अपनी अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स से जब भी बाहर निकलती हूं, पार्किंग में कुर्सी पर बैठे मोबाईल चलाते या बीड़ी सुलगाते दिख जाते हैं केयरटेकर अंकल. मैं निकलते हुए उन्हें सलाम करते हुए जाती हूं और वो भी हंसकर जवाब में हाथ सिर पर धर देते हैं. दोनों कुछ नहीं कहते, न सुनते सिर्फ़ आंखों से ही एक दूसरे की उपस्थिति स्वीकार करते हैं.
मज़े की बात ये है कि वापस आते वक़्त ये सिलसिला नहीं होता, हां निकलते वक़्त ज़रूर होता है. अब ये आदत बन गई है तो जब कभी केयरटेकर अंकल नहीं दिखते, लगता है कुछ छूट गया. अमूमन लोगों के साथ ऐसा होता है कि वो सोचते हैं उन्होंने बालकनी का दरवाज़ा तो लगाया था न, गैस स्टोव तो बंद की थी न, सब करने के बाद भी लगता है कुछ छूट तो नहीं रहा. मेरे लिए केयरटेकर अंकल की नमस्ते वैसी ही हो गई है.
इंडियाटाइम्स की एक छोटी सी कोशिश है A Day In The Life- ऐसे लोगों की कहानियां सामने लाने की जिन्हें हम रोज़ देखते हैं, जानते हैं, जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता. हम नहीं जानते की जिस राशन दुकान वाले के यहां से हमने दाल-चावल मंगाया, उसकी ज़िन्दगी में क्या चल रहा है. इसी कोशिश के तहत बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स की देखभाल करने वाले ‘एक केयरटेकर’ की कहानी लेकर आये हैं.
“खजुराहो के पास से हैं. लेकिन हमारे पास में था हम कभी जा ही नहीं पाए. अभी कहां, अभी फंसे हैं.”, केयरटेकर अंकल उर्फ़ हरि प्रसाद बात-चीत करते हुए बार-बार अपने कमरे की तरफ़ देख रहे थे. शायद थोड़ा सा असहज थे क्योंकि और दिन से आज उनकी आवाज़ भी धीमी थी.
दोपहर के समय हमारी बात-चीत हुई तो लोगों की उतनी आवाजाही भी नहीं थी. वरना अक़सर कोई अंकल से कोई न कोई कुछ न कुछ कहने आ जाता है, कभी गैस भरवाने तो कभी पानी ख़त्म होने की शिकायत करने.
“कोई फायदा नई है खेती में जित्ती लग्गत लगाओ उससे कम निकलता है. हमने दो साल पहले अपने हिस्से की करी थी न तो 15000 हज्जार लग्गत के लगे थे, 5000 की फसल हुई थी. उरद लगाया था, मूंग दाल बारिश के टैम पे. फिर हमने करी नहीं. पहले तो मम्मी-पापा थे वो करते रहते थे अब तो मम्मी-पापा भी नहीं है तो ऐसे ही पड़ी हुई है जमीन.”
दिल्ली के सरोजिनी नगर के झुग्गी में रहे
“2001 में आए, पहले रहे सरोजिनी नगर की झुग्गियों में रहें. मेरी बड़ी लड़की वहीं हुई थी, झुग्गी में. वहां हम माली का काम करते थे, अभी तक माली का काम करते थे 5-6 साल पहले ही छोड़ा है. पारक था सोसाइटी की तरफ़ से वहीं करते थे. जब 1700 से मिल रह रहे थे मेरे को.”
हरि प्रसाद अंकल ने दिल्ली के कई इलाकों में माली का काम किया, सैदुलाजाब, साकेत के पार्क, खेलगांव में उन्होंने कई पेड़-पौधे लगाए, उनकी देखभाल की.
“2002 में सरोजिनी नगर की झुग्गी टूटी और फिर सैदुलाजाब आ गए थे. परियाबरन की तरफ रहे 4-6 महीने फिन गांव चले गए थे, गांव से फिन आये, फिन यहीं है हम. इसी में है हम 20 साल से.”
जिस क्षेत्र के बारे में बात-चीत हो रही थी वहां सिर्फ़ जंगल और झुग्गियां थीं. हरि प्रसाद अंकल ने अपने सामने 5 मंज़िला और 6 मंज़िला इमारतों को बनते देखा.
5-6 सालों से कर रहे हैं केयरटेकर का काम
मेरे इमारत कॉम्प्लेक्स में अब हरि प्रसाद अंकल टंकियों में पानी भरने, गैलरी-सीढ़ियों की साफ़-सफ़ाई और कॉम्प्लेक्स की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं. बीते 5-6 सालों से उनका यही रूटीन है. जिनके छप्पर वाले कमरे में रहते थे उन्हीं ने हरि प्रसाद को कॉम्प्लेक्स की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दे दी.
“इनको चाहिए था भरोसे वाला आदमी, इनको भरोसे है हम पे”,
आंटी ने भी बात-चीत में हिस्सा लिया. बाद में जब मैंने आंटी से फ़ोटो खिंचने की इजाज़त मांगी तो आंटी हंस दी और प्यार से मना कर दिया.
“हमने सोचा की बच्चों को लेकर कहां इधर-उधर भगेंगे, हमने भी काम पकड़ लिया.”
