अभिनेता सलमान खान के समधी व पंडित सुखराम के बेटे को नारी शक्ति से चुनौती, मोदी और प्रियंका…

शिमला, 02 नवंबर  : हिमाचल प्रदेश की मंडी (सदर) सीट के खास मायने हैं। यहां बाॅलीवुड स्टार सलमान खान के समधी व हिमाचल की राजनीति के चाणक्य पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा परिवार की  विरासत को बरक़रार रखना चाहते है। तो कांग्रेस के दिग्गज कौल सिंह की बेटी नारी शक्ति बनकर इतिहास बदलने की जद्दोजहद में है।

 लोगों में इस बात को लेकर भी रोष है कि अनिल शर्मा के दल बदलने के कारण मंडी के विकास में दो साल के कार्यकाल का नुकसान हुआ है। दीगर है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समय-समय पर मंडी सदर के विकास में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। मगर अनिल ऊर्जा मंत्री के पद का इस्तेमाल नहीं कर सके। वो बेटे आश्रय शर्मा के मोह में फंसे रहे जिसे कांग्रेस ने 2019 में मंडी संसदीय सीट से टिकट दिया इसके बाद से ही अनिल शर्मा की सरकार से खटास चलने लगी। मंडी (सदर) के विधायक अनिल शर्मा को मंत्री पद की कुर्सी खोनी पड़ी। चंद सप्ताह पहले ही पूर्व मंत्री का सीएम जयराम ठाकुर से समझौता हुआ।

ये निर्वाचन क्षेत्र इस कारण भी हॉट सीट की फेहरिस्त में शामिल है क्योंकि एक साल के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को संबोधित किया बल्कि प्रियंका गांधी पहुंची। दीगर है कि एक बार पीएम मोदी मौसम ख़राब होने की वजह से मंडी नहीं पहुंच पाए,लेकिन वर्चुअल संबोधन किया था।

फोटो में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता और  चल अचल संपत्ति का ब्यौरा दिया गया है। 

    सीट का प्रतिनिधित्व दिवंगत पंडित सुखराम ने कांग्रेस व हिविकां के विधायक के तौर पर किया। 1993 में बेटे को विरासत सौंप दी थी। वो कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी बन गए, लेकिन पंडित जी ने कांग्रेस से अलग होकर हिविकां का गठन किया तो 1998 में खुद चुनाव में उतरे।

    1972 के बाद 1985 व 1990 में दो ऐसे चुनाव हुए, जब परिवार मैदान में नहीं था। 50 साल के इतिहास में पंडित सुखराम का ही वर्चस्व चला। 2017 में पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा ने चुनाव तो भाजपा के टिकट पर लड़कर जीत हासिल की थी, लेकिन पुत्रमोह में ऊर्जा मंत्री का पद गंवाना पड़ा।

    चुनाव की बेला पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अनिल शर्मा को मना लिया तो पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा ने भी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। शायद, परिवार इस बात को लेकर आश्वस्त हो गया कि अनिल शर्मा के बाद इस सीट से आश्रय शर्मा को उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है। यानि, राजनीति तीसरी पीढ़ी में भी जारी रहेगी।

   इसमें कोई दो राय नहीं है कि मंडी सीट पूरी तरह से पंडित सुखराम के बाद उनकी दूसरी व तीसरी पीढ़ी के इर्द-गिर्द घूमती है।

   गौरतलब है कि 1993 के बाद से लगातार ही विधायक की कुर्सी दिवंगत पंडित सुखराम के घर में ही रही है। हिमाचल विकास कांग्रेस के सूत्रधार स्व. पंडित सुखराम के परिवार को इस बार के चुनाव में दल बदलने के आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा है।

   कांग्रेस ने चंपा ठाकुर पर ही दांव खेल कर दिवंगत पंडित सुखराम के परिवार में सेंध लगाने की कोशिश की है। 2017 के चुनाव में चंपा ठाकुर ने अनिल शर्मा के 58.12 प्रतिशत की तुलना में 39.06 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। पांच सालों से विधायक अनिल  शर्मा के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी हावी है। एक बात ये भी है कि पंडित जी के केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद ही परिवार से बाहर कांग्रेस का टिकट गया था।

   इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा ने भी अनिल शर्मा पर दांव इसी कारण खेला है, क्योंकि 50 साल में एक बार ही भाजपा का फूल 2017 में उस समय खिला था, जब अनिल शर्मा को ही  टिकट दिया गया।

भाजपा में बगावत….
सत्तासीन राजनीतिक दल भाजपा को इस बार बगावत का भी सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ प्रवीण कुमार चुनाव मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने श्यामलाल को प्रत्याशी बनाया है। ये भी बताया गया है कि श्याम लाल की पृष्ठभूमि भी भाजपा से जुड़ी रही है। प्रवीण की बगावत का सीधा असर अनिल शर्मा पर पड़ रहा है। प्रवीण पिछले कई सालों से भाजपा में टिकट के लिए अपनी पारी का इंतजार करते रहे। इस दफा पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए आदेश कर दिए थे, लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम में जयराम ठाकुर ने दोबारा अनिल शर्मा को वापस भाजपा में लाकर प्रवीण को दरकिनार कर दिया।

