नई दिल्ली: फिल्म आलोचक और पत्रकार अजित राय की पुस्तक ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ और इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद हिन्दुजा एंड बॉलीवुड (Hindujas and Bollywood) का लोकार्पण लन्दन में सम्पन्न हुआ. ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ का अंग्रेजी अनुवाद पत्रकार मुर्तज़ा अली खान ने किया है.
वाणी प्रकाशन ग्रुप के अंग्रेजी भाषा के उपक्रम वाणी बुक कंपनी (Vani Book Company) से प्रकाशित ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ और Hindujas and Bollywood पुस्तक का लोकार्पण बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार, अशोक हिन्दुजा, गोपीचन्द हिन्दुजा और प्रकाश हिन्दुजा ने किया.
पुस्तक के बारे में लेखक अजित राय ने बताया कि जिसे हम हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग कहते हैं, वह दुनिया भर में हिंदी फिल्मों की वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा का भी स्वर्ण युग था. उन्होंने कहा कि आज हिंदी फिल्में सारी दुनिया में अच्छा कारोबार कर रही हैं, लेकिन इसकी बुनियाद 1955 में हिन्दुजा बन्धुओं ने ईरान में रखी थी.
अजित राय ने बताया कि ईरान से शुरू हुआ यह सफर देखते-देखते सारी दुनिया में लोकप्रिय हो गया. शायद ही आज किसी को यकीन हो कि अब से करीब 50 साल पहले राज कपूर की फिल्म ‘संगम’ जब फारसी में डब होकर ईरान में प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म तीन साल तक और मिस्र की राजधानी काहिरा में एक साल तक चली.
महबूब ख़ान की ‘मदर इंडिया’ और रमेश सिप्पी की ‘शोले’ भी ईरान में एक साल तक चली. भारतीय उद्योगपति हिन्दुजा बन्धुओं ने 1954-55 से 1984-85 तक करीब बारह सौ हिंदी फिल्मों को दुनियाभर में प्रदर्शित किया और इस तरह बना ‘बॉलीवुड’.
किताब के लेखक अजित राय ने कहा कि हिन्दुजा बन्धुओं को अपना सिनेमा का बिजनेस अभी कुछ साल तक किसी न किसी रूप में जारी रखना चाहिए था. भारतीय सिनेमा को दुनियाभर में ले जाने के अपने उपक्रमों का दस्तावेजीकरण करना चाहिए था जिससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलती. उन्होंने सुझाव दिया कि मुम्बई में एक ऐसा संग्रहालय बनाया जाए जिसमें सिनेमा के इस स्वर्णिम इतिहास को दर्शाया जाए.
पुस्तक के बारे में वरिष्ठ पत्रकार रेहान फ़ज़ल लिखते हैं- ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ एक तरह से हिंदी सिनेमा के उस स्वर्णिम इतिहास को दोबारा जिन्दा करने की कोशिश है जिसे आज लगभग भुला दिया गया है. यह किताब हमें करीब 1200 हिंदी फिल्मों की ऐतिहासिक वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाती है जो हिन्दुजा बन्धुओं के प्रयासों से सफल हुई थी. यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ (1954-55) से लेकर अमिताभ बच्चन की ‘नसीब’ (1984-85) तक बारह सौ फिल्मों की यह यात्रा ईरान से शुरू होकर ब्रिटेन, मिस्र, तुर्की, लेबनान, जार्डन, सीरिया, इजरायल, थाईलैंड, ग्रीस होते हुए सारी दुनिया तक पहुंचीं. इस यात्रा की अनेक अनसुनी कहानियां पाठकों और फिल्म प्रेमियों को पसन्द आएंगी.