शिमला. हिमाचल प्रदेश में कोरोना, लंपी बीमारी के बाद अब ग्लैंडर्स बीमारी ने दस्तक दी है. पशुओं में लंपी त्वचा रोग के बाद अब घोड़े को होने वाली ग्लैंडर्स बीमारी का मामला रिपोर्ट हुआ है. फिलहाल, इस बीमारी का कोई उपचार नहीं है और बीमारी बढ़ने पर इससे घोड़े की मौत हो जाती है. राज्य सरकार ने मंगलवार को घोड़ों में ग्लैंडर्स बीमारी के खतरे को देखते हुए इसे अनुसूचित रोग के रूप में अधिसूचित किया है.
दरअसल, कुल्लू में एक घोड़े के खून के नमूने की जांच के बाद इस बीमारी के लक्षण मिले हैं. यह नमूने हिसार की लैब में भेजे गए थे और वहां से रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. सरकार ने पशुओं में संक्रामक रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2009 की विभिन्न धाराओं में पशु पालन विभाग ने प्रदेश में ग्लैंडर्स बीमारी को अनुसूचित रोग घोषित किया है. कुल्लू को नियंत्रित क्षेत्र घोषित किया गया है.
सामान ढोने वाले घोड़ों में यह रोग साल या दो साल में सामने आता है. ग्लैंडर्स रोग से घोड़े के शरीर पर गांठें बनती हैं. फिलहाल कोई उपचार नहीं है. बीमारी से ग्रसित घोड़े को एक्ट में मारने की अनुमति होती है और घोड़े के मालिक को 25 हजार रुपये तक मुआवजा देने का प्रावधान है.
क्या कहती है सरकार
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि घोड़ों में ग्लैंडर्स बीमारी के खतरे को देखते हुए हिमाचल प्रदेश में इसे अनुसूचित रोग (शेड्यूल्ड डिजीज) के रूप में अधिसूचित किया है. प्रवक्ता ने बताया कि पशुओं में संक्रामक रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2009 की विभिन्न धाराओं के तहत पशु पालन विभाग ने प्रदेश में ग्लैंडर्स बीमारी को अनुसूचित रोग घोषित किया है. इसके तहत जिला कुल्लू के कुल्लू उपमंडल को नियंत्रित क्षेत्र घोषित किया गया है.