी ही एक गुरू हैं प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा. प्रोफ़ेसर संतम्मा फ़िज़िक्स पढ़ाती हैं. ये विषय उनका पैशन है और पढ़ाना उनकी लाइफ़ का मकसद.
93 वर्षीय प्रोफ़ेसर संतम्मा सेन्टुरियन यूनिवर्सिटी में पिछले 6 दशकों से पढ़ा रही हैं. घुटने की सर्जरी की वजह से वे बैसाखियों की मदद से चलती हैं. तकलीफ़ होने के बावजूद मुस्कुराते हुए क्लास पहुंचती हैं. आंध्र प्रदेश के विज़यानगरम स्थित इस यूनिवर्सिटी में वे सालों से फ़िज़िक्स पढ़ा रही हैं और युवाओं को प्रेरित कर रही हैं.
उम्र सिर्फ़ एक संख्या है
The New Indian Express से बात-चीत के दौरान प्रोफ़ेसर संतम्मा ने बताया कि उन्हें उम्र से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. प्रोफ़ेसर संतम्मा के शब्दों में, ‘मेरी मां वन्जक्शम्मा 104 की उम्र तक जीवित थीं. स्वास्थय तो हमारे दिमाग पर निर्भर करता है और दौलत दिलों पर. हमें हमेशा दिल और दिमाग को स्वस्थ रखने की कोशिश करनी चाहिए. मैं खुद को अलबर्ट आइंस्टीन से कंपेयर नहीं कर सकती लेकिन मैं मानती हूं कि मैं यहां किसी उद्देश्य से हूं- आखिरी दम तक पढ़ाने के उद्देश्य से.’
प्रोफ़ेसर संतम्मा की क्लास मिस नहीं करना चाहते छात्र
छात्र भी प्रोफ़ेसर संतम्मा की मेहनत, डेडिकेशन से प्रभावित हैं. वो किसी भी हालत में प्रोफ़ेसर की क्लास मिस नहीं करना चाहते, उल्टे उनकी क्लास का इंतज़ार करते हैं. प्रोफ़ेसर कभी अपनी क्लास में देर से नहीं पहुंची. अनुशासन, डेडिकेशन, कमिटमेंट की मूरत हैं प्रोफ़ेसर संतम्मा. हर विषय के बारे में उन्हें इतना ज्ञान है कि छात्र उन्हें चलता-फिरता इन्साइक्लोपीडिया कहते हैं.
प्रोफ़ेसर संतम्मा का करियर
8 मार्च, 1929 को प्रोफ़ेसर संतम्मा का जन्म मछलीपट्टनम में हुआ. वो सिर्फ़ 5 महीने की थी जब उनके पिता चल बसे और मामा ने उन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया. 1945 में जब वे एवीएन कॉलेज, विशाखापट्टनम में इंटरमीडिएट की छात्रा थी तब महाराज विक्रम देव वर्मा से उन्हें फ़िज़िक्स के लिए गोल्ड मेडल मिला था.
आंध्र यूनिवर्सिटी से फ़िज़िक्स में ही उन्होंने B.Sc और फिर माइक्रोवेब स्पेक्ट्रोस्कोपी से D.Sc (Phd के समान) किया. 1956 में बतौर फ़िज़िक्स लेक्चरर आंध्र यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ साइंस में वे पढ़ाने लगी.
वे कई केन्द्र सरकारी डिपार्टमेंट्स जैसे- काउंसिल ऑफ साइंटीफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर), यूनिवर्सिटी ग्रान्ट्स कमिशन (यूजीसी) और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (डीसीएटी) में काम कर चुकी हैं.
60 साल की उम्र में 1989 में वे रिटायर हो गईं लेकिन रिटायरमेंट नामक सरकारी टर्म उनके और फ़िज़िक्स के पैशन के बीच नहीं आ सका.
अपना घर भी दान कर चुकी हैं प्रोफ़ेसर
प्रोफ़ेसर संतम्मा सिर्फ़ विद्या का दान ही नहीं करती. उन्होंने विवेकानंद मेडिकल ट्रस्ट को अपना घर दान कर दिया है और किराये के घर में रहती हैं. सुबह 4 बजे से ही उनका दिन शुरू हो जाता है. प्रोफ़ेसर संतम्मा का कहना है कि वो एक दिन में 6 क्लासेज़ ले सकती हैं.
फ़िज़िक्स के अलावा उन्हें वेद, पुराण, उपनिषदों में भी दिलचस्पी है. उन्होंने गीता के श्लोकों का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर, Bhagavad Gita – The Divine Directive नामक किताब भी पब्लिश की है.