प्रकृति जितनी खूबसूरत है, उसका कहर उतना ही भयानक होता है. मनुष्य अपनी गलतियों के कारण ही प्रकृति को कहर बरपाने पर मजबूर करता है. ये प्रकृति का कहर ही है कि एक भरी-पूरी झील को रेगिस्तान में बदलना पड़ा.
सूख गई एक बड़ी झील
हम यहां बात कर रहे हैं मध्य चिली के वालपराइसो शहर में स्थित द पेनुलास लेक नामक एक झील की. 20 साल पहले तक इस झील में ओलंपिक के 38 हजार स्वीमिंग पूल्स जितना पानी था और इसी से पूरे शहर को पानी की सप्लाई जाती थी लेकिन आज यही झील रेगिस्तान में बदलती जा रही है. इस झील की ऐसी स्थिति का कारण है जलवायु परिवर्तन, इसी की वजह से वालपराइसो शहर में 13 साल लगातार सूखा पड़ा. इस सूखे में बारिश बहुत ही कम हुई.
इस वजह से झील बनी रेगिस्तान
जलवायु परिवर्तन के कारण एंडीज पहाड़ों से बर्फ इतनी तेजी से पिघलने लगी कि इसका पानी बहाने की बजाए भाप बन कर उड़ने लगा. इस झील में पानी का मुख्य स्रोत इस पहाड़ से पिघलने वाली बर्फ ही थी. लेकिन बर्फ तेजी से पिघलने के कारण इन पहाड़ों का पानी झील तक आने से पहले ही भाप बन कर उड़ने लगा. इस तरह से ये झील सूख गई.
अब इस झील का नजारा कुछ ऐसा है कि, इसकी सूख चुकी तलहटी पर सिर्फ मछलियों के कंकाल फैले हुए दिखाई पड़ते हैं. 13 साल के सूखे का भयानक मंजर यहां के लोगों को तोड़ चुका है. अब तो ये एक ही प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर पानी भेज दें.
वालपराइसो शहर के अधिकतर हिस्सों में पानी की सप्लाई इसी झील से होती थी लेकिन इसके सूखने के बाद शहर में पानी की भारी समस्या पैदा हो गई है. सर्दी के मौसम में ही थोड़ा पानी जमा हो पाता है नहीं तो पूरा साल इसकी उम्मीद करना बेकार है.
झील को नहीं मिल रहा पानी
पर्यावरण एक्सपर्ट्स के अनुसार चिली के इस इलाके के मौसम में ऐसा बदलाव जलवायु के वैश्विक बदलाव के कारण आया है. पहले कम दबाव वाले तूफान सर्दियों में प्रशांत महासागर से पानी खींचकर चिली के ऊपर बारिश कराते थे. इससे सारे पानी के स्रोत भर जाते थे और एंडीज पहाड़ों के ऊपर बर्फ की मोटी परत जम जाती थी लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब ऐसा नहीं होता.
एक ग्लोबल स्टडी के अनुसार चिली के ऐसे मौसम का एक कारण ओजोन परत में कमी और अंटार्कटिका के ऊपर ग्रीनहाउस गैसें भी हैं. इसके अलावा बढ़ते समुद्री तापमान और बारिश की कमी की वजह से चिली की तरफ बारिश नहीं हो रही है. चिली स्थित सेंटर ऑफ क्लाइमेट एंड रिसिलिएंस के शोधकर्ता डंकन क्रिस्टी के अनुसार पेड़ों की छाल के अंदर बने छल्लों को देखने से पता चलता है कि 400 साल पहले ऐसे हालात नहीं थे.