आपके हिसाब से सबसे ज़्यादा हिम्मत और ताकत किस काम को करने के लिए चाहिए? पहाड़ पर चढ़ने या चढ़ कर कूदने के लिए? समुंदर को तैर कर पार करने के लिए? आग में कूद जाने के लिए? हां ये सब हिम्मत के काम हो सकते हैं, लेकिन इन सबसे भी ज़्यादा हिम्मत और ताकत चाहिए सच के साथ खड़े रहने के लिए.
दुनिया के तमाम मुश्किल काम करने के लिए आप सिर्फ आगे बढ़ते हैं. अगर उसे पार कर गये तो आप जीत सकते हैं, लेकिन सच की लड़ाई में जीवन भर लड़ना पड़ता है. यहां जीत हाथ नहीं आती. सिर्फ लड़ना होता है और आपको रोकने के लिए तमाम बुरी ताकतें एक हो जाती हैं.
ये सच्चाई के रास्ते का ख़ौफ़ ही है जो कई अधिकारियों को इस पर चलने से रोकता है, लेकिन कुछ एक अधिकारी हैं जो इस रास्ते पर एक बार निकले तो फिर उन्होंने मुड़ कर नहीं देखा. सच्चाई के इन योद्धाओं में एक अधिकारी का नाम बड़ी प्रमुखता से लिया जाता है.
1991 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका जब से सिस्टम का हिस्सा बने तब से अपनी ईमानदारी की खुरपी से वे लगातार यहां जमी पड़ी भ्रष्टाचार की काई को साफ कर रहे हैं. इस सफाई के बदले जो ईनाम उनको मिले वे किसी मानसिक उतपीड़न से कम नहीं थे लेकिन इसके बावजूद वह इस रास्ते पर चलते रहे.
तो चलिए आज जानते हैं तबादलें का कीर्तीमान स्थापित करने वाले आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका के बारे में:
ऐसी कौन सी डिग्री है, जो IAS खेमका के पास नहीं है
30 अप्रैल 1965 को कोलकाता के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्में अशोक खेमका ने अपने शिक्षा के स्तर को शिखर तक पहुंचाया. अशोक केवल आईएएस ऑफिसर ही नहीं हैं, इसके साथ ही वह कंप्यूटर इंजीनियर तथा एमबीए डिग्री होल्डर भी हैं. 1988 में उन्होंने IIT खड़कपुर से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की.
उस समय वह अपने इंजीनियरिंग बैच के टॉपर रहे थे. इसके बाद खेमका ने मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. भले ही खेमका कंप्यूटर इंजीनियर हो चुके थे लेकिन उनका लक्ष्य आईएएस ऑफिर बनना था इसीलिए उन्होंने अपना सारा ध्यान सिविल सर्विसेज की ओर मोड़ लिया.
1991 में खेमका सिविल सर्विसेज के लिए चुने गये तथा उन्हें हरियाणा कैडर मिला. उनकी पहली पोस्टिंग सन 1993 में हरियाणा के नरनौल में सब डिविजनल मैजिस्ट्रेट के पद पर हुई. खेमका की शिक्षा पद्धतियां यहीं खत्म नहीं होतीं. एक कंप्यूटर इंजीनियर तथा आईएएस होने के अलावा खेमका ने मुंबई से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस में एमबीए भी किया.
इसके साथ उन्होंने इग्नू से इक्नॉमिक्स में एमए तथा एलएलबी की भी शिक्षा प्राप्त की हुई है.
सरकार भले चाहे जिसकी हो, अशोक खेमका नहीं डिगे
सरकार भले चाहे जिसकी हो, लेकिन खेमका को सच बोलने से कोई नहीं रोक पाया. वह जिस भी विभाग में गये, वहां हो रहे फर्जीवाड़े के खिलाफ आवाज़ उठाई. इतना ही नहीं वह सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज़ सीधे जनता तक पहुंचाने के लिए भी जाने जाते हैं. जब खेमका को एक सितंबर 1993 में उनकी पहली पोस्टिंग मिली तब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे स्व. भजनलाल.
शुरू से ही खेमका के तेवर बागी थे. यही कारण रहा कि भजनलाल के कार्यकाल में उनका 6 बार तबादला हुआ. खेमका अपने एक पद पर साल भर से ज़्यादा न टिक सके. कई बार तो कुछ महीनों में ही उनका ट्रांस्फर कर दिया गया. भजनलाल के बाद बंसीलाल के कार्यकाल में भी खेमका का 5 बार ट्रांस्फर हुआ.
