20 जुलाई 2009, जब रीता बहुगुणा जोशी जला घर देखने आई थीं… इस तस्वीर के पीछे का सच जानिए, मायावती पर भी आरोप

Rita Bahuguna Joshi House Burnt News: रीता बहुगुणा जोशी हमेशा चर्चा में रहने वाली नेता रही हैं। यूपी चुनाव 2022 के समय में अपने बेटे को टिकट दिलाने के लिए उन्होंने एमपी का पद छोड़ने की पेशकश कर दी थी। 2009 में उनके घर को जला दिया गया था। इस घटना की कहानी भी काफी अलग रही है।

लखनऊ: एक तस्वीर अपने पीछे पूरा इतिहास समेटे रहती है। आप रीता बहुगुणा जोशी की इस तस्वीर को देख रहे हैं। इसमें उनके चेहरे का भाव आपको किसी आपदा से संबंधित लग रहा होगा। भारतीय जनता पार्टी की सांसद की तस्वीर देखकर अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप बिल्कुल सही हैं। लेकिन, यह आपदा किसी और पर नहीं, बल्कि खुद उनके ऊपर आई थी। यह तस्वीर 20 जुलाई 2009 को ली गई थी। उस समय रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष थीं। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ ऐसी टिप्पणी की, बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा। बसपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के अति सुरक्षित इलाके में स्थित उनके घर पर पहुंचकर उसमें आग लगा दी। रीता बहुगुणा जोशी ने जब अपने जले हुए घर की स्थिति देखी तो उनके भावों को कैमरों ने कैद कर लिया था। वे राजनीतिक लड़ाई के घर तक पहुंचने से निराश और आक्रोशित थी। उनके खिलाफ बसपा कार्यकर्ताओं के इस प्रकार के हमले के बाद प्रदेश में राजनीतिक माहौल गरमाया था। खूब राजनीति हुई, मायावती सरकार ने सीबीसीआईडी से जांच कराने की सिफारिश की। लेकिन, घटना के आरोपी नेता इंतजार आब्दी को गन्ना संस्थान का उपाध्यक्ष बनाकर अलग ही संदेश दे दिया। इसके बाद मायावती पर भी घटना को लेकर गंभीर आरोप लगे थे।

क्या था पूरा मामला?
कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ 16 सितंबर 2009 को रैली में तत्कालीन सीएम मायावती के खिलाफ बड़ा बयान दिए जाने का मामला सामने आया। इस बयान के सामने आते ही माहौल गरमा गया। 16 सिंतंबर की ही रात उन्हें गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें मुरादाबाद भेज दिया गया। रीता बहुगुणा जोशी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किए गए। गिरफ्तारी के बाद उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया।

रीता बहुगुणा जोशी के बयान का मामला सामने आते ही बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा भड़क गया। उनकी गिरफ्तारी की सूचना जैसे ही लखनऊ पहुंची आक्रोशित बसपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ स्थित उनके आवास पर पहुंचकर आगजनी कर दी। तोड़फोड़ की गई। कांग्रेस की ओर से इस प्रकार के आरोप तब लगाए गए थे। हालांकि, 17 सितंबर को पूरे मामले पर तत्कालीन सीएम मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस कर सोनिया गांधी पर हमला बोल दिया।

मायावती ने अपने ऊपर रीता बहुगुणा जोशी के हमले को दलितों का अपमान बताया। उन्होंने सवाल किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस मामले में चुप क्यों हैं? साथ ही, घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए उन्होंने कहा कि हमें शक है कि कांग्रेस के लोगों ने ही इस प्रकार का कार्य किया है। रीता बहुगुणा के बयान से मीडिया और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस प्रकार का कार्य किया गया। मायावती ने इस मामले में सीबीसीआईडी की जांच का ऐलान किया।

रीता बहुगुणा ने बोला था माया सरकार पर हमला
रीता बहुगुणा जोशी ने रेप के मामलों को लेकर माया सरकार पर हमला बोला था। उनके बयान को लेकर प्रदेश भर में उनके खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया। मायावती ने तब प्रेस कांफ्रेंस में इस पूरे मामले पर करारा पलटवार किया था। उन्होंने कहा था कि रेप और हत्या के मामलों में दलित महिलाओं के सम्मान और जीवन की कीमत केंद्र की कांग्रेस सरकार ने ही तय की है। बसपा इसे असहमत है। केंद्र में बसपा सरकार में प्रभावी हुई तो इस प्रकार के मामलों में आजीवन कारावास और फांसी की सजा का प्रावधान किया जाएगा।

मायावती ने कहा था कि यह केवल दलित नहीं, बल्कि सर्वसमाज की महिलाओं के लिए किया जाएगा। मायावती का बयान आने के बाद प्रदर्शन शुरू हुआ था। हालांकि, तत्कालीन सीएम ने लोगों को सड़क पर उतर कर प्रदर्शन करने से मना किया था। इसके बाद भी रीता बहुगुणा जोशी के घर को आग लगाया गया।

चार दिन बाद पहुंची थी घर
रीता बहुगुणा जोशी की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने प्रदेश भर में प्रदर्शन किया था। मायावती के खिलाफ बयान के कारण उनकी गिरफ्तारी हो गई थी। 20 सितंबर को वे जब रिहा होने के बाद लखनऊ पहुंची तो अपने घर का जायजा लिया था। पूरे घर को तहस-नहस कर दिया गया था। वे घर की दुर्दशा देखने के बाद मायावती सरकार और बसपा के खिलाफ मुखर हुई थीं। करारा हमला बोला था। मीडिया के कैमरों में भी उनका गुस्सा और घर जलाए जाने का दर्द कैद हुआ था।

2015 में हुई थी घटना पर कार्रवाई
रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाए जाने के मामले में करीब छह साल की सीबीसीआईडी की जांच के कार्रवाई हुई। जांच में पाया गया कि घटना के समय लखनऊ डीआईजी रहे प्रेम प्रकाश, एएसपी पूर्वी हरीश कुमार और सीओ हजरतगंज बीएस गर्ब्याल सहित 18 पुलिसकर्मियों की इसमें सक्रिय भूमिका रही थी। जांच में पाया गया कि पुलिस अधिकारियों ने न केवल रीता बहुगुणा का घर जलाने वालों का सहयोग किया, बल्कि वास्तविक आरोपियों को बचाने की नीयत से पांच निर्दोषों को जेल भी भेज दिया।

हुसैनगंज कोतवाली में इन मामलों को लेकर एफआईआर दर्ज कराई गई। तत्कालीन डीजीपी और आईजी के खिलाफ भी वारदात को नजरअंदाज करने का आरोप लगा, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पूरी घटना के पीछे मुख्यमंत्री का सक्रिय योगदान होने का भी दावा किया गया था। यह यूपी की राजनीति में राजनीतिक प्रतिशोध का एक बड़ा उदाहरण बताया जाता है।