सौरभ गांगुली के 7 विवाद, जो अब भी उनका पीछा नहीं छोड़ते

सौरभ गांगुली

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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली की सफलता की कहानियाँ आपको हर जगह मिल जाएँगी.

कैसे उन्होंने छोटे-छोटे क़स्बे के क्रिकेटरों को स्टार बनाया. कैसे उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम का कायाकल्प किया. कैसे उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को आक्रमक बनाया और भी बहुत कुछ.

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8 जुलाई 2020 को सौरभ गांगुली 48 साल के हो गए हैं. वे अभी भी क्रिकेट की दुनिया से जुड़े हैं.

लेकिन दादा की सफलता की कहानी के दौर में कई विवाद भी हुए और ज़ोर-शोर से उठे.

तो आज इन्हीं में से सात विवादों की चर्चा, जो गांगुली से जुड़े हुए हैं.

1. टॉस के लिए आते थे लेट

सौरभ गांगुली और स्टीव वॉ

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स्टीव वॉ ऑस्ट्रेलिया के उन कप्तानों में शुमार थे, जो मैदान और मैदान के बाहर खुल कर बोलने के लिए जाने जाते थे. सौरभ गांगुली के साथ 2001 में उनकी तनातनी की एक ख़ास वजह थी.

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स्टीव वॉ का कहना था कि उस समय के भारतीय कप्तान गांगुली जान-बूझकर मैदान पर देर से आते थे.

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अपनी आत्मकथा में स्टीव वॉ ने लिखा है कि कैसे गांगुली उन्हें परेशान करते थे और अक्सर टॉस पर देर से आते थे.

स्टीव वॉ ने लिखा है कि उस सिरीज़ के दौरान गांगुली सात बार टॉस के लिए देर से आए थे.

कई साल बाद आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स के ख़िलाफ़ एक मैच के दौरान भी गांगुली देर से टॉस के लिए आए. इस पर राजस्थान रॉयल्स के तत्कालीन कप्तान शेन वॉर्न इतना ग़ुस्सा हो गए कि मैच के बाद उन्होंने गांगुली पर जम कर भड़ास निकाली.

गांगुली की लेटलतीफ़ी के क़िस्से अपनी जगह है, लेकिन इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ एंड्रयू फ्लिंटफ़ ने काउंटी क्रिकेट के दौरान गांगुली की राजशाही के चर्चे किए हैं. कई क्रिकेट कमेंटेटर गांगुली को प्रिंस ऑफ़ कोलकाता भी कहते थे.

वर्ष 2000 में गांगुली लंकाशायर के लिए काउंटी खेलते थे. फ़्लिंटफ़ ने अपनी किताब में लिखा है कि कैसे गांगुली अधिकतर समय आराम फ़रमाया करते थे और वर्क आउट के लिए आते ही नहीं थे. गांगुली पर ये भी आरोप लगा था कि वे अपनी किट दूसरे खिलाड़ियों से उठवाते थे.

2. गांगुली-चैपल विवाद

ग्रेग चैपल

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भारतीय क्रिकेट टीम के कोच के रूप में ग्रेग चैपल का कार्यकाल काफ़ी विवादों में रहा है. लेकिन सौरभ गांगुली के साथ उनके मतभेद ने एक समय भारतीय क्रिकेट टीम को बाँट दिया. इसकी बुनियाद तो 2005 में ही रख दी गई थी. लेकिन 2007 के विश्व कप तक आते-आते मामला काफ़ी विस्फोटक हो गया था.

ग्रेग चैपल के काम करने के तरीक़े पर सचिन तेंदुलकर ने भी आपत्ति जताई थी, जिसकी चर्चा सचिन ने अपनी किताब में भी की थी.

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2007 के विश्व कप के दौरान भारतीय टीम सुपर-8 तक भी नहीं पहुँच पाई और बाहर हो गई. ग्रेग चैपल कई बार नेट्स पर खिलाड़ियों से उलझ जाते थे और मैच के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पत्रकारों से. एक बार बीबीसी के सवालों पर भी ग्रेग चैपल काफ़ी ग़ुस्सा हो गए थे.

