चार साल के परीक्षण के बाद जर्मनी ने पिछले महीने विश्व की पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन शुरू की है. हाइड्रोजन सेल ईंधन तेल, बिजली या कोयले से ज्यादा सस्ता, प्रदूषण मुक्त है. इन ट्रेनों को फ्रांस की कंपनी एल्सटॉम ने बनाया है. ये ट्रेनें 2021 में शुरू होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के चलते प्रोजेक्ट में देरी हुई. जर्मनी के लोअर सैक्सोनी राज्य में हाइड्रोजन द्वारा संचालित 14 ट्रेनों का एक बेड़ा लॉन्च किया जा चुका है. भारत में हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों शुरू की जाएंगी. केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में इस संबंध में घोषणा की है.
रेल मंत्री ने कहा कि अगले स्वतंत्रता दिवस पर भारत की पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन पेश की जाएगी. इन ट्रेनों का निर्माण और डिजाइन पूरी तरह से स्वदेशी होगा. मंत्री ने कहा कि ‘भारत दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ट्रेने बनाने में सक्षम है और अगला बड़ा काम 15 अगस्त 2023 को होगा जब हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें शुरू की जाएंगी.’
हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन एक बार में 1000 किमी की दूरी तय करेगी. ट्रेन की टेस्टिंग 2018 से की जा रही थी लेकिन अब यह पूरी तरह से बनकर तैयार है. ट्रेन की अधिकतम रफ्तार 140 किमी/घंटा है. एल्स्टॉम के सीईओ हेनरी पॉपार्ट-लाफार्ज ने का कहना है कि सिर्फ 1 किलो हाइड्रोजन लगभग 4.5 किलो डीजल के समान है. ये ट्रेनें कोई प्रदूषण मुक्त हैं.
प्रदूषण से त्रस्त भारत जैसे देश के लिए हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें गेम चेंजर बन सकती हैं. हाइड्रोजन ट्रेनों में पावर जनरेट करने के लिए उसकी छत पर ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन स्टोर की जाती है. ट्रेनों के संचालन से सिर्फ भाप और पानी निकलता है. ट्रेन के परिचालन में जो भी हीट उत्पन्न होती है, उसका इस्तेमाल ट्रेन की हीटिंग और एयर कंडीशनिंग सिस्टम को बिजली देने में मदद के लिए किया जाता है. हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाले सभी रेल वाहन हाइड्रेल कहलाते हैं. हाइड्रोजन फ्यूल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होगा.
हाल ही में भारत में तीसरी वंदे भारत का ट्रायल पूरा हुआ है. वंदे भारत की स्पीड ने सबको हैरान कर दिया. ट्रायल के दौरान वंदे भारत एक्सप्रेस ने शून्य गति से 100 किमी प्रति घंटे की गति पकड़ने में केवल 52 सेकंड का समय लगा, जबकि जापान की प्रसिद्ध बुलेट ट्रेन को इसके लिए 55 सेकंड का समय लगता है.