मंडल भाजपा में भी प्रवीण के लिए कार्यकर्ता तैयारियों में जुट गए थे। अनिल की उम्मीदवारी से कई कार्यकर्ता भी नाराज हैं। उनकी नाराजगी का असर भी सीधा-सीधा कांग्रेस प्रत्याशी चंपा ठाकुर को लाभ पहुंचा रहा है। भाजपा युवा मोर्चा के कई कार्यकर्ता भी अनिल शर्मा को अंदर खाते पसंद नहीं करते। वह प्रवीण के साथ खुद को सहज महसूस कर रहे थे।

उधर, कांग्रेस प्रत्याशी चंपा ठाकुर को महिलाओं का समर्थन जुटाने में लगी  है। साथ ही वह अपने प्रचार में सुखराम परिवार को दल बदलू बताकर प्रचार को धार दे रही हैं। अनिल शर्मा के साथ सबसे बड़ी दिक्कत भाजपा के फ्रंटल आर्गेनाईजेशन से समनव्य की हैं, ऐसा न होना शर्मा की राह में रोड़े अटका रहा है। वहीं, युवा कांग्रेस मंडल व सेवा दल डटकर चंपा ठाकुर के साथ खड़ा है। यानि, संगठनात्मक रूप से भी चंपा ठाकुर को इस बात का लाभ मिल रहा है।

   उधर, वैसे तो मेजर खेम सिंह ठाकुर का संबंध बल्ह से है, लेकिन वो इस बार भी मंडी सदर से चुनाव मैदान में हैं। राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने संजय कुमार को मैदान में उतारा है। इसके अलावा राजीव कुमार, लखविंद्र सिंह ने निर्दलीय व चेतराम ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर पर्चा दाखिल किया है।

उम्मीदवारों की संपत्ति 
मंडी सदर से विधायक 66 वर्षीय अनिल शर्मा भाजपा के उम्मीदवार हैं। चुनावी हल्फनामे में अनिल शर्मा ने अपनी चल एवं अचल संपति 57 करोड़ के करीब दर्शाई है। हल्फनामे के मुताबिक अनिल शर्मा की चल संपति 1.66 करोड़ और पत्नी की सपंति 77.20 लाख है। इसके अलावा अनिल शर्मा के पास 31.50 करोड़ की अचल संपति है। उनकी धर्मपत्नी के नाम 23.55 करोड़ की अचल संपति दर्ज है। कृषि भूमि के अलावा उनके पास गैर कृषि भूमि और कई रिहायशी भवन हैं। अनिल शर्मा पर 63.50 लाख का लोन भी है। वहीं उनकी पत्नी ने 4.77 लाख का लोन लिया है।

            उधर 48 वर्षीय चंपा ठाकुर के परिवार के पास करोड़ों की संपति है। चुनाव आयोग को दिए हल्फनामे के मुताबिक चंपा ठाकुर के परिवार के पास 2.80 करोड़ की चल एवं अचल संपति है। चंबा ठाकुर के पास 70.35 लाख की चल संपति है। इनमें 57 लाख के गहने हैं। जबकि उनके पति के पास 60 लाख की चल संपति दर्ज है। इसके अलावा चंपा ठाकुर के पास 33.67 लाख की अचल संपति भी है। इनमें कृषि भूमि, गैर कृषि भूमि व भवन शामिल हैं। उनके पति के पास 1.02 करोड़ की अचल संपति है। चंपा ठाकुर पर 17.25 लाख और उनके पति पर 36.72 लाख की देनदारियां हैं।

मतदाताओं की चाबी….
विधानसभा क्षेत्र में 76,321 मतदाता हैं। दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा में महिलाओं ने पुरुषों के आंकड़े को पार किया है। 38,962 महिलाओं की तुलना में 37,359 पुरुष मतदाता हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी महिला मतदाता अधिक थी। 2017 में 35,064 महिलाओं की तुलना में 33,636 पुरुष मतदाता हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 1270 महिलाएं अधिक थी। साफ जाहिर होता है कि महिलाएं ही हर बार की तरह इस बार भी प्रत्याशी की जीत-हार का फैसला करेंगी। शायद, महिलाओं की संख्या देखते हुए कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार महिला प्रत्याशी पर ही दांव खेला है।

ये रहा ट्रेंड….
1998 के बाद से बात की जाए तो भाजपा का कोई अप्रत्याशित परिणाम नहीं रहा। अलबत्ता ये जरूर है कि अनिल शर्मा को टिकट देने के बाद पहली बार भाजपा ने 50 फीसदी वोट शेयर को पार किया। शर्मा को 58.12 प्रतिशत वोट पड़े थे। आंकड़ों का ट्रेंड बताता है कि मतदाताओं ने हमेशा ही पार्टी पाॅलिटिक्स से ऊपर उठकर पंडित सुखराम के परिवार को ही समर्थन दिया।

उधर, जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेस की अधिकतम प्रतिशत 45.85 रही। लेकिन खास बात ये है कि तब कांग्रेस के टिकट पर अनिल शर्मा ही मैदान में थे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ 21.94 प्रतिशत का मतदान ये भी संकेत देता है कि उस समय बदलाव करने की कोशिश हुई। लेकिन ये वोट शेयर 8 उम्मीदवारों में विभाजित हुआ था। मौजूदा चुनाव में चेतराम व श्याम लाल पुराने प्रत्याशी भी डटे हैं।
मुद्दे 

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विधानसभा क्षेत्र से मुद्दे गायब है। जिला से सीएम कैंडिडेट की चर्चा हो रही है। दो साल का समय तो वैसे ही गुजर गया।  बात है कि सीएम जयराम ठाकुर विकास को लेकर बड़े दावे करते आये।