गांगुली और चैपल के बीच विवाद इतना बढ़ गया था कि गांगुली को 2005 में भारतीय टीम के कप्तान पद से हटा दिया गया. यही नहीं गांगुली को वनडे टीम से भी हटा दिया गया. मज़ेदार बात ये है कि गांगुली की सिफ़ारिश पर ही ग्रेग चैपल को भारतीय टीम को कोच बनाया गया था.

आख़िरकार गांगुली टीम में आए और 2007 की विश्व कप की टीम का हिस्सा भी बने, जिसके कप्तान राहुल द्रविड़ थे. लेकिन गांगुली के मन में चैपल को लेकर टीस बनी रही. 2007 में टीम के ख़राब प्रदर्शन के बाद ग्रेग चैपल की कोच पद से छुट्टी हो गई.

3. द्रविड़-गांगुली विवाद

सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़

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जब गांगुली के ग्रेग चैपल से ख़राब रिश्ते चल रहे थे, उन दिनों राहुल द्रविड़ टीम के कप्तान थे. गांगुली को लगता था कि द्रविड़ कप्तान होते हुए भी, चैपल के मामले में चुप रहते हैं. वर्ष 2011 में इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में गांगुली ने द्रविड़ को घेर ही लिया.

गांगुली ने कहा- राहुल द्रविड़ ऐसे व्यक्ति हैं, जो चाहते हैं कि हर चीज़ ठीक से चलती रहे. वे जानते थे कि कई चीज़ें ग़लत हो रही थी, लेकिन उनमें चैपल से ये कहने की हिम्मत नहीं थी कि वे ग़लत कर रहे हैं.

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दरअसल ग्रेग चैपल के कोच रहते गांगुली के साथ जो भी हुआ, गांगुली उसे हर मौक़े पर सामने रखते रहे थे. ये वो दौर था, जब गांगुली को हटाकर द्रविड़ को कमान दी गई थी.

गांगुली के आरोपों पर द्रविड़ ने भी जवाब दिया. द्रविड़ ने कहा- “अगर गांगुली कह रहे हैं मैं चैपल को कंट्रोल नहीं कर सकता था, तो वे अपनी राय रखने को स्वतंत्र हैं. उन्होंने भारत के लिए कई सालों तक क्रिकेट खेली है. लेकिन वे अपनी बात मुझसे नहीं कहलवा सकते. मेरी उनके साथ इस संबंध में कभी कोई बात नहीं हुई है.”

4. मैदान पर अंपायर से तकरार

सौरभ गांगुली

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एक ओर तो कहा जाता है कि गांगुली ने कप्तान के तौर पर भारतीय टीम को आक्रामक बनाया, तो दूसरी ओर मैदान पर इसी आक्रामक व्यवहार के कारण गांगुली को कई बार पाबंदियों का भी सामना करना पड़ा.

1998 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ बेंगलुरू टेस्ट में आउट दिए जाने के बाद उन्होंने नाराज़गी दिखाई थी. उन पर एक वनडे मैच के लिए पाबंदी लगी.

एक बार फिर 2000 में अंपायरों से लड़ने की क़ीमत गांगुली को चुकानी पड़ी. उस समय ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ मैच चल रहा था. गांगुली पर अंपायरों को धमकाने की कोशिश का आरोप लगा और एक बार फिर पाबंदी लगी.

2001 में श्रीलंका दौरे में एलबीडब्लू आउट दिए जाने पर गांगुली इतने चिढ़ गए कि उन्होंने अंपायर को अपना बल्ला दिखा दिया. उन पर फिर एक वनडे की पाबंदी लगी.

2005 में तो धीमी गति से ओवर कराने के लिए उन पर पाबंदी लगी. 2005 में वे ख़राब दौर से गुज़र रहे थे. उनसे रन नहीं बन रहे थे.

और आख़िकार उन्हें अपनी कप्तानी भी गँवानी पड़ी.

5. माइक डेनिस विवाद

सौरभ गांगुली और सचिन तेंदुलकर

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दरअसल ये विवाद सिर्फ़ गांगुली को लेकर नहीं, क़रीब क़रीब पूरी भारतीय टीम को लेकर था. ये भी माना जाता है कि ये घटना और उसका नतीजा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारतीय दबदबे का प्रतीक थी.

