जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इटली के प्रधानमंत्री मारियो ड्रैगी को भेंट किया गया मार्बल इनले टेबल टॉप दुनियाभर में सुर्खियों में है। ऐसे में आगरा की 500 साल पुरानी पच्चीकारी की कला चर्चाओं में आ गई है। मार्बल इनले का सबसे पहला प्रयोग मुगल बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी में हकीम हाउस में बने शाही हमाम में किया था। शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, आगरा किला में जहांगीरी महल, सिकंदरा के मकबरे में भी लाल बलुई पत्थर में सफेद संगमरमर के इनले का काम किया गया।
आगरा में जहांगीर काल में नूरजहां ने अपने पिता के मकबरे एत्माद्दौला में मार्बल इनले की एक कला पैत्रा ड्यूरा का इस्तेमाल किया, जो बाद में ताजमहल में अपने उत्कृष्ट रूप में दुनियाभर के सामने आई। ताजनगरी में मार्बल इनले के 35 हजार से ज्यादा कारीगर हैं। ये कारीगर गोकुलपुरा, ताजगंज, फतेहाबाद रोड, मलको गली आदि जगहों पर एक से बढ़कर एक पच्चीकारी के नमूने बना रहे हैं।
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प्रधानमंत्री की इस भेंट से मुगलिया दौर की 500 साल पुरानी कला की शान बढ़ी तो मार्बल पच्चीकारी को सम्मान मिला है। गोकुलपुरा की स्टोनमैन क्राफ्ट ने काले मार्बल के बेस पर 12 कीमती पत्थरों के साथ पच्चीकारी कर छह माह में इसे तैयार किया था। 700 से ज्यादा पत्थरों के पीस लगाकर 36 इंच व्यास के टेबल टॉप को पांच हस्तशिल्पियों की टीम ने आकार दिया। आगरा की हस्तशिल्प कला के लिए गौरव के इस पल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर साझा किया तो हस्तशिल्पियों की खुशी का ठिकाना न रहा।
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तुर्की और ईरान की कला का संगम है एत्माद्दौलासफेद संगमरमर पर रंगीन पत्थरों के इनले वर्क का सबसे बेहतर नमूना एत्माद्दौला का मकबरा माना जाता है। मुगल साम्राज्ञी नूरजहां ने इसे अपने पिता की याद में बनवाया था। तुर्की और ईरान की कला का संगम यह पहला स्मारक है, जिसमें तुर्की के ज्यामितीय और ईरान के फूलों की आकृति के इनले वर्क का उपयोग किया गया। ताजमहल में दुनियाभर के कीमती पत्थरों को मार्बल इनले में शामिल किया गया।
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