83, सम्राट पृथ्वीराज:बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह क्यों गिर रही हैं बॉलीवुड की बड़ी फ़िल्में

83, सम्राट पृथ्वीराज:बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह क्यों गिर रही हैं बॉलीवुड की बड़ी फ़िल्में

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सालाना सबसे अधिक फ़िल्में बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड, कोरोना महामारी के दो सालों बाद भी मुश्किल दौर से गुज़र रहा है.

महामारी ने बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है. पहले की तरह खचाखच भरे सिनेमा हॉल देखने की उम्मीदों पर पानी फिरा है और फ़िल्म उद्योग को अब तक करोड़ो रुपये के राजस्व का नुकसान हो चुका है.

फ़िल्म देखने वाले इस बात को लेकर ज़्यादा सचेत हो गए हैं कि वो अपना पैसा कहां ख़र्च कर रहे हैं.

बॉक्स ऑफिस के आंकड़ें बताते हैं कि इस साल के शुरुआती छह महीनों में रिलीज़ होने वाली 20 उल्लेखनीय हिंदी फ़िल्मों में से 15 फ़िल्में, बॉक्स ऑफिस पर औंधें मुंह गिरी हैं.

इनमें देश के सबसे बड़े सुपरस्टार्स की फ़िल्में भी शामिल हैं. जैसे- रणवीर सिंह की ’83’ और ‘जयेशभाई ज़ोरदार’, अक्षय कुमार की ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और ‘बच्चन पांडे’ और कंगना रनौत की ‘धाकड़’.

फ़िल्मों के व्यापार पर विशेष नज़र रखने वाले जोगिंदर टुटेजा कहते हैं, “इन फ़िल्मों को क़रीब सात सौ से नौ सौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. ‘फ़िल्मों के सैटेलाइट और डिजिटल राइट्स नहीं बेचे जाते तो भरपाई करना और भी मुश्किल हो जाता.”

टुटेजा का मानना ​​है, “अगर स्थिति ऐसी ही रही तो इस साल सिनेमा हॉल का कुल राजस्व 450 मिलियन डॉलर से अधिक नहीं होगा. 2019 में बॉक्स ऑफिस पर बनी लगभग 550 मिलियन डॉलर की हिंदी फिल्मों से ये 100 मिलियन डॉलर कम है.

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बॉक्स ऑफिस पर क्यों औंधे मुंह गिर रही हैं फ़िल्में?

फ़िल्मों के ख़राब प्रदर्शन के कई कारणों में से एक कारण उनका कमज़ोर कंटेंट हो सकता है.

एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, “एक व़क्त था जब कमज़ोर कंटेंट के बावजूद बड़े सितारे अपनी फैन फॉलोइंग के बूते दर्शकों को सिनेमाहॉल तक खींच लाते थे और फ़िल्में ठीक ठाक कमाई कर लेती थीं. लेकिन व़क्त के साथ दर्शकों की प्राथमिकता बदली है और वो फ़िल्म के कंटेंट पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं.”

लेकिन फ़िल्म निर्माता ये नहीं समझ पा रहे हैं कि कोविड के पहले बॉक्स ऑफिस पर चलने वाली मिड-बजट और गंभीर विषय वाली फ़िल्मों भी कोविड के बाद अच्छा व्यवसाय क्यों नहीं कर रही हैं.

देश के सबसे बड़े फिल्म स्टूडियोज़ में एक टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार कहते हैं कि दर्शक अब फ़िल्म में अच्छा कंटेंट और बड़े कलाकार दोनों देखना चाहते हैं.

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निर्माताओं में दुविधा की स्थिति

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भूषण कुमार की निर्मित हॉरर कॉमेडी फ़िल्म ‘भूल-भुलैया 2’, इस साल की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्मों में एक रही है.

फिर भी, वह मानते हैं कि फ़िल्म निर्माताओं में दुविधा की स्थिति है. बॉक्स ऑफिस पर लगातार पिट रही फ़िल्मों के कारण वो ये नहीं समझ पा रहे हैं कि कैसी फ़िल्में दर्शकों को पसंद आएंगी.

भूषण कुमार जैसे कई निर्माता दर्शकों की बदलती पसंद के कारण जूझ रहे हैं. स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म्स की पहुंच और सिनेमाघरों से लोगों की बढ़ती दूरी के बीच बॉक्स ऑफिस पर एक फ़िल्म को सफल बनाना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है. ऊपर से कोविड ने स्थिति को और बदतर बना दिया है.

कुमार मानते हैं कि बढ़ती रिलीज़ डेट, कैंसलेशन और कोविड प्रोटोकॉल के कारण फ़िल्म का औसतन बजट 10 से 15 फीसदी तक बढ़ गया है. वहीं, टिकट अधिक महंगे हो गए हैं, थिएटर की क्षमता कम गई है और कई स्क्रीन महामारी के दौरान स्थाई रूप से बंद हो गए हैं.

एमके ग्लोबल के मुताबिक़ नेपोटिज्म से लेकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोपों के बीच बॉलीवुड विरोधी सोशल मीडिया कैंपेन ने भी फ़िल्म उद्योग को बड़ा नुकसान किया है. हालांकि ये नुकसान कितना हुआ है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है.

