Gujrat bridge collapse: मोरबी सस्पेंशन पुल हादसे में सबसे ज्यादा मरने वालों में महिलाएं और बच्चे ही हैं। सोमवार को पोस्टमॉर्टम में लाशों का ढेर नजर आया। शाम तक कब्रिस्तान और श्मशान में लाशों के दाह संस्कार हुए। एक रात में कई कब्रें खोदी गईं तो एक साथ कई चिताएं जलीं।
अहमदाबाद: मोरबी में केबल ब्रिज हादसे के बैचेन कर देने वाला सन्नाटा था। अपनों को खोने वालों के रोने की चीखें और एंबुलेंस के सायरन की आवाज ही गूंज रही थी। पोस्टमॉर्टम में लाशों के ढेर लगे थे। लोग अपनों के शवों से लिपटकर रो रहे थे। मोरबी के सबसे बड़े कब्रिस्तान का सीन भी रुला देने वाला था। कब्रिस्तान के मुख्य कार्यवाहक गफ्फूर पास्तिवाला ने बताया कि हमें रातभर में 40 कब्रें खोदनी पड़ीं और 12 घंटे के भीतर 20 लोगों को दफनाया गया, जिनमें 8 बच्चे भी शामिल हैं। पास्तिवाला ने बताया कि उन्होंने एक साथ इतनी कब्रें कभी नहीं खोदीं।
कब्रिस्तान में चार कब्रों की एक पंक्ति की ओर इशारा करते हुए पास्तिवाला ने कहा कि वे सुमारा परिवार के थे, जिन्होंने इस त्रासदी में सात सदस्यों को खो दिया। सात लोगों में 4 बच्चे और 3 महिलाएं शामिल हैं। जहां दो महिलाओं और दो बच्चों को मोरबी कब्रिस्तान में दफनाया गया, वहीं एक महिला और उसके दो बच्चों के शवों को उनके पति के घर जामनगर में अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया गया।
आमिर और तौफीक की दफनाई गई लाश
त्रासदी के एक दिन बाद, व्यवसाय बंद रहे और सड़कों सुनसान रहीं। सिर्फ सड़कों पर एम्बुलेंस ही आती-जाती नजर आईं। मोरबी के सबसे पुराने हिंदू श्मशान घाट से लगभग 50 मीटर की दूरी पर ढोलेश्वर महादेव है। इस जगह पर तत्कालीन रियासत की मृत्यु में स्मारक बनाया गया था। यहां रहने वाला 25 वर्षीय आमिर रफीक खलीफा और 18 वर्षीय तौफीक अल्ताफ अजमेरी के परिवार गमगीन हैं नजर आया। कुलीनगर के रहने वाले आमिर और तौफीक रविवार को शहर के सबसे लोकप्रिय आकर्षण झूला कुंड को देखने गए थे, फिर कभी नहीं लौटे।
आमिर रफीक खलीफा का एकलौते बेटा था। वह यह कहते हुए फफक पड़ते हैं कि वह अब कभी नहीं लौटेगा। अपने छोटे चचेरे भाई तौफीक को खोने वाले मकबूल ने कहा कि उन्हें जिंदा बचा लिया गया लेकिन तौफीक को बचाया नहीं जा सका। इसके अलावा, बस्ती में, दो और परिवार 19 वर्षीय चचेरे भाई विजय गणपतभाई राठौड़ और जगदीश मनसुखभाई राठौड़ के निधन के कारण शोक में डूबे हुए हैं। भाइयों का अंतिम संस्कार कुछ ही घंटे पहले पास के श्मशान घाट में किया गया।
एक के बाद एक जलती रहीं लाशें
मच्छू नदी के उस पार, मोक्षधाम श्मशान में, सुरेश परमार दो 10 वर्षीय लड़कों, युवराज और गिरीश मकवाना की जलती हुई लकड़ी की चिता को देखते हैं। युवराज के पिता महेश का अंतिम संस्कार उनके बेटे और भतीजे के सामने विद्युत शवदाह गृह में किया जा रहा था। परमार ने कहा, ‘मेरा चचेरा भाई महेश चाइनीज खाना खरीदने निकला था। वहीं से वह ब्रिज पर घूमने चला गया।’ सौराष्ट्र के छोटे से शहर में एक अन्य सामुदायिक कब्रिस्तान में, मुचड़िया परिवार ने तीन युवा लड़कों- चिराग राजेश मुचड़िया और धार्मिक राजेश मुचड़िया, साथ ही उनके चचेरे भाई चेतन राजू मुचड़िया को दफनाया। ये तीनों उन 134 लोगों में शामिल हैं, जिनकी अब तक केबल ब्रिज हादसे में मौत हो चुकी है।