दुर्ग. किसी भी कार्य की निरंतरता हर असंभव कार्य और हर मुश्किल को आसान बना देती है. चट्टान जैसे कठोर पत्थर को पानी की बूंदें लगातार उस पर गिरकर उसे तोड़ देती है. यह कहना है कौन बनेगा करोड़पति में 50 लाख जीतकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का दिल जीत लेने वाले दुर्ग निवासी प्रोफेसर डॉ. डीसी अग्रवाल का. प्रो.अग्रवाल का कहना है कि उनके 20 सालों की तपस्या का परिणाम रहा जो वे केबीसी की हॉट सीट तक पहुंच पाए. इस दौरान कई बार असफलता हाथ लगी, लेकिन प्रयास करना नहीं छोड़े और आखिरकार केबीसी की हॉट सीट तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. प्रोफेसर डॉ. डीसी अग्रवाल का कहना है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. कठिन परिश्रम के जरिए हर सफलता को प्राप्त किया जा सकता है.
प्रोफेसर डॉ डीसी अग्रवाल का कहना है कि साल 1977 में जब वे अमिताभ बच्चन की फिल्म मुकद्दर का सिकंदर देखने गए थे. तब उनकी जेब कट गई और पॉकिट में रखे 10 रुपये चोरी हो गए. उसी समय उन्होने यह संकल्प लिया कि वे अमिताभ बच्चन की फिल्म तभी देखेंगे जब वे खुद साथ होंगे. इस संकल्प के साथ उन्होंने उनकी फिल्म देखना छोड़ दिया. साल 2000 में केबीसी जब आरंभ हुआ तो वे अपने संकल्प को पूरा करने का प्रयास आरंभ करना शुरू कर दिए और आखिरकार सपने की तरह नजर आने वाला संकल्प पूरा हुआ. अमिताभ बच्चन ने 44 साल पूर्व के 10 रुपये ब्याज सहित लौटाए और मौका लगने पर उनके साथ फिल्म भी देखने का वायदा किया.
केबीसी की हॉट सीट तक पहुंचकर प्रोफेसर डीसी अग्रवाल ने महानायक अमिताभ बच्चन का दिल जीत लिया और अपने शब्दों का जादू चलाते हुए उनहोने केबीसी की नई परिभाषा गढ़ दी। प्रो अग्रवाल का कहना है कि केबीसी किसमत का खेल नहीं किताबों का खेल है. केबीसी लक का नहीं लगन का खेल है. केबीसी भाग्य का नहीं भरोसा का है. तकदीर का नहीं तर्जुबे का खेल है. इन वाक्यों के साथ ही उन्होंने केबीसी की नई परिभाषा को जन्म दिया.
दुर्ग के कन्या महाविदयालय में कार्यरत प्रोफेसर डी.सी.अग्रवाल का कहना है कि केबीसी से जीती गई 50 लाख की धनराशि से वे जरूरतमंदों की सेवा करना चाहते हैं. उन्होने कहा कि कई ऐसे बच्चे है जो पढ़ाई करना चाहते है वे आर्थिक अभावों के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते. ऐसे बच्चों की फीस जमा कर उनका भविष्य संवारेंगे. इसके अलावा समाज सेवा के क्षेत्र में भी वे कार्य कर लोगों की मदद के लिए हमेशा आगे रहेंगे.