आंटी ने बताया कि इस कॉम्प्लेक्स में भी वे किराया देकर रहते हैं. इस परिवार में 5 सदस्य हैं, और एक कमरे के मकान में रहता है ये परिवार. हरि प्रसाद अंकल साल के 12 महीने बाहर सोते हैं क्योंकि ड्यूटी की डिमांड है कि वो हमेशा मुस्तैद रहे. ऐसे ही नहीं, उनके बिस्तर के पास एक लट्ठ भी रखी रहती है.
कैसे बीतता है हरि प्रसाद अंकल का दिन?
आमतौर पर केयरटेकर अंकल 4 बजे तक उठ जाते हैं.
“मैं यहां पोंछा मार रहा था. वहां हमारे वो सांड़ूू भाई सो रहे थे तो उनकी नींद खुल गई इधर भनई सो रहा था मेरा तो वो जग गया तो कह रहा मामा तुम तो बड़ी जल्दी जग गए. मैंने कही क्या करूं भैया हमारा तो रोज का काम है.”
मैंने अंकल के सोने की जगह दोबारा देखी और फिर से वही सवाल आया कि रोज़ कोई ऐसा कैसे सो सकता है, वो भी सुकून की नींद, आज अंकल ने जवाब भी दे दिया.
“पता तो लग जाता है फिन मैं बोलता नहीं किसी से, निकल जाता है वो. आदत हो गई. पड़े रहते हैं, हमें क्या करना है. जिसको आना-जाना है जाओ, गेट मत खुला छोड़ना, गेट खुला छोड़ोगे सुबह कैमरे में चेक करवा लेंगे.”
“चार बजे उठकर सब जगह झाड़ू-पोंछा करता हूं, उधर फिन इसमें फिन इसमेें, चारों में. 12 बज जाते करते-करते. अभी फ़्री हुआ हूं.”
सुबह 4 बजे उठकर सारी इमारतों की साफ़-सफ़ाई में ही अंकल को दोपहर हो जाती है, नाश्ता नहीं करते वो सीधा खाना खाते हैं. 12-1 बजे से पहले खाना नहीं खाते, चाय दो-तीन दफ़े पी लेते हैं.
“जब मेरा ऐसा झाड़ू-पोंछा लग गया तब जगा देता हूं, चाय पीकर फिर चला जाता हूं छत पर, टंकी वगैरह देखने के लिए. फिन उसके बाद फिन आया फिन चला जाता हूं इस छत पर उस छत पर झाड़ू-पोंछा करने. फिन आया नीचे फिन पानी देखता हूं.”
“4 बजे फिर उठता हूं फिन टंकी इधर की भरी, उधर की भरी, सात बज जाते हैं. उसके बाद 10 बजे तक बैठे रहते हैं. और क्या? पिछले 5-6 साल से यही रूटीन है.”
मैंने केयरटेकर अंकल से पूछ दिया कि उन्हें कुछ और करने का मन नहीं किया, 5-6 साल से एक ही रूटीन में हैं. थोड़ा अजीब सा प्रश्न ज़रूर था लेकिन उन्होंने बेहद आराम से जवाब दिया.
“क्या करेंगे बताओ. पढ़े-लिखे तो है नहीं. अब क्या पढ़ाई करेंगे. सैन कर लेता हूं. गिनती वगैरह कर लेता हूं.”
आंटी बगल में बैठी थी तो हमने उनसे भी पूछ लिया. मुझे पता चला था कि आंटी दसवीं तक पढ़ी हैं.
“जो मां-बाप ने ढूंढ दिया कर ली शादी. मां-बाप की नाक थोड़ी कटाने जाएंगे?”
बात-चीत के दौरान हम मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िला और हीरा खुदाई तक भी पहुंच गए. बातें तो ऐसी ही होती हैं, एकबार शुरू हों तो ख़त्म नहीं होती, बस बातें करने का समय होना चाहिए. अंकल आंटी दोनों का ही दिल्ली में मन लग गया है और इस जीवनशैली के आदी हो गए हैं.
कहते हैं जिस इंसान को जिस बात का जुनून होता है वो नहीं छूटता, हरि प्रसाद अंकल को बाग़वानी का है. सुबूत के तौर पर बिल्डिंग के ठीक पीछे खाली प्लॉट में लकड़ियों से घिरा उनका बागीचा. ये सीमेंट वाली ज़मीन है और दिल्ली की मिट्टी की क्वालिटी अच्छी नहीं है. इस बागीचे में उन्होंने अनार, पपीता, इमली, शरीफा जैसे फलों के पेड़ और मिर्ची, बैंगन, तोरी जैसी सब्ज़ियां लगा रखी हैं. यही नहीं कोने में लेमनग्रास भी लगाया हुआ है. बात-चीत के दौरान अंकल ने थोड़े से लेमनग्रास तोड़कर मुझे भी दे दिए, कहा चाय में डालिएगा.
अंकल जीना साफ़ करते हैं, लोगों को कहते हैं कि कूड़ा बाहर मत रखो लेकिन बहुत से लोग नहीं सुनते. बहस होती हैं लेकिन पढ़े-लिखे लोग भी नहीं समझते और न ही उन्हें समझाना आसान है.
बात-चीत के आख़िर में अंकल से उनकी उम्र पूछी तो उन्होंने कहा 40… आंटी ने सुन लिया और दूर से ही ऊंची आवाज़ में पूछा तुम 40 के हो, मेरी 42 उम्र हो गई?