ओडिशा के बालासोर में बीते शुक्रवार को हुए भीषण हादसे में सैकड़ों मौते हो गईं है, हजारों लोग घायल हुए हैं. किसी ने अपने पिता को खो दिया, तो किसी के बेटे की मौत हो गई. इस बीच एक पिता के विश्वास के कारण उन्हें उनका बेटा जीवित मिल गया. कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार होने के लिए शालीमार रेलवे स्टेशन पर अपने बेटे बिस्वजीत को छोड़ने के कुछ घंटों बाद ही हेलाराम मलिक को ट्रेन दुर्घटना की खबर मिली थी.
पिता के विश्वास के कारण जीवित मिल गया बेटा
TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हावड़ा के एक दुकानदार हेलाराम ने हादसे की खबर मिलते ही अपने 24 वर्षीय बेटे को फोन किया था. बेटे ने पिता का फोन उठाया और धीमी आवाज में जवाब देते हुए कहा था कि वह जिंदा था, लेकिन भयानक दर्द से कराह रहा था. हेलाराम ने समय बर्बाद नहीं किया.
पिता परेशान थे, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी थी
उन्होंने एक स्थानीय एंबुलेंस चालक पलाश पंडित से संपर्क किया और उसके साथ ओडिशा के बालासोर में दुर्घटनास्थल तक 230 किमी की यात्रा करने का फैसला किया. हीलाराम अपने साले दीपक दास के साथ शुक्रवार की रात बालासोर पहुंच गए. आस-पास के सभी अस्पतालों जहां ट्रेन दुर्घटना पीड़ितों का इलाज चल रहा था, वहां हेलाराम को उनका बेटा नहीं मिला. वह परेशान थे. लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी थी.
दास ने टीओआई से कहा- ”हमने कभी हार नहीं मानी. हम इधर उधर लोगों से पूछते रहे. इस उम्मीद में कि आगे कहां जाना है. एक शख्स ने हमसे कहा कि अगर हमें अस्पताल में हमारा बेटा नहीं मिला तो हमें बहानागा हाईस्कूल में देखना चाहिए, जहां शव रखे गए थे. हम इसे स्वीकार नहीं कर सके, लेकिन फिर भी चले गए.”
मुर्दाघर में जिंदा मिला शख्स को अपना बेटा
अस्थायी मुर्दाघर में उन्हें शवों को देखने की अनुमति नहीं थी. हालांकि, जब मुर्दाघर में कुछ लोगों ने देखा कि एक पीड़ित का दाहिना हाथ कांप रहा था, तब हेलाराम और दास वहां मौजूद थे. वह शख्स कोई और नहीं बल्कि बिस्वजीत था, जिसे मृत मान कर मुर्दाघर में रख दिया गया था.
24 वर्षीय युवक बेहोश था और दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया था. उनके पिता और मामा ने तुरंत उन्हें एम्बुलेंस में डाला और उन्हें बालासोर अस्पताल ले गए, जहां उनका इलाज हुआ. दास ने कहा- ”उसकी स्थिति को देखते हुए, उन्होंने उसे कटक मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रेफर कर दिया, लेकिन हमने एक बांड पर हस्ताक्षर किए और उसकी अस्पताल से छुट्टी ले ली.”
इसके बाद परिजन बिस्वजीत को आगे के इलाज के लिए कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल ले गए. अब उनकी स्थिति गंभीर, लेकिन स्थिर है और उनके टखने की सर्जरी हुई है और अभी और सर्जरी होनी है. माना जा रहा है कि बिस्वजीत का शरीर सस्पेंडेड एनिमेशन नामक स्थिति में आ गया था, जहां शख्स की नब्ज कम हो जाती है. अधिकांश बचाव गैर-चिकित्सकीय रूप से प्रशिक्षित लोगों द्वारा किया गया था. ऐसे में यह संभावना है कि किसी ने उसे मृत समझकर मुर्दाघर में रख दिया हो. खैर, एक पिता के विश्वास के कारण उन्हें उनका बेटा जीवित मिल गया.