बेटी की विदाई में खाजा, कसार और लड्डू तीन चीज़ें एकदम ज़रूरी थे और आज भी हैं. पेटी भरकर विदाई में खाजा जाता है. गौने-दौंगे दुल्हन की विदाई में ये ज़रूर जाता था. पहले यह मिठाई ख़ास मौकों पर ही बनती थी लेकिन अब दुकानों पर भी ये मिल जाती है.
इस लेख को हमने पूनम यादव की मदद से लिखा है. 45 वर्षीय पूनम एक गृहणी हैं. वो 16 की उम्र में गोरखपुर से दिल्ली आ गईं और इतने साल इसी शहर में बिताये. दिल्ली में रहते हुए उन्होंने गोरखपुर को बहुत बार मिस किया। कभी वहां के त्यौहार, वहां के रीति-रिवाज़ और वहां का खाना. गोरखपुर सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश में बनने वाली डिश ‘खाजा ‘ को भी वो ख़ूब याद करती हैं. इंडियाटाइम्स हिंदी के साथ इस मिठाई के इतिहास, उससे जुड़े किस्से और इसकी रेसिपी शेयर कर पूनम, एक बार फिर गोरखपुर के अपने उस घर में पहुंच गई जहां वो चाव से ‘खाजा’ खाया करती थी. आगे का लेख आपको पूनम जी के शब्दों में मिलेगा. चलिए, उन्हीं के शब्दों में पढ़ते हैं खाजा की कहानी.
खाजा मिठाई कोई ऐसी वैसी मिठाई नहीं है. ये ख़ास है क्योंकि ये ख़ास मौके पर बनती है यानी शादी-ब्याह. मेरे यहां पूर्वांचल में शादी व्यंजनों में खाजा सबसे ख़ास मिठाई है. मुझे अभी भी याद है बचपन में यानी 80 के दशक में इस मिठाई के लिए हम कितने इंतज़ार में रहते थे. घर में शादी होने पर ये जी भर खाने को मिलता था या फिर गांव में किसी की शादी होने पर ये शगुन मिठाई के रूप में मिलता था.
बेटी की विदाई में खाजा, कसार और लड्डू तीन चीज़ें एकदम ज़रूरी थे और आज भी हैं. पेटी भरकर विदाई में खाजा जाता है. गौने-दौंगे दुल्हन की विदाई में ये ज़रूर जाता था. पहले यह मिठाई ख़ास मौकों पर ही बनती थी लेकिन अब दुकानों पर भी ये मिल जाती है.
मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्मी. कम उम्र में मेरी शादी हो गयी और दिल्ली आ गयी. खैर, मुझे अभी भी याद है जब गांव में किसी के घर शादी होती थी और घर घर मिठाई बांटने वाली नाउन हमारे घर खाजा देने आती थी. अमीर घर वाले दो खाजा देते थे और थोड़ी कम बेवत वाले एक खाजा. इस दौरान, हर घर बदले में नाउन को अनाज देता था. सोचिये कितना अच्छा था वो समय जब लोग घर आई नाउन को अनाज देते थे, क्योंकि वह समाज को बांधने का काम करती थी.
वैसे इस स्वादिष्ट खाजा के बारे में कई कहानियां कही जाती है. कहते हैं कि ये मिठाई सदियों पुरानी है. 12वीं सदी में लिखी गई किताब मानसोल्लासा (अभिलाशितार्थ चिंता मणि) में इसका ज़िक्र है. कहा जाता है कि इस मिठाई की उत्पत्ति अवध में हुई.
ये सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी खूब पसंद की जाती है. एक अवधारणा है कि इस मैदे से बनी मिठाई का नाम खाजा खुद भगवान बुद्ध ने रखा था. अपने अनुयाइयों के साथ सिलाव(बिहार) की यात्रा के दौरान उन्होंने इसे चखा था.
