QR CODE के ज़रिये ख़ूब हो रही धोखाधड़ी, बचने के लिए अपनाएं ये तरीके

क्यूआर कोड

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सतीश ने सेकेंड हैंड चीज की खरीद-बिक्री की एक वेबसाइट पर अपने पुराने सोफे को बेचने का विज्ञापन दिया था. अपने सोफे का फोटो अपलोड करने और पोस्ट क्रिएट के कुछ ही मिनटों के बाद किसी ने इसे खरीदने की इच्छा जताई. कोई भी और जानकारी मांगे बगैर उसने बताया कि वह सोफे की कीमत के तौर पर 25 हजार रुपये भेज रहा है उसे सतीश का व्हाट्सऐप नंबर चाहिए.

जैसे ही सतीश व्हाट्सऐप मोड पर आए, खरीदार ने उन्हें एक और मैसेज भेजा, ” मैं आपको एक क्यूआर कोड भेजूंगा. जैसे ही आप स्कैन करेंगे आपको पैसे मिल जाएंगे.”

अमूमन जब भी हम पेमेंट करते हैं तो क्यूआर कोड स्कैन करते हैं. सतीश ये जानते हैं. उनके मन में शंका हुई. उन्होंने खुद से सवाल किया, ” क्या पैसे पाने के लिए भी क्यूआर कोड स्कैन करना पड़ता है”.

पूछने पर संभावित ग्राहक ने तत्परता से कहा – बिल्कुल. लिहाजा सतीश ने व्हाट्सऐप पर मिले क्यूआर कोड को स्कैन कर दिया. उनके पास तुरंत एक मैसेज आया- आपको 25 हजार रुपये मिल रहे हैं. इसके साथ ही उन्हें एक ओटीपी मिला जिसे उन्हें डालना था.

सतीश का शक बढ़ने लगा. अगर ग्राहक पैसे देने के लिए तैयार है तो फिर उन्हें ओटीपी क्यों मिला है. लेकिन उन्होंने बगैर सोचे-समझे ओटीपी डाल दिया.

क्या है क्यूआर कोड और क्यों होता है इस्तेमाल?

क्यू आर का मतलब है क्विक रेस्पॉन्स. 1994 में एक जापानी ऑटोमोबाइल कंपनी डेन्सो वेयर ने इसे विकसित किया था. यह मैट्रिक्स बार कोड है. इसे मशीन के जरिये पढ़ा जा सकता है. इस कोड में जरूरी जानकारी होती है. जब इसे मशीन के जरिये पढ़ा जाता है तो सभी जानकारियां सामने आ जाती हैं.

ये चीजों को पहचानने या इसकी ट्रैकिंग करने या फिर दूसरी जानकारियों के लिए आपको वेबसाइट की ओर ले जाने के लिए भी इस्तेमाल होता है. उदाहरण के लिए अगर हम किसी कार पर लगे कोड को स्कैन करेंगे तो कार की फंक्शनिंग सी जुड़ी जानकारी दिखने लगेगी. या फिर हमें यह जानकारी भी मिल जाएगी अपनी मैन्यूफैक्चरिंग प्रोसेस के दौरान कार किन चरणों से गुजरी है. ये क्यूआर कोड आपको कार की वेबसाइट तक भी ले जा सकती है.

जल्दी ही कार इंडस्ट्री से दूसरे उद्योगों ने भी इसे अपना लिया. इससे होने वाली सुविधा इसे अपनाने में प्रेरक बनी. इसमें यूपीसी बार कोड ( ऊपर से नीचे आने वाली सीधी चौड़ी लाइनें) से ज्यादा जानकारियां स्टोर हो सकती हैं. जापान में क्यूआर कोड का इस्तेमाल कब्रों में भी होता है. जैसे ही आप क्यूआर कोड को स्कैन करेंगे सभी शोक संदेश आपके मोबाइल फोन की स्क्रीन पर दिखने लगेंगे.

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क्यूआर कोड से पेमेंट

हम क्यूआर कोड में अपने बैंक अकाउंट और यहां तक कि क्रेडिट कार्ड का ब्योरा भी डाल सकते हैं. हम इसे तरह भी डिजाइन कर सकते हैं कि ये पेमेंट प्रोवाइडर के लिए भी काम कर सके.

आम तौर पर जब हमें किसी को पैसा भेजना होता है तो उसके अकाउंट का ब्योरा लेते हैं. उस अकाउंट नंबर को अपने अकाउंट से जोड़ते हैं और तब पैसे ट्रांसफर करते हैं. लेकिन उस अकाउंट का कोई क्यूआर कोड हो तो स्कैन करते ही हमें उसका पूरा ब्योरा मिल जाता है. इसके बाद हम पैसा तुरंत ट्रांसफर कर सकते हैं.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने पिछले साल सितंबर महीने में एक स्टोरी छापी थी. इसमें कहा गया था कि क्यूआर और यूपीआई में 100 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.लेकिन कारोबारियों खास कर छोटे व्यापारियों का मानना है कि क्यूआर कोड ज्यादा उपयोगी है. कोड मिल जाने के बाद वे इसका प्रिंट आउट लेकर अपनी दुकान की दीवार पर चिपका देते हैं. इसके उलट उन्हें पीओएस मशीन खरीदने पर उन्हें कम से कम 12 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. मोबाइल पीओएस मशीन खरीदने पर 5 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

भविष्य में क्यूआर कोड बिल में भी छपे मिल सकते हैं. ग्राहकों को ऐप और वेबसाइट के जरिये इसके ब्योरे में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बगैर किसी झंझट के इसे स्कैन कर पेमेंट कर सकते हैं.

