कुछ महीने पहले ही चीन ने तकनीकी क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए एक नया इतिहास रच दिया था. दरअसल, चीन ने एक कृत्रिम सूर्य तैयार किया था. जिसे लेकर चीन का दावा है कि ये असली सूर्य के मुकाबले 5 गुना गर्म है. अब दुनिया की बेहतरी के लिए फ्रांस भी ऐसा ही कुछ करने की कोशिश में लगा हुआ है.
भारत के वैज्ञानिक भी हैं शामिल
फ्रांस में दक्षिण के पहाड़ी इलाके में इस तरह का सूर्य बनाने की तैयारी चल रही है जो दुनियाभर को साफ और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत प्रदान कर सकता है. इस प्रयोग में भारत के वैज्ञानिकों का भी योगदान माना जा रहा है. इसके अलावा 35 देशों के वैज्ञानिक इसमें शामिल हैं. माना जा रहा है कि इस सूरज के तैयार होते ही मानव इतिहास का सबसे बड़ा ऊर्जा का संकट समाप्त हो जाएगा. इसके साथ ही इस कृत्रिम सूर्य से जलवायु परिवर्तन की आफत से भी धरती को राहत मिलेगी.
समाप्त होगा ऊर्जा संकट
न्यूक्लियर फ्यूजन पर अपनी बादशाहत कायम करने की कोशिश कर रहे वैज्ञानिक इस सूरज को इतना ताकतवर बना रहे हैं कि इसके एक ग्राम परमाणु ईंधन से 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा बन सके. वैसे तो न्यूक्लियर फ्यूजन वह प्रक्रिया है जो हमारे असली सूरज और अन्य सितारों में प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन अब इसे धरती पर कृत्रिम रूप से दोहराने की तैयारी चल रही है.
हालांकि, यह प्रक्रिया इतनी भी आसान नहीं है लेकिन वैज्ञानिक इस असंभव को संभव कर इसे धरती पर दोहराना की कोशिशों में लगे हुए हैं. उम्मीद है कि इस न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए बिना ग्रीन हाउस गैस निकले और बिना रेडियो एक्टिव कचरे के जीवाश्म ईंधन के विपरीत असीमित ऊर्जा मिल सकेगी.
फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगात्मक रिएक्टर (ITER) पहली ऐसी डिवाइस होगी जो लंबे वक्त तक फ्यूजन रिएक्शन जारी रख सकेगी. इसमें इंटिग्रेटेड टेक्नोलॉजी और मैटीरियल को टेस्ट किया जाएगा, जिसका इस्तेमाल फ्यूजन से बिजली के व्यवसायिक उत्पादन के लिए किया जाएगा. 1985 में एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था. इसकी डिजाइन बनाने में भारत, जापान, कोरिया, यूरोपियन यूनियन और अमेरिका की भूमिका है.
‘ऊर्जा ही जीवन है’
उस दौर में आईटीईआर से मिल रही छोटी खबरें भी दुनिया के लिए बड़ी उम्मीद साबित हो रही है जब दुनिया गंभीर ऊर्जा संकट का सामना कर रही है. बता दें कि 7 साल तक इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले बर्नार्ड बिगॉट जो इस परियोजना के महानिदेशक थे, उनका पिछले 14 मई को निधन हो गया.
अपने निधन से कुछ दिन पहले उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा था कि, ‘ऊर्जा ही जीवन है. जब धरती पर 1 अरब से कम लोग थे तब ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त तरीके थे. हालांकि अब ऐसा नहीं है, दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंच गई है और जलवायु परिवर्तन का दौर तेज हो गया है. जैविक, सामाजिक, या आर्थिक हर क्षेत्र पर ये बात लागू होती है.’