वहीं ओम प्रकाश चौटीला के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी 8 बार बदली हुई तथा भूपेद्र सिंह हुड्डा के दो बार के कार्यकाल में उन्हें 18 बार तबादले का दंश झेलना पड़ा. यह सभी तबादले केवल इस कारण होते थे क्योंकि खेमका जिस भी विभाग में जाते वहां के खोटालों की पोल खोल कर रख देते.
पहली बार आए सुर्खियों में कब आए अशोक खेमका
यह साल 2012 था जब पहली बार पूरा देश इस आईएएस के नाम से परिचित हुआ. खेमका ने इस बार अपना हाथ वहां डाला था जहां से उनका हर किसी की नज़रों में आना स्वभाविक था. इसी साल खेमका हरियाणा के लैंड कोनसोलिडेशन एंड लैंड रिकार्ड कम इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन के डायरेक्टर जनरल नियुक्त किये गये थे. हालांकि इस पद पर वह मात्र 80 दिन ही रह सके.
बताया जाता है कि इसका कारण था . उनके द्वारा तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर हाथ डालना. दरअसल खेमका ने गुड़गांव तथा इसके आसपास के इलाकों के जमीनी घोटालों का पर्दाफाश कर दिया था. रॉबर्ट वाड्रा ने भी गुड़गांव की ज़मीन का सौदा किया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह घोटाला 20,000 करोड़ से 350,000 करोड़ के बीच का था. खेमका के लगाए इल्ज़ामों के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया. खेमका को अपने लिए गए इस सख्त फैसले का परिणाम भी भुगतना पड़ा. सबसे पहले तो उनका ट्रांस्फर कर दिया गया.
इसके बाद उन्होंने जिस हरियाणा बीज विकास कॉर्पोरेशन में हुई धांधली की शिकायत की थी उसी मामले में उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ. इसके अलावा उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं सो अलग. लेकिन इन सबके बाद भी खेमका रुके नहीं.
…और शुरू हुआ न रुकने वाले तबादलों का सिलसिला
अपनी 28 साल की नौकरी में खेमका ने अपने एक भी घर का रंग सही से ना देखा होगा. कितना मुश्किल होता होगा उन बच्चों के लिए जो किसी एक स्कूल में अपनी पूरी शिक्षा ना ले पाए होंगे? घर का सामान जब तक नये घर में पूरी तरह सजता भी ना होगा, तब तक घर बदलने का ऑर्डर आ जाता होगा.
जी हां! अशोक खेमका ने अपनी सच्चाई और ईमानदारी के बदले यही सब तो झेला है. अपने 28 साल के कार्यकाल में उनके 53 तबादले हुए. खेमका की सबसे लंबी पोस्टिंग 19 महीने की थी और सबसे छोटी पोस्टिंग एक सप्ताह की. मोटा-मोटा हिसाब लगाया जाए तो हर 6 महीने बाद उनका ट्रांस्फर हुआ है.
कितना बुरा लगता होगा जब कानून और नियम के हिसाब से चलने पर उन्हें इस तरह का इनाम दिया जाता होगा. वे परेशान ज़रूर रहे अपने तबादलों से लेकिन कभी इन सबसे डर कर ईमानदारी का रास्ता नहीं छोड़ा. खेमका से विपक्ष हमेशा खुश रहता है, क्योंकि वे जिस भी सरकार के लिए काम करते हैं उसकी जड़ें खोद कर भ्रष्टाचार के दीमक को मारने में लगे रहते हैं.
ऐसे में विपक्षी दलों के पास खूब सारे मुद्दे होते हैं उछालने के लिए. मगर जब विपक्षी सत्ता में आते हैं, तो खेमका उनके लिए भी दर्द बन जाते हैं. कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि खेमका अपनी ईमानदारी और काम को छोड़ और किसी के सगे नहीं हैं. जब खेमका ने रॉबर्ट वाड्रा की गुड़गांव जमीन सौदे को रद्द किया, तब हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा की सरकार थी.
