Bengaluru News: कर्नाटक के बेंगलुरू में प्रोफेसर ने 79 साल की उम्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की है। इतनी ज्यादा उम्र में भी ऐसा कर दिखाने वाले प्रोफेसर का कहना है कि उन्होंने यह सपना काफी पहले देखा था। लेकिन कुछ परिस्थितियों के चलते यह अब जाकर पूरा हुआ है।
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सालों तक अमेरिका में किया काम
प्रभाकर कुप्पाहल्ली ने कहा, ‘यह एक लंबे समय से देखा गया सपना था। हालांकि मैंने इसकी योजना तब बनाई थी जब मैं छोटा था और अमेरिका में काम कर रहा था। हालांकि कुछ ऐसी परिस्थितियां बन गईं जिसके कारण ऐसा नहीं हो पाया। जब मैं 75 साल का हुआ तो मैंने इसे आजमाने का फैसला किया।’ प्रभाकर साल 2017 में बेंगलुरु के दयानंद सागर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पीएचडी कार्यक्रम में शामिल हुए। जहाँ वे एक गेस्ट टीचर हैं। उन्होंने कहा कि ‘आखिरकार पांच साल बाद मेरा सपना पूरा हुआ”। इस बड़े दिन पर उनका मानना था कि इस सबको लेकर सबसे आगे उनके गाइड आर केशवमूर्ति रहे। जो कि एक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे। उन्होंने मेरे सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। वहीं केशवमूर्ति ने कहा कि, ‘प्रभाकर बिना पीएचडी के विजिटिंग फैकल्टी सदस्य थे, लेकिन शोध में उन्हें कोई हरा नहीं सकता था।’
उम्र को नहीं बनने दिया रुकावट की वजह
79 की उम्र में पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले प्रभाकर ने उम्र को आगे आड़े नहीं दिया। प्रभाकर की सफलता में उम्र रोक का कोई कारक नहीं है। साल 1944 में जन्मे प्रभाकर छात्रों का मार्गदर्शन करना बखूबी जानते हैं। वे शोध कार्यों को लेकर लिखते हैं और उसे शीर्ष विज्ञान पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया जाता है।
IIT बॉम्बे में किया काम
प्रभाकर ने साल 1966 में IISc बैंगलोर से इंजीनियरिंग में स्नातक किया। जिसके बाद कुछ सालों के लिए IIT बॉम्बे में काम किया और अमेरिका चले गए। उन्होंने 1976 में पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। भारत लौटने से पहले 15 सालों तक वहीं काम किया। प्रभाकर की पत्नी पुष्पा प्रभा एक गृहिणी हैं और उनका बेटा एक आईटी पेशेवर है। उनके गाइड और मैंगलोर विश्वविद्यालय की फैकल्टी का कहना है कि प्रभाकर ने पीएचडी करते वक्त अपनी उम्र को लेकर कोई रियायत नहीं मांगी।
आरामतलब नहीं हैं प्रभाकर
विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख जूनाथ पट्टाबी ने कहा, ‘मुझे याद है कि कोर्स-वर्क परीक्षा जो कि तीन घंटे का मूल्यांकन है।प्रभाकर की उम्र को देखते हुए विभाग ने उन्हें एक आरामदायक कुर्सी मुहैया कराई थी। लेकिन प्रभाकर ने किसी भी तरह की तरजीह से इनकार कर दिया और अन्य उम्मीदवारों की तरह ही सामान्य कुर्सी का इस्तेमाल किया।’