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क्यू आर कोड पेमेंट की दिक्कतें

क्यू आर कोड से सुविधा तो होती है लेकिन इससे गलतियों और धोखाधड़ी की आशंका बनी रहती है. क्यूआर कोड के जरिये कई तरह की साइबर क्राइम को अंजाम दिया जा रहा है. लिहाजा आपको दो चीजों को ध्यान में रखना चाहिए.

  • जब आपके बैंक में कोई रकम जमा होनी हो तो आपको किसी को ओटीपी नहीं बताना पड़ता है. आप जब किसी को पैसे भेज रहे हों तब आपके मैसेज पर आए ओटीपी को वैरिफाई करना होता है.
  • अगर आपके अकाउंट में कोई पेमेंट आना है तो किसी क्यूआर कोड को स्कैन करने की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ किसी अकाउंट में पेमेंट करते समय क्यूआर कोड स्कैन करना पड़ता है.

अगर आप इन दो बातों को ध्यान में रखेंगे तो आप इस तरह की धोखाधड़ी के फंदे में फंसने से बच जाएंगे. जिस तरह हम अनजान लोगों की ओर भेजे क्यूआर कोड लिंक को स्कैन करने से पहले सावधानी बरतते हैं उसी तरह हम इस बात को भी लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए ये कहां से ओरिजिनेटेड है. यानी कहां से बनाया गया है.

कुछ साइबर अपराधी इस सुविधा का फायदा उठा कर तुरंत ही कोड में बदलाव कर देते हैं जो आसानी से पकड़ में नहीं आते. इस तरह वे एक नया अकाउंट खोल लेते हैं. दुकानों मे लगे इस तरह के कोड से खरीदार की ओर से किया गया पेमेंट दुकानदार तक नहीं पहुंचता है और खरीदार को भी चपत लग जाती है.

इसलिए स्कैन करने से पहले क्यूआर कोड को चेक कर लें. हो सकता है कि आपके सिस्टम में क्यूआर कोड की आड़ में कोई मैलवेयर इंस्टॉल कर दिया गया हो. आम तौर पर छोटे दुकानदारों की दुकान में ले क्यूआर कोड की तस्वीर बड़ी होती है.इससे ग्राहक इसे दूर ही स्कैन कर पाते हैं. कोविड के दौर मे ऐसा इसलिए किया गया था कि ग्राहक लोगों के संपर्क में आए बगैर दूर से ही इसे स्कैन कर ले.

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क्यूआर कोड के मामले में क्या सावधानी बरतें?

  • क्यूआर कोड स्कैन करने से पहले दूसरे पक्ष के ब्योरे को जांच ले. जानकारियों की पुष्टि होने के बाद ही पेमेंट करें. इससे अगर स्कैनर या उनके कोड में कोई गड़बड़ी हुई तो हमें इसका तुरंत पता चल जाएगा
  • आपके अकाउंट से पेमेंट सुनिश्चित होने के बाद यह सुनिश्चित कर लें कि जिसे पेमेंट किया उस तक पैसा पहुंचा है या नहीं.
  • अगर आपके अकाउंट से पैसा कट गया है और जिसे मिलना है उस तक नहीं पहुंचा है तो हमें तुरंत संबंधित ऐप से बैंक से संपर्क करना चाहिए. इससे घाटे की आशंका कम हो जाती है.
  • सिर्फ क्यूआर कोड के मामले में ही नहीं कोई भी डिजिटल पेमेंट में हड़बड़ी नहीं दिखानी चाहिए. पैसा पहुंचने में कुछ वक्त लगता है.
  • अमूमन पेमेंट ऐप में एक क्यूआर कोड लगा होता है. इसके अलावा क्यूआर कोड को स्कैन करने के लिए कुछ खास ऐप भी होते हैं. लेकिन उन्हें डाउनलोड करने से पहले आप उन ऐप की रेटिंग और रिव्यू देख लें. पूरी तरह संतुष्ट होने पर भी ये ऐप डाउनलोड किए जाने चाहिए.नहीं तो ऐसे ऐप धोखाधड़ी का जरिया बन सकते हैं.

कहते हैं कि शातिर से शातिर कातिल भी कोई अनजाने में कोई सुराग छोड़ जाता है. इसी तरह शातिर साइबर अपराधी भी हमारी लापरवाही को अपना हथियार बनाते हैं. लिहाजा क्यूआर कोड से पेमेंट करते वक्त हमेशा सोच-समझ और जांच-परख कर काम करें.