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पारंपरिक रूप से दक्षिण भारत में बनी फ़िल्में अपने क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करती हैं.

लेकिन पिछले कुछ समय से, हिंदी पट्टी में इन फ़िल्मों के हिंदी डब्ड संस्करणों की लोकप्रियता बढ़ी है.

इन फ़िल्मों ने यहां काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के मामले में वो बॉलीवुड फ़िल्मों के समकक्ष खड़ी नज़र आती हैं. जैसे दक्षिण की एक्शन पैक्ड फ़िल्में ‘RRR’, ‘केजीएफ चैप्टर-2’ और ‘पुष्पा’.

विशेषज्ञों का मानना है कि मुंबई के स्टूडियोज़ में बनने वाली हिंदी फ़िल्मों में दक्षिण के ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों जैसे भव्य सेट्स, आकर्षक गाने और स्लो मोशन दृश्यों की कमी है.

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फ़िल्म समीक्षक सुचरिता त्यागी देश में दक्षिण फ़िल्मों की बढ़ती लोकप्रियता पर कहती हैं, “अगर अब मैं सिनेमा हॉल जाती हूं, तो मुझे एक अलग तरह का अनुभव चाहिए, जैसे मैं किसी रोमांचक सफ़र पर हूं.”

महामारी में घर बैठे लोगों ने स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर कई गैर-हिंदी, दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की ख़ोज की, क्योंकि जब आप घर होते हैं तो एक व़क्त के बाद हिंदी फ़िल्मों से आपका मन ऊब जाता है.

लेकिन विश्लेषक इस ट्रेंड को भरोसेमंद नहीं बताते. एमके ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार, “क्षेत्रीय फिल्मों (दक्षिणी और गैर-दक्षिणी) का प्रदर्शन आमतौर पर उनके पारंपरिक बाज़ार के बाहर कम ही प्रभावी रहा है.”

इस साल की दूसरी छमाही में अब कोई भी बड़ी क्षेत्रीय फ़िल्म रिलीज़ नहीं होने वाली, ऐसे में हिंदी फ़िल्मों के ऊपर ही बॉक्स ऑफिस की सेहत को दुरुस्त रखने का दारोमदार होगा.

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अब आगे क्या?

बॉलीवुड अब ‘फॉरेस्ट गंप’ के हिंदी रीमेक ‘लाल सिंह चड्ढा’ और रणबीर कपूर की एक्शन ड्रामा फ़िल्म ‘शमशेरा’ जैसी बहुप्रतीक्षित रिलीज़ पर दांव लगा रहा है, ताकि पहली छमाही में हुए नुकसान की भरपाई दूसरी छमाही में की जा सके.

साल की पहली छमाही की तुलना में दूसरी छमाही में अधिक फिल्में रिलीज़ होने जा रही हैं, ऐसे में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन प्री-कोविड स्तरों तक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है.

कोई भी ये नहीं लिखना चाहता कि अब बड़े पर्दे पर फ़िल्म देखने के दिन ढल गए हैं, लेकिन विश्लेषकों का मानना ​​​​है कि लोगों में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की बढ़ती लोकप्रियता और दर्शकों के बदले स्वभाव ने बेशक व्यवसाय पर प्रभाव डाला है.

एमके ग्लोबल की रिपोर्ट बताती है कि ऐसे कई मामले होंगे जहां दर्शक सिनेमा हॉल जाकर फ़िल्म देखने की बजाय उनके ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होने का इंतज़ार करेंगे, ख़ासकर तब, जब फ़िल्में औसत होंगी.

फ़िल्मों के ‘डायरेक्ट टू स्ट्रीमिंग’ रिलीज़ की संख्या भी बढ़ने की संभावना जताई गई है.

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एमके ग्लोबल के अनुसार, भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म ने ओरिजिनल कंटेंट के लिए 500 मिलियन डॉलर का निवेश किया है, जो बढ़ते सब्सक्राइबर की तुलना में कहीं अधिक है.

लेकिन बदलाव का यह पैटर्न इसी तरह रहेगा, क्योंकि सब्सक्राइबर की संख्या कंटेंट से ज़्यादा फीस पर निर्भर करती है.

हालांकि इस इंडस्ट्री के लिए ये अच्छी ख़बर है, क्योंकि जिस तुलना में स्ट्रीमिंग से होने वाला मुनाफ़ा बढ़ेगा उसी तुलना में फ़िल्म निर्माताओं पर दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाने का दबाव भी बढ़ेगा.

त्यागी कहती हैं, “जब आप हर फ़िल्म पर 1600-2400 रुपये खर्च कर रहे होते हैं, तो आपकी अपेक्षाएं भी बढ़ती हैं, क्योंकि इतने ही पैसे ख़र्च कर आप साल भर के लिए किसी भी स्ट्रीमिंग सेवा का सब्सक्रिप्शन ले सकते हैं. तो लोग इसका विकल्प क्यों नहीं चुनेंगे? मैं देख रही हूं कि ये अधिक से अधिक हो रहा है.”