तेलंगाना के सूर्यापेट जिले में राघवपुरम नाम का एक गांव हैं। यह एक शख्स ने अपनी 70 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर जंगल उगा दिया है। पिछले छह दशकों से वह इस जंगल की देखरेख कर रहे हैं। अपने बच्चों को भी उन्होंने बता दिया है कि इससे उन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। यह सिर्फ जीव-जंतुओं के लिए है।
तेलंगाना के सूर्यापेट जिले में एक गांव है। राघवपुरम। इस गांव में 70 एकड़ जमीन पर जंगल फैला है। इसकी खूबसूरती फलों से लदे लाखों पेड़ हैं। इनमें से कई 50 साल से ज्यादा पुराने हैं। कुछ गुजरे तीन दशकों में बढ़े हैं। यह जंगल तमाम पक्षियों और वन्यजीवों का घर है। जंगल में कोई बाड़ नहीं लगी है। 69 साल के दुशरला सत्यनारायण इसकी देखरेख करते हैं।
जमींदार थे दुशरला के पुरखे
दुशरला सत्यनारायण के पुरखे जमींदार थे। उन्हें अपने पिता से 70 एकड़ पुश्तैनी जमीन मिली। अब वह इस जमीन की देखरेख कर रहे हैं। उनका बचपन और जवानी जंगल को उगाने और इसकी देखरेख में निकली है। बचपन से दुशरला अपने आसपास पेड़-पौधे देखना चाहते थे। कभी यह जमीन सिर्फ चरागाह हुआ करती थी। फिर उन्होंने इस जमीन पर इमली और दूसरे पेड़-पौधे लगाने शुरू किए। यहां तक दुशरला ने वर्षाजल संरक्षण के लिए एक नहर तक खोद डाली। तलाब बनाए। इनमें खूब कमल खिलते हैं। ये मछलियों, मेढक और कछुओं का घर हैं।
आज हर एकड़ में 10 लाख से ज्यादा पेड़ उग गए हैं। इनमें आम, अमरूद, इमली से लेकर जामुन और बांस तक शामिल हैं। कई रियल एस्टेट डेवलपर्स ने उनकी जमीन खरीदने की कोशिश की। लेकिन, दुशरला की जिद है कि अपनी अंतिम सांस तक वह जंगल की रक्षा करेंगे।
जंगल में 13 तालाब और छोटी झीलें हैं। कमल के तालाब इसका मुख्य आकर्षण हैं। हालांकि, दुशरला और 10 तालाब बनाना चाहते हैं। राघवपुरम गांव में बने इस जंगल को दुशरला ने अपने बच्चे की तरह देखा है। उन्होंने अपने दो बच्चों को भी साफ कह रखा है कि उन्हें इस प्रॉपर्टी से कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। कारण है कि यह पेड़-पक्षियों और जानवरों के लिए है। इस जंगल को बचाने में उन्होंने छह दशक निकाल दिए हैं।
एग्रीकल्चर से की है बीएससी
दुशरला सत्यनारायण ने एग्रीकल्चर से बीएससी की है। वह बैंक में अधिकारी थे। लेकिन, उन्होंने बाद में इस नौकरी को छोड़ दिया था। नलगोंडा जिले में जल संकट मुद्दे को वह समय देना चाहते थे। इसी के मद्देनजर उन्होंने नौकरी छोड़ी थी। दुशरला ने जो जंगल उगाया है, उसका नैचुरल इकोसिस्टम है। पेड़ों को कतई काटा नहीं जाता है। अगर शाखाएं टूटकर गिर जाती हैं तो उन्हें भी नहीं हटाया जाता है। यह जंगल घना और फल-फूलों से लैस है। जंगल में हर किसी को जाने नहीं दिया जाता है। सिर्फ उन्हें ही जाने की इजाजत दी जाती है जो वाकई में जैव विविधता के बारे में समझना चाहते हैं। जिस तरह से इस जंगल को उगाया गया है वह पर्यावरणविदों और अधिकारियों को भी चौंकाता है।