22 साल बाद जालोर में मनाई गई तालाब हिलोरने की परपंरा, जानिए राजस्थान में आखिर क्या है यह अनूठा रिवाज

Rajasthan jalore news : राजस्थान के जालोर जिले के चांदना में 22 साल बाद तालाब हिलोरने की रस्म निभाई गई। इस दौैरान गाजे बाजों के साथ भाई बहनों का काफिला तालाबों पर पहुंचा।

जालोर
जालोर: सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तीज का महत्व महिलाओं के लिए खास है। हरियाली तीज के नाम इस दिन मारवाड़ क्षेत्र में तालाब हिलोरने की रस्में भी निभाई जाती है। जालोर जिले के चांदना गांव में रविवार को यह सामाजिक परम्परा करीब 22 साल बाद निभाई गई। इसके चलते बड़ी संख्या में जन सैलाब उमड़ पड़ा। ढोल बाजों की धुन के साथ सिर पर कलश धारण किए कन्याएं, पुरुषों के सिर पर केसरिया साफा, मंगल गीत गाती महिलाएं और बढ़ते कदम इसी तरह के नजारे इस दौरान दिखे। वहीं सालों का बेसब्री का इंतजार खत्म होने की खुशी भी लोगों में दिखी। हजारों की संख्या में यहां भाई बहनों का रैला उमड़ पड़ा।

गाजे बाजों के साथ पहुंचे भाई -बहन
चांदना गांव में रणवीरसिंह चौहान के घर से गाजे बाजों के साथ भाई बहनों का काफिला रवाना हुआ। सरपंच नैनसिंह चौहान और अभयसिंह चौहान के सानिध्य में सैंकड़ों भाई बहन गीत गाते हुए चांदना भेटाला मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित तालाब पर पहुंचे। यहां पर बागरा थानाधिकारी तेजूसिंह की सुरक्षाकर्मियों के साथ पंडित उदयशंकर भट्ट के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तालाब की पूजा अर्चना की।

इसी तरह आगे विधि विधान से भाई ने बहन का मटका हिलोरा। तालाब का पानी पिलाया और चुनरी ओढ़ाकर गूंगरी मात्तर खिलाई तथा एक दूसरे की रक्षा करने की कसम खाई। इस दौरान मौजूद लोगों ने तालाब की सात परिक्रमा लगाई।

क्या है परंपरा, इतने लंबे अंतराल के बाद क्यों ?
दरअसल पूर्व में किसी ठाकुर के परिवार में नई बहू आती थी। तब उनके परिवार की ओर से पूजा कर समंदर हिलोरने की रस्म निभाई जाती है। इस दौरान पूरा गांव भी साथ रहता है। इसी तरह यह परंपरा शुरू हो गई। तभी से गांव की अन्य बहुएं अपने भाइयों के साथ तालाब में पानी हिलोरती है। दरअसल नई बहू के आने पर ही यह रस्म निभाई जाती है। हाल ही में चांदना गांव के लंबे समय बाद दो परिवारों में नई बहू आई है, इस कारण बड़े अंतराल के बाद समंदर हिलोरने की रस्म निभाई गई है।