केन्द्रीय विधान सभा (Central Legislative Assembly) के सदस्य विधान सभा में जुटे थे. वायसरॉय ‘पब्लिक सेफ़्टी बिल’ पेश कर रहे थे, बिल पेश होने के बाद कानून पास होना था. अचानक कोई चीज़ उड़कर आई और लोगों से दूर हॉल के बीचों-बीच जो खाली जगह थी वहां गिरी.
कुछ सेकेंड्स में ही पूरे हॉल में धुंआ भर गया. लोग चिल्लाने लगे, इधर-उधर भागने लगे और तभी अचानक एक आवाज़ चारों तरफ़ गूंज उठी
“इंक़लाब ज़िन्दाबाद” “साम्राज्यवाद का नाश हो”
दो नौजवान नारे लगाते हुए पर्चे फेंकने लगे और उनमें से एक ने कहा, “बहरों को सुनाने के लिए बम के धमाके की ज़रूरत पड़ती है.”
बम फेंकने वाले कोई और नहीं हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के भगत सिंह (Bhagat Singh) और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) थे. बम धमाके के बाद असेम्ब्ली में अफ़रा-तफ़री मच गई. लोग इधर-उधर भागने लगे लेकिन भगत सिंह और बटुकेश्वर वहीं खड़े रहे. नारे लगाते रहे.
इन बिल्स के विरोध में किया धमाका
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का बम फेंकने का मकसद था.. बम फेंकने का मकसद था ट्रेड्स ऐंड डिस्प्यूट्स ऐंड पब्लिक सेफ़्टी बिल (Trades And Disputes And Public Safety Bill) का विरोध, बहरों को सुनाना, सो रहे साम्राज्यवादियों को जगाना. ट्रेड्स ऐंड डिस्प्यूट बिल पहले ही पास हो चुका था. इस कानून के अमल होने के बाद मज़दूरों के हड़ताल पर पूरी तरह पाबंदी लग गई थी.
बम धमाके से पहले पब्लिक सेफ़्टी बिल पेश किया जा रहा था. इस बिल के दम पर सरकार हर विरोध को, हर विद्रोह को दबाना चाहती थी. इस बिल के ज़रिए अंग्रेज़ों का मकसद था किसी भी संदिग्ध को बिना मुकद्दमे के जेल में डालना. हुकूमत के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही थी. क्रांतिकारी इस बिल का भी विरोध कर रहे थे.
क्रांतिकारियों ने दी अपनी गिरफ़्तारी
बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बेहद आसानी से भाग सकते थे लेकिन दोनों भागे नहीं. दोनों को बम धमाकों का दोषी पाया गया और उम्रक़ैद की सज़ा दी गई. बटुकेश्वर को काला पानी भेजा गया. वहीं भगत सिंह को सांडर्स की हत्या का दोषी भी पाया गया और फांसी की सज़ा सुनाई गई. 24 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी जानी थी लेकिन पुलिस ने फांसी 23 मार्च को ही दे दी.
साइमन भी असेम्ब्ली में मौजूद था
The Print के एक लेख के अनुसार, 8 अप्रैल, 1929 को जॉन साइमन भी असेम्ब्ली में मौजूद था. साइमन कमिश्न के प्रमुख जॉन साइमन जब भारत आए थे तब उनका और इस कमिश्न का पुरज़ोर विरोध हुआ था. साइम गो बैक, साइमन वापस जाओ को नारों से भारत का आसमान गूंज उठा था.
बटुकेश्वर दत्त ने जेल सुपरिटेंडेंट को लिखी थी चिट्ठी
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को लाहौर कॉन्सपीरेसी केस के सिलसिले में लाहौर लाया गया. लाहौर जेल के सुपरिटेंडेंट को बटुकेश्वर दत्त ने चिट्ठी लिखकर कहा कि उनके साथ ‘पॉलिटिकल प्रिज़नर्स’ की तरह व्यवहार होना चाहिए. बटुकेश्वर ने चिट्ठी में ये भी लिखा कि जब कोई यूरोपियन कानून तोड़ता है तो उसे जेल में सभी सुविधाएं मिलती हैं. लेकिन हिन्दुस्तानियों के साथ भेदभाव किया जाता है. बटुकेश्वर ने ये भी लिखा, ‘हमें लोग भटके हुए, धैर्यहीन नौजवान कहते हैं. हमें पढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए ताकि हम ये देख सकें कि हम में धैर्य है या नहीं और हम भटके हुए नौजवान हैं या नहीं.’