विवादों के केंद्र में थे मैच रेफ़री माइक डेनिस. 2001 में पोर्ट एलिज़ाबेथ में भारत और दक्षिण अफ़्रीका के बीच सिरीज़ का दूसरा टेस्ट मैच चल रहा था.

मैच के दौरान विवाद इतना बढ़ गया कि रेफ़री माइक डेनिस भारतीय खिलाड़ियों पर कार्रवाई करने के पक्ष में आ गए. सचिन तेंदुलकर तक पर गेंद से छेड़छाड़ के आरोप लगे.

कप्तान गांगुली पर आरोप लगे कि वे अपने खिलाड़ियों को मैदान पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं. गांगुली को डेनिस की फटकार पड़ी.

ज़रूरत से ज़्यादा अपील करने की वजह से वीरेंदर सहवाग, दीप दासगुप्ता, हरभजन सिंह, शिब सुंदर दास पर भी कार्रवाई हुई.

लेकिन भारतीय क्रिकेट अधिकारियों और मीडिया में शोर-शराबे के बाद केवल वीरेंदर सहवाग को छोड़कर सभी के ख़िलाफ़ पाबंदियाँ हटा ली गईं.

गांगुली इस मामले में अपनी टीम को लेकर खुलकर सामने आए. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आज भी उस एपिसोड को गांगुली एंड टीम से जोड़कर देखा जाता है.

6. लॉर्ड्स में शर्ट निकालने की घटना

युवराज सिंह और सौरभ गांगुली

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बात वर्ष 2002 की है. नैटवेस्ट सिरीज़ का फ़ाइनल मैच लॉर्ड्स में भारत और मेज़बान इंग्लैंड के बीच खेला जा रहा था.

भारत को 326 रनों का लक्ष्य मिला था, जिन्हें सभी असंभव सा मान रहे थे.

लेकिन गांगुली की कप्तानी में युवा खिलाड़ियों ने वो कर दिखाया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.

ख़ासकर युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ़ की वो अविस्मरणीय पारी अब भी लोगों के ज़ेहन में है. जैसे ही भारत ने मैच जीता, लॉर्ड्स की बाल्कनी में कप्तान गांगुली अपनी शर्ट निकालकर झूम उठे.

उस समय भारत के कोच थे जॉन राइट. जॉन राइट और गांगुली की जोड़ी को भारतीय टीम में बदलाव का सूत्रधार माना जाता है.

जॉन राइट ने अपनी किताब में लिखा है कि शुरू में हरभजन सिंह ने भी ऐसा करना की योजना बनाई थी. और फिर ये प्लान था कि सभी भारतीय खिलाड़ी ऐसा करेंगे, लेकिन राहुल द्रविड़ ने सबको रोक दिया था.

लेकिन वो ऐसा करने से गांगुली को नहीं रोक पाए.

7. रवि शास्त्री से तकरार

रवि शास्त्री

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वर्ष 2016 में बीसीसीआई ने कोच की चयन के लिए एक समिति का गठन किया था, जिसमें सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण थे.

इस समिति की सिफ़ारिश पर अनिल कुंबले को भारतीय क्रिकेट टीम का हेड कोच नियुक्त किया गया है.

कोच के लिए रवि शास्त्री ने भी इंटरव्यू दिया, लेकिन शास्त्री के इंटरव्यू के दौरान गांगुली मौजूद नहीं थे. वो इंटरव्यू वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुआ था क्योंकि शास्त्री बैंकॉक में थे.

रवि शास्त्री ने कहा कि इंटरव्यू में न आकर गांगुली ने उनका अपमान किया है. जिसका गांगुली ने भी जवाब दिया.

गांगुली ने कहा- अगर मैं मौजूद नहीं था तो वे भी मौजूद नहीं थे. उन्हें बैंकॉक में छुट्टियाँ मनाने की बजाए इंटरव्यू के लिए भारत में मौजूद रहना चाहिए था.

हालांकि बाद में कुंबले ने कोच का पद छोड़ दिया और रवि शास्त्री भारतीय टीम के कोच बने.