73 साल की उम्र में एवरेस्ट के बेस कैंप तक जा पहुंचे द्वारका के निरंजन देबनाथ, बनाया रेकॉर्ड

एक्टिव लाइफस्टाइल जीने वाले 73 साल के बुजुर्ग ने माउंड एवरेस्ट के बेस कैंप तक चढ़ाई करके एक रेकॉर्ड बनाया है। इंडिया बुक ऑफ रेकॉर्ड में उनका नाम सबसे उम्र दराज वाले शख्स के रूप में दर्ज हुआ है जिसने बेस कैंप तक चढ़ाई की है। उन्होंने 11 से 18 मार्च के बीच यह चढ़ाई की।

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73 साल के निरंजन देबनाथ ने माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पहुंचकर बनाया रेकॉर्ड (फोटोः BCCL)
विशेष संवाददाता, द्वारका: द्वारका के डीजेए अपार्टमेंट में रहने वाले 73 साल के निरंजन देबनाथ तमाम अड़चनों को पार करते हुए माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक जा पहुंचे। इंडिया बुक ऑफ रेकॉर्ड में निरंजन का नाम एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति के तौर पर शामिल किया गया है। निरंजन ने यह सफर 11 मार्च को शुरू कर 18 मार्च को पूरा किया।

निरंजन ने बताया कि वह यूएन से इंटरनैशनल सिविल सर्वेंट के तौर पर रिटायर हुए हैं। उनकी ज्यादातर पोस्टिंग संवेदनशील देशों जैसे इजराइल, लेबनान, ईराक आदि में रही है। उनका बचपन श्रीनगर में बीता और इसी वजह से वह पहाड़ों के करीब रहे हैं। उन्होंने माउंट कैलाश, हर की दून, केदारनाथ, अमरनाथ, गोमुख, तपोवन पर ट्रेकिंग की है।

निरंजन ने बताया कि वह एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाते रहे हैं। दो घंटे का योग और व्यायाम उनकी आदत है। साइकल ग्रुप के साथ 50 से 100 किलोमीटर की साइकल राइड करते हैं। लंबी दूरी जैसे द्वारका से गुरुग्राम आदि का सफर पैदल ही तय कर लेते हैं। मेट्रो आदि में वह हमेशा सीढ़ियों का इस्तेमाल करते हैं।

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निरंजन देबनाथ (73 साल)

पिछले साल निरंजन अपने बेटे के पास सिडनी गए थे। वहीं, कुछ दोस्त एवरेस्ट बेस कैंप जाने का प्लान बना रहे थे। बस वहीं से खयाल आया कि इस ट्रैक को भी करना चाहिए। जनवरी में इरादा किया। उनके गाइड ने उन्हें तीन महीने का शेड्यूल दिया था कि आपको यह लाइफस्टाइल अपनानी है। लेकिन व्यस्त होने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाए। लेकिन इस दौरान उन्होंने दो घंटे की नियमित एक्सरसाइज जारी रखी। 5 से 6 किलोमीटर का ब्रिस्क वॉक किया। अपनी सोसायटी के ग्यारह फ्लोर की सीढ़ियां चढ़कर नीचे आ जाते हैं।
मानसरोवर खतरनाक है, लेकिन एवरेस्ट बेस कैंप काफी मुश्किल है। इसे यहां का मौसम और भी खतरनाक बना देता है। यहां स्नोफॉल और स्नो स्ट्रॉम आम है। खाने पीने का शेड्यूल नहीं बन पाता। स्नो फॉल में उपर जाना और नीचे आना उतना मुश्किल नहीं है। लेकिन स्नो फॉल और स्नो स्टॉर्म के बाद जब मौसम साफ होता है और धूप आती है तो सफर रिस्की हो जाता है। वजह यह है कि वहां पत्थरों पर बर्फ जम जाती है और इसकी वजह से ट्रेक फिसलन वाला हो जाता है। ऑक्सिजन का स्तर काफी कम हो जाता है।