2 लाख केसर के फूलों को हाथ से तोड़ा जाता है, तब कश्मीर से निकलता है दुनिया का बेस्ट केसर

कश्मीर की ख़ूबूसरत वादियों और मनमोहक लैंडस्केप के बीचों-बीच एक और नायाब चीज़ बसी है – कश्मीरी केसर. भारतीय शाही खाने की जान कहे जाने वाला केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है (Most Expensive Spice In The World) यही वजह है कि इंटरनेशनल मार्किट में कश्मीरी केसर को GI टैग दिया गया, जिससे इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया. GI टैग मिलने के बाद इसे बाज़ार में अपने प्रतिद्वंदियों से प्रतियोगिता में मदद मिलेगी.  

आखिर कश्मीरी केसर क्यों है इतना ख़ास?

सदियों से उगाया जा रहा है केसर

मसालों का राजा कहा जाने वाला ‘केसर’ सबसे महंगा मसाला माना जाता है. यह मूलतः पम्पोर के करेवा और श्रीनगर के बडगाम में उगाया जाता है. इस व्यापार में 226 गांवों के लगभग 16 हज़ार परिवार जुड़े हुए हैं. यहां केसर की खेती पहली सदी BCE से मानी जाती है. यहां मध्य एशिया से आये लोगों ने इसकी खेती से लोगों को परिचित करवाया था.

क्यों है ये सबसे बेस्ट?

कश्मीरी केसर को सबसे उच्च क्वालिटी का माना जाता है क्योंकि इसमें क्रोसिन की मात्रा ज्यादा होती है. क्रोसिन ही केसर में रंग और औषधि गुण देता है. कश्मीर के केसर में क्रोसिन की मात्रा 8.72 प्रतिशत होती है, जबकि ईरान के केसर में यही मात्रा 6.82 प्रतिशत होती है. इसकी खासियत है कि यह समुद्र तल से 1600 मीटर की उंचाई पर उगता है. 

केसर फूलों का स्टिग्मा होता है. ऐसे में हर एक फूल पर करीब तीन या चार स्टिग्मा होते हैं. इसकी खेती पूरी तरह से कश्मीरी लोग मैन्युअली करते हैं. वो इन स्टिग्मा को ख़ुद हाथों से तोड़ते हैं और फिर अलग से सुखाते हैं. कई सदियों से केसर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसे खाना में डालने समेत फार्मा कंपनी, थेरेपी और डाई इंडस्ट्री द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है.

खेती में 65 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गयी

द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों में केसर की खेती में 65 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है. इसके पीछे युवाओं में इसके प्रति घटता रुझान, राज्य में राजनीतिक अव्यवस्था, मौसम परिवर्तन आदि है. इस हालत में सुधार की उम्मीद की जा रही है क्योंकि केसर को GI टैग जो मिल चुका है.

पूरी दुनिया के सबसे महंगा कश्मीरी केसर की मार्किट में डिमांड तब कम हो गयी, जब ईरानी केसर ने बाजारों में प्रवेश किया. बता दें, स्पेन, ईरान, अफग़ानिस्तान ख़राब क्वालिटी का केसर कम कीमत में बेचते हैं. 

कश्मीरी केसर की कीमत प्रति किलो 1 से 3 लाख रुपये के बीच

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, वर्तमान में केसर का सबसे बड़ा उत्पादक देश ईरान है. यह हर साल 300 टन केसर की खेती करता है. ईरानी केसर के आने के बाद साल 2007 से कश्मीरी केसर का दाम आधा हो गया. आज दुनिया का 80 से 90 फ़ीसदी केसर ईरान उत्पादन करता है. ईरान द्वारा मिलावटी केसर के मार्किट में आने की वजह से कश्मीरी केसर पर नेगेटिव असर पड़ा था.

कश्मीरी केसर की कीमत प्रति किलो 1 से 3 लाख रुपये के बीच है. इसके पीछे की वजह इसका मैन्युअल लेबर से पैदा करना. करीब दो लाख केसर स्टिग्मा को हाथों से तोड़ा जाता है. 

कश्मीरी केसर को GI टैग देते समय इसके बारे में कहा गया, “उच्च औषधीय मूल्य होने के अलावा, कश्मीर केसर पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों के साथ जुड़ा हुआ है और कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है. कश्मीर केसर ने अपने विशिष्ट गुणों जैसे उच्च सुगंध, गहरे रंग, आदि के कारण युगों में अपना नाम प्राप्त किया है. ये केवल जम्मू और कश्मीर में उगाया जा सकता है.”

क्या है GI टैग (Geographical Indication)?

GI टैग, किसी निश्चित क्षेत्र विशेष के प्रोडक्ट्स, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाने वाला एक स्पेशल टैग है. यह स्पेशल क्वालिटी और पहचान वाले उत्पाद जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले को दिया जाता है. मालूम हो, भारत में चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग की चाय और मलीहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स को GI टैग मिल चुका है.