आखिर क्या है ताइवान जिसको लेकर भिड़ रहे हैं चीन और अमेरिका

दुनिया में विश्व युद्ध के आशंकाओं के बादल कई तनावों के कारण पनप रहे हैं. रूस युक्रेन युद्ध ने जहां रूस और पश्चिमी देशों को परेशान कर रखा है, तो दूसरी तरफ ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका का तनाव चरम पर पहुच रहा है.इन तनावों का असर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) पर दिखने लगा है . रूस ने भी आईएसएस से 2024 तक हटने का ऐलान कर दिया है.  स्टेशन के बारे में अमेरिकी स्पेस एजेंसी का कहना है कि अभी स्टेशन 2030 तक चल सकता है. लेकिन सवाल यही है क्या इसके बाद इस विशालकाय स्टेशन को पृथ्वी (Earth) पर लाया जा सकता है. आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या  कहता है विज्ञान (Science)?

संभव तो है लेकिन
अच्छी खबर यह है कि ऐसा असंभव नहीं है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को पृथ्वी पर वापस लाया जा सकता है. लेकिन बुरी खबर यह है  कि ऐसा करने पर वह पिघली हुई धातुओं का पिंड हो जाएगा और उससे पहले ही उसका काफी हिस्सा बेकार भी हो जाएगा. ऐसा क्यों होगा और क्या ऐसा होने से रोका जा सकता है यह भी एक सवाल है.

एक साथ पहुंचाना संभव नहीं
सबसे पहले तो यह समझा जाए कि इतना विशाल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में पहुंच कैसे गया क्योंकि एक साथ इतना विशाल स्टेशन एक बार में पहुंचाया नहीं जा सकता था. वर्तमान स्टेशन का आकर एक फुटबॉल के मैदान के बराबर है. इसे पृथ्वी से 350 किलोमीटर की ऊंचाई तक नासा के स्पेस शटल के 37 चक्करों के जरिए पहुंचाया जा सका था.

अपनी कक्षा में स्थिर कैसे
इसके लिए अंतरिक्ष यात्रियों को दस साल से ज्यादा का समय लगा था जिससे वह अंतरिक्ष में एकाकार हो सका. अब वह अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में स्थिर है और पृथ्वी का चक्कर लगाता है, लेकिन पृथ्वी पर नीचे नहीं गिरता है. इसके लिए दो तरह के बल इस पर काम करते हैं. बल किसी भी वस्तु को गतिमान बनाए रखते हैं या गतिमान होने से रोकते हैं.

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गुरुत्व का खिंचाव
आईएसएस पर पहला बल गुरुत्व का लगता है. ग्रह जैसे भारी पिंडों पर चीजें उनके केंद्र की ओर खिंचती हैं. इसीलिए हम इंसान हवा में तैर नहीं पाते हैं और उछलने पर वापस भी नीचे गिर जाते हैं. और जैसे जैसे अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी से दूर जाते हैं तो यह बल कम होने लगता है और फिर वे अंतरिक्ष में तैरने लगते हैं. इसी को जीरो ग्रैविटी की स्थिति भी कहते हैं.

एक दूसरा बल
तो फिर आईएसएस पृथ्वी की ओर क्यों नहीं खिंचता है? इसकी सवाल का जवाब वह दूसरा बल है. इसे अपकेंद्री बल कहते हैं. जब भी कोई वस्तु वृत्ताकार में घूमती हैं तो एक बल उस वस्तु को बाहर की ओर धकेलने की कोशिश करता है. इसतरह के बल का एहसास तब होता है जब चौराहे के गोल चक्कर पर कार यह बस में बैठे व्यक्ति तो बाहर की ओर धक्का लगता है.


वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के हिस्सों को घर्षण का सामना करना पड़ेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

एक शानदार संतुलन
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी का चक्कर सही गति से लगाता है जहां अपकेंद्री बल से बाहर की ओर धकेलता है और पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण उसे अंदर की ओर खींचता है. इससे वह संतुलित होकर कक्षा में स्थिर बना रहता है. जब तक इस स्थिति में बदलाव के लिए कोई अतिरिक्त बल नहीं लगता है यह स्तिथि कायम रहती है.

कुछ हिस्सा ही आएगा वापस
अंतरिक्ष से या आईएसएस से अंतरिक्ष यात्री वापस पृथ्वी पर एक विशेष कैप्सूल में आते हैं. जिसमें तीन से ज्यादा लोग नहीं आ सकते. इस कैप्सूल का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होता. यानि आईएसएस भी पूरा का पूरा नहीं बल्कि टुकड़ों पर ही धरती पर लाया जा सकता है. आईएसएस के बंद होने पर इसके कुछ हिस्से काम करते रहेंगे और कुछ को हम धरती पर वापस ला सकते हैं. इसके लिए इसका संचालन करने वाले वैज्ञानिक रॉकेट का उपयोग कर इसे पृथ्वी की ओर धकेलेंगे जिससे ये धरती की ओर गिरने लगेंगे.

इस दौरान आईएसएस का यह हिस्सा पृथ्वी के वायुमडंल से टकराएगा और वायुमडंल की हवा से घर्षण होने के कारण यह जलने लगेगा. इसके बाद इसके प्रशांत महासागर के खाली हिस्से में गिराने का प्रयास किया जाएगा जिसे “ऑशियानिक पोल ऑफ इनएक्सेसिबिलिटी” कहते हैं. यह न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका के बीच का हिस्सा है. यहां रूसी स्पेस स्टेशन मीर स्पेस स्टेशन भी पहले से गिरा पड़ा है.