पद संभालते ही खेमका एक्शन मूड में आ जाते हैं
इस मामले के बाद उनका तुरंत तबादला कर दिया गया. ये उनके 21 वर्षीय कार्यकाल में 40वां तबादला था. बहुत ही साधारण सा महकमा मिला. इसके बाद जब बीजेपी पार्टी हरियाणा की सत्ता में आई तो मनोहर लाल खट्टर ने खेमका को परिवहन जैसे अहम विभाग का आयुक्त नियुक्त कर दिया. लेकिन खट्टर शायद इस बात से अनजान थे कि खेमका कभी शांत नहीं होते.
उन्हें बस मौका चाहिए होता है भ्रष्टाचार की जड़ें खेदने का. परिवहन विभाग में आते ही उन्हें ये मौका मिल गया. अपना नया कार्यभार संभालने के एक सप्ताह के अंदर ही खेमका फिर से एक्शन मूड में आ गये और इस बार उन्होंने ट्रक माफियाओं पर गाज गिरा दी. क्षमता से ज्यादा भार ढोने वाले ट्रकों को सीज करने तथा मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दे दिये गए.
नतीजा ये निकला कि ट्रक मालिकों ने हड़ताल कर दी. और इस हड़ताल के बदले खेमका के सारे आदेश रद्द करते हुए फिर से उनका तबादला कर दिया गया. खेमका इस बार पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग में तैनात कर दिए गये. खेमका को ईमानदारी का जो ईनाम मिला उसके कारण उन्हें काफी तनाव झेलना पड़ा.
वह बराबर ट्वीटर के माध्यम से अपने इस दर्द को जनता के सामने रखते रहे. परिवहन विभाग से ट्रांस्फर के बाद 2 अप्रैल 2015 को उन्होंने ट्वीट किया था, “गंभीर आरोपों के बावजूद परिवहन विभाग से भ्रष्टाचार मिटाने और सुधार लाने के लिए मेहनत की, कोशिश की. लेकिन यह वक्त दर्दनाक है.”
इसी तरह अपने 53वें तबादले के बाद खेमका ने 27 नवंबर 2019 को ट्वीट करते हुए लिखा था “फिर तबादला. लौट कर फिर वहीं. कल संविधान दिवस मनाया गया. आज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एवं नियमों को एक बार और तोड़ा गया. कुछ प्रसन्न होंगे. अंतिम ठिकाने जो लगा. ईमानदारी का ईनाम जलालत.”
जब अशोक खेमका के जज़्बे को किया गया सलाम
वैसे तो अशोक खेमका को उनकी ईमानदारी के बदले कितनी बार तबादलों से सम्मानित किया गया. ये तो आप जान ही चुके हैं, लेकिन कुछ ऐसी संस्थाएं भी रहीं जिन्होंने उनके जज्बे को सलाम किया. उन्हें 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने के लिए एस.आर जिंदल पुरस्कार से सम्मानित करते हुए 10 लाख की ईनामी राशी दी गयी.
इसके साथ ही उन्हें लोक कल्याण कार्यों के लिए मंजूनाथ शानमूंगम ट्रस्ट की तरफ से भी सम्मानित किया. दिल्ली के दो पत्रकारों ने अशेक खेमका के जीवन पर एक किताब भी लिखी है. भवदीप कंग तथा नमिता काला की किताब जस्ट ट्रांल्फर्ड-ए-अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका में खेमका के उन सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जो अभी तक आम जनती के सामने नहीं उजागर हुए थे.
वैसे खेमका जैसी शख्सियत के लिए पुरस्कार मायने नहीं रखते. वे अपने काम को अपना कर्तव्य समझते हैं. यही वजह है कि अपने सहकर्मियों का विरोध झेलने के बाद, धमकियां मिलने के बाद या फिर बार बार तबादला होने के बाद भी उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज़ के धीमा नहीं होने दिया.
अशोक खेमका जैसे अधिकारी वो उम्मीद हैं, जिसके दम पर हम ये आशा कर पाते हैं कि आने वाले समय में उनकी देखा देखी और भी अधिकारी ऐसे आएंगे, जो बिना डरे भ्रष्टाचार से लड़ेंगे. साथ ही एक दिन इस देश को और यहां के सिस्टम को साफ-सुथरा बनाएंगे.
खेमरा जैसे अधिकारी दबाए जाते हैं, क्योंकि वे संख्या में बहुत कम हैं. मगर यदि उनके जैसे कुछ एक और अधिकारी इस सिस्टम का हिस्सा बन जाएं तो सरकार किस-किस का और कहां-कहां तबादला करेगी?