दिलचस्प बात है कि बिहार के सिलाव खाजा को तो GI टैग तक मिला हुआ है. साल 2018 में इसे GI टैग दिया गया. कहा जाता है कि 1872-73 में JD Beglar ने यहां का दौरा किया. इस दौरान, उन्होंने स्थानीय लोगों से इसके बारे में बात की, तो लोगों ने कहा कि यह राजा विक्रमादित्य के समय से बन रहा है. जबकि एक अन्य कहानी में लोगों ने कहा कि राजगीर से होते हुए भगवान बुद्ध जा रहे थे, तब उन्हें यह मिठाई दी गयी. उन्हें ये पसंद आई और उन्होंने अपने शिष्यों को भी इसे खाने को कहा. इसके बाद उनके शिष्यों ने यह बनाना शुरू किया और यह मशहूर हो गयी.
एक कहानी ओडिशा से भी निकलती है. इस कहानी के अनुसार, ये मिठाई भगवान जगन्नाथ को बहुत अच्छी लगती थी, मगर पुरी में इसे बनाना किसी को नहीं आता था. फिर एक दिन एक मिठाईवाले के सपने में भगवान जगन्नाथ आये और इसे बनाने की बात कही. ये मिठाईवाला मुस्लिम समुदाय का था, उसने भगवन से खाजा बनाने की विधि पूछी. भगवान की बताई विधि के अनुसार ये मिठाई बनाकर ले गया और मंदिर में उन्हें भोग लगाने चला गया. लेकिन, उसके दूसरे धर्म की वजह से उसे प्रवेश से रोका गया. इस दौरान एक कुत्ता आया और उसकी मिठाई को भगवान के चरणों में चढ़ा दिया. कहते है इसके बाद से ही भगवान जगन्नाथ को खाजा मिठाई का भोग लगाया जाने लगा.
कहानियां तो सुन ली..अब इसे बनाने के बारे में भी जान लेते हैं.
कैसे बनाएं?
खाजा बनाने के लिए सबसे पहले सबसे पहले मैदे में मीठा तेल मिलाकर गूंद लें. इसके बाद इसे 20 से 25 मिनट तक गीले कपड़े से ढक दें. इसके बाद रोटी के बराबर पतला बेलें और ऐसी पांच रोटी बेल लें. इसके बाद चावल के आटे में थोड़ा तेल मिला लें. इस मिक्सचर को इन रोटियों पर अप्लाई करें.
हर रोटी पर परत लगाने के बाद एक के ऊपर दूसरी रोटी रखते जाएं. इसके बाद इन रोटियों के बंडल को दो उंगली के स्पेस के साथ रोल कर लें. पूरा मोड़ने के बाद इन्हें चाक़ू से काट लें. इसके बाद इन मैदे के रोल्स पर एक-एक करके हल्का बेलन चलाकर बेल लें. धीमी आंच में कड़ाही में तेल गरम कर तल लें. इस दौरान उसकी परतें अपनेआप खुलती जायेंगी. तलने के बाद उन्हें दो तार की बनाई हुई चाशनी में डाल दें. बस, खाजा तैयार है!
शहर में आने के बाद इसका मिलना अब काफी कम हो गया है, लेकिन साल में जब मैं अपने मायके जाती हूं, तो खाजा खाना कभी नहीं भूलती हूं.
गोरखपुर की पूनम यादव के शब्दों में आपको ‘खाजा’ की कहानी कैसी लगी, हमें ज़रूर बताएं. इंडियाटाइम्स हिन्दी अपनी इस नई पहल में अलग-अलग लोगों के ज़रिये भारतीय खाने की कहानियां और उनसे जुड़ी यादें आप तक पहुंचाने की कोशिश करेगा. अगर आपके पास अपने राज्य की ख़ास मिठाई या व्यंजन से जुड़ी कोई कहानी या याद है, तो हमसे ज़रूर शेयर करें. हम इसे और बेहतर कैसे बना सकते हैं, इस पर अपनी राय ज़रूर रखें.