वायुसेना प्रमुख ने एक इंटरव्यू में बताया कि पूरी प्रक्रिया को रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 के प्रावधानों के तहत पूरा किया जाएगा, चयनित मूल उपकरण निर्माता को टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर और मेक-इन-इंडिया की हमारी आवश्यकताओं का पालन करना होगा।
उन्होंने कहा कि एमआरएफए की खरीद भारतीय वायुसेना की लड़ाकू ताकत को बढ़ाएगी और एडवांस टेक्नोलॉजी को शामिल करने से वह अपने ऑपरेशनल प्लान को अधिक प्रभावी ढंग से अंजाम दे पाएंगे।
अप्रैल 2019 में भारतीय वायुसेना ने लगभग 18 बिलियन अमरीकी डालर (एक बिलियन 100 करोड़ के बराबर) की लागत से 114 जेट हासिल करने के लिए प्रारंभिक निविदा जारी की। इसे हाल के वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े सैन्य खरीद कार्यक्रमों में से एक के रूप में बिल किया गया था।
कई अरब डॉलर के सौदे में लॉकहीड मार्टन के एफ-21, बोइंग के एफ/ए-18, डसॉल्ट एविएशन के रफाल, यूरोफाइटर टाइफून, रूसी विमान मिग 35 और स्विडिश एयरोस्पेस के साब ग्रिपेन जेट शामिल हैं।
वायुसेना प्रमुख ने एक इंटरव्यू में बताया कि पूरी प्रक्रिया को डीएपी (रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया) 2020 के प्रावधानों के तहत पूरा किया जाएगा, चयनित ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) को टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर और मेक-इन-इंडिया की हमारी आवश्यकताओं का पालन करना होगा जिससे हमारी स्वदेशी लड़ाकू विमान निर्माण क्षमता बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि भारतीय वायु सेना को पहले ही कई विक्रेताओं से उसके सूचना के अनुरोध (आरएफआई) पर प्रतिक्रियाएं मिल चुकी हैं।
यह पूछे जाने पर कि भारतीय वायुसेना अगले 10-15 वर्षों में 42 लड़ाकू स्क्वाड्रनों की स्वीकृत संख्या तक नहीं पहुंच पाएगी और क्या यह बल की युद्धक क्षमताओं को प्रभावित करेगा, इस पर उन्होंने कहा कि अपनी ताकत बनाए रखने के लिए एक “दोतरफा” रणनीति अपनाई जा रही है जिसमें नई पीढ़ी के प्लेटफार्मों को शामिल करना और मौजूदा बेड़े का उन्नयन शामिल है।