पंचभूत
हिन्दू धर्म के अंतर्गत विभिन्न देवी-दे‘पंचभूतवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया गया …. साथ ही उनसे संबंधित मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल भी देश-विदेश में मौजूद हैं। भक्त इन स्थानों पर जाकर ईश्वर के साथ अपनी नजदीकी महसूस करते हैं… उन्हें उस सर्वोच्च शक्ति का अहसास होता है जिसपर वे विश्वास करते हैं। आज हम बात करेंगे भगवान शिव को समर्पित ‘पंचभूत’ मंदिरों की… .. जो भारत के दक्षिणी कोने में स्थित है।
भगवान शिव
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को देवों के देव का दर्जा दिया गया है… यही वजह है कि शिव के भक्त इन्हें महादेव के नाम से भी पूजते हैं। जहां ब्रह्मा जी का कार्य रचना करना है, विष्णु जी का कार्य उस रचना की रक्षा करना है वहीं महेश यानि भगवान शिव का कार्य उस रचना में समाहित पापों का विनाश कर एक नए शुरुआत करना है। हम जिन पांच तत्वों, धरती, आकाश, जल वायु, अग्नि… को जानते हैं उन्हें पंचभूत भी कहा जता है और इन्हें नियंत्रित करने वाले हैं भगवान शिव…. ।
पंचभूत मंदिर
जिन पंचभूत मंदिरों की बात हम यहां करने जा रहे हैं उनसे संबंधित पौराणिक कथा, उनका इतिहास बेहद विस्तृत है। आइए जानें दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के पंचभूत स्थल कौन-कौन से हैं और उनका संबंध किस तत्व से है।
एकंबरेशवर मंदिर
यह मंदिर कांचीपुरम (तमिलनाडु) में स्थित है,जिसका संबंध धरती तत्व से है। इस मंदिर का संबंध शैव संप्रदाय के लोगों से है… यहां भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग को पृथ्वी लिंग के नाम से पूजा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शाप के कारण माता पार्वती का रंग काली के समान हो गया था। वे इस शाप से मुक्ति पाने के लिए वहां स्थित आम के प्राचीन पेड़ के नीचे तप करने के लिए बैठ गईं। उनके समर्पण का इम्तिहान लेने के लिए उनपर वहां अग्नि प्रज्वलित कर दी..।ता पार्वती ने शिव का सानिध्य प्राप्त करनेके लिए वहां मिट्टी से शिवलिंग बनाया और फिर तप में लीन हो गई।
कथा
तब देवी पार्वती ने अपने भाई, विष्णु जी से मदद के लिए गुहार करने लगाई। अपनी बहन की रक्षा करने के लिए विष्णु जी ने शिव की जटाओं से चांद उतारकर उसकी शीतलता से अग्नि को शांत किया। इसके बाद पुन: शिव ने पार्वती के तप की परीक्षा लेने के लिए गंगा को वहां भेजा। पार्वती ने आग्रह पर गंगा ने उन्हें परेशान नहीं किया। मा
जंबुकेश्वर मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर तिरुचापल्ली ( तमिलनाडु) में स्थित है, जिसका निर्माण चोला वंश के राजा ने करवाया था। यह मंदिर नीर यानि जल का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है इस मंदिर में आकर जो भी पूजा करता है उसके ना सिर्फ इस जन्म के बल्कि पूर्वजन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। यहां भगवान शिव को जंबुकेश्वर और माता पार्वती को अकिलंदेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। जो भक्त यहां आकर पार्वती के इस स्वरूप की आराधना करता है उसे ज्ञान और बुद्धि की पार्प्ति होती है। इसके अलावा उसकी विवाह और संतान से संबंधित मनोकामना भी पूरी होती है।
अन्नामलाई मंदिर
तमिलनाडु स्थित यह मंदिर भगवान शिव का विश्व में सबसे बड़ा मंदिर जाना जाता है, जिसका संबंध अग्नि तत्व से है। यह मंदिर शैव संप्रदाय की राजधानी भी है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पार्वती ने प्रेमपूर्वक अपने पति भगवान शिव की आंखों को अपने हाथ से बंद कर दिया। उस क्षण में धरती पर से सारी रोशनी, सृष्टि का उजाला पूरी तरह समाप्त हो गया। जैसे कि हम सभी जानते हैं देवताओं का एक क्षण पृथ्वी के कई वर्षों के समान होता है.,.. शिव का एक क्षण के लिए अपने नेत्र बंद करने से पृथ्वी पर वर्षों तक अंधकार छाया रहा। तब भगवान शिव अग्नि के एक स्तंभ के रूप में अनामलई के पहाड़ों के पीछे से उभरें और पार्वती के भीतर समाहित हो गए। यही वजह है कि इस मंदिर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा की जाती है।
चिदंबरम नटराज मंदिर
भगवान शिव का यह मंदिर भी तमिलनाडु में ही स्थित है… जो आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। पौराणिक कथा के अनुसारथिलई जगलों में ऋषियों का समूह रहता था, जिनकी यह मान्यता थी कि ईश्वरीय शक्ति को मंत्रों और चमत्कारी शब्दों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। एक बार भगवान शिव इस खूबसूरत जंगल में मोहिनी (विष्णु जी का स्त्री रूप) के साथ भ्रमण करने आए। सभी ऋषि और उनकी अर्धांगिनी उस खूबसूरत जोड़े को देखकर मंट्रमुग्ध हो गए.. अपनी पत्नियों को भगवान शिव पर मोहित होता देख ऋषियों ने अपने चमत्कार से उनपर नागों का वार किया।
भगवान शिव
भगवान शिव ने उस सर्पों को आभूषण के तौर पर अपने गले,बाजू और कमर पर बांध लिया। इसके बाद ऋषियों ने उनपर सिंह का वार किया,जिसकी खाल भगवान शिव वस्त्र के रूप में पहनते हैं। इसके बाद ऋषियों ने शक्तिशाली दानव को बुलाया जिसका वध कर भगवान शिव ने नटराज का रूप धरकर आनंद तांडव किया। यही वजह है कि इस मंदिर में भगवान शिव के नटराज स्वरूप और साथ ही भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है।
श्रीकालहस्ति मंदिर
यह मंदिर चित्तूर (आंध्र प्रदेश) में स्थित है, इसे वायुस्थल के नाम भी जाना जाता है… यह मंदिर वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह वही मंदिर है जहां शिव के अनन्य भक्त और नयनारों में से एक कनप्पा नामक शिकारी ने अपने दोनों नेत्रों को निकालकर भग्वान शिव को अर्पित किया था। कनप्पा के इस भक्ति भाव से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे मोक्ष प्रदान किया था।