60 साल पुराना मामला… दाऊदी बोहरा समुदाय में क्या है बहिष्कार प्रथा, अब सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच

संविधान पीठ ने 60 साल पहले यह फैसला सुनाया था कि बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 संविधान के अनुरूप नहीं है। बाद में 1986 में एक याचिका दायर कर 1962 में सरदार सैयदना ताहिर सैफुद्दीन साहेब बनाम बंबई राज्य के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया था।

 dawoodi bohra matter in supreme court

नई दिल्ली: दाऊदी बोहरा समुदाय में लागू बहिष्कार प्रथा के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह इस बात की पड़ताल करेगा कि क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा संविधान के तहत ‘संरक्षित’ है या नहीं। महाराष्ट्र समाजिक बहिष्कार संरक्षण कानून के अस्तित्व में आने के बाद क्या दाऊदी बोहरा की प्रथा को जारी रखा जा सकता है। पीठ को बताया गया कि बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 रद्द कर दिया गया है और महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार से लोगों का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2016 लागू हो गया है।

क्या है दाऊदी बोहरा समुदाय का सामाजिक बहिष्कार
दाऊदी बोहरा इस समुदाय का मुखिया दुनिया में कहीं भी रह रहे बोहरा समाज का धार्मिक गुरु होता है। इनकी ओर से सदस्यों को एक पहचान पत्र जारी होता है और उम्मीद की जाती है धर्म गुरु के आदेशों का पालन करे। यदि कोई नियमों को नहीं मानता तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाता है। इन नियमों को नहीं मानने वाले सदस्य का बहिष्कार किया जाता है। दाऊदी बोहरा समाज के मस्जिद, मदरसे, कब्रिस्तान और सभी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से बाहर कर दिया जाता है। इस प्रथा का कई लोग विरोध भी करते रहे हैं।


कोर्ट में ऐसे चला मामला

2016 के कानून की धारा तीन में समुदाय के एक सदस्य का 16 प्रकार से सामाजिक बहिष्कार किए जाने का उल्लेख है और धारा चार में कहा गया है कि सामाजिक बहिष्कार मना है और ऐसा करना अपराध है। इसमें सजा का भी प्रावधान है। इन 16 में से एक प्रकार समुदाय से किसी सदस्य के निकाले जाने से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 1962 में फैसला सुनाया था कि बंबई बहिष्कार रोकथाम कानून 1949 संविधान के अनुरूप नहीं है। 1986 में एक याचिका दायर कर 1962 में सरदार सैयदना ताहिर सैफुद्दीन साहेब बनाम बंबई राज्य के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया था। दिसंबर 2004 सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा जाना चाहिए, न कि सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के समक्ष।

आदेश को नहीं दी जाती चुनौती

बोहरा समुदाय के ज्यादातर लोग व्यापारी हैं। दाऊदी बोहरा देश के राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में बसे हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक व सऊदी में अच्छी तादाद है। दाऊदी बोहरा समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति अपना अकीदा रखता है। दाऊदी बोहराओं के 21 वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम थे। इनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई जो दाई अल मुतलक सैयदना कहलाते हैं। इन्हें सुपर अथॉरिटी माना गया है और इनके व्यवस्था में कोई भीतरी और बाहरी शक्ति दखल नहीं दे सकती। इनके आदेश-निर्देश को चुनौती नहीं दी जा सकती है।