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दूरदर्शन पर 90 के दशक में सुपरहिट शो ‘चंद्रकांता’ के किरदारों को भला कौन भूल पाया है। इसी शो में क्रूर सिंह का किरदार निभाने वाले ऐक्टर अखिलेंद्र मिश्रा का अंदाज और लुक हर किसी के जेहन आज भी तरोताजा है। लेकिन अब समय बदल चुका है। अखिलेंद्र मिश्रा पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं, ‘चंद्रकांता, रामायण, महाभारत, चाणक्य टीवी के लिए स्वर्णिम युग था। अब समय बदल चुका है। उस दौर में सिनेमा के बाद टीवी आया था। लोगों ने देखना शुरू किया था। मेगा सीरीज बनने लगी थीं। साहित्य और धर्म ग्रंथों को टीवी के माध्यम से लाया जा रहा था। सप्ताह में एक एपिसोड आता था, अगले भाग का लोग इंतजार किया करते थे। उस इंतजार के भाव में संवेदना जुड़ी होती थी। एपिसोड जो खत्म होता था, उसका एक हुक पॉइंट हुआ करता था, जिसके आगे की कहानी अगले हफ्ते देखने को मिलती थी। अब तो दिन में चार बार एक एपिसोड दिखा देते हैं। इससे दिलचस्पी खत्म होती जा रही है। क्रिएटिविटी में जब दिलचस्पी नहीं होगी तो धीरे-धीरे वह खत्म हो जाएगी।’
कई वेब सीरीज के ऑफर ठुकराए
जहां एक तरफ बॉलिवुड से लेकर टीवी के जाने-माने कलाकार ओटीटी की तरफ रुख कर रहे हैं, वहीं अखिलेंद्र ओटीटी को लेकर एक अलग सोच रखते हैं। वह कई वजह से ओटीटी से खफा भी नजर आते हैं। ओटीटी को लेकर वह बताते हैं, ‘ओटीटी में मेरा अभी डेब्यू नहीं हुआ है। इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है। ओटीटी कॉन्टेंट में गाली-गलौज और अश्लीलता काफी देखने को मिलती है, जिसके मैं सख्त खिलाफ हूं। मुझे ओटीटी को लेकर बहुत से ऑफर आए, लेकिन मैंने मना कर दिया। मेरे पास जितने भी लोग ऑफर लेकर आए, मेरा उनसे यही सवाल था कि क्या इसमें अश्लीलता और गाली-गलौच है। उत्तर हां, में मिलता था, जिसके बाद मैं उन प्रोजेक्ट्स के लिए मना कर देता था। हालांकि, मैंने वाइट गोल्ड वेब सीरीज पूरी की है, जो इसके इतर होगी। अब तो डिजिटल युग है। हर जेब में मोबाइल है। छोटे-छोटे बच्चे मोबाइल स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं। अश्लील हो या क्लासिक, वे जो चाहे देख सकते हैं। फिर चाहे वह स्कूल में देखें या गार्डन या अपने घर में। अब भी सुधार के लिए हमारे पास बहुत समय है।’
ऐक्टिंग की असली ट्रेनिंग थिएटर में
ऐक्टर का थिएटर से भी खासा जुड़ाव रहा है। अखिलेंद्र मिश्रा का मानना है कि ऐक्टिंग की असली ट्रेनिंग थिएटर से ही मिलती है। वह कहते हैं, ‘हम थिएटर के लोग हैं। हमें माध्यम बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारा काम तो सब जगह बस अभिनय करना ही है। कैमरा सिनेमा है, जो ऐक्टर के पीछे-पीछे घूमा करता है। हां, थिएटर में थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि वहां एक बार लाइट ऑन होने के बाद आपको दोबारा रीटेक का मौका नहीं मिलता। ऐसे में आपका अभिनय कौशल ही काम आता है। सिनेमा में आपके पास रीटेक के चांस होते हैं। यहां फ्रेम होता है और उसी के हिसाब से चीजें संतुलित की जाती हैं। थिएटर अपने आप में एक ट्रेनिंग स्कूल है। इसी वजह से मैं हर नए कलाकार से कहता हूं कि अगर आपको अभिनय के क्षेत्र में आना है तो थिएटर से जुड़िए। इसके हर आयाम से जुड़िए। इससे आप इंडस्ट्री में जरूर सफल होंगे।’
उत्तर प्रदेश में शूटिंग की बहार है
ऐक्टर बताते हैं, ‘लखनऊ बहुत खूबसूरत और सांस्कृतिक शहर है। यहां मुझे कई बार शूटिंग करने का मौका मिला। पिछले महीने ही मैंने अपना एक प्रोजेक्ट यहां शूट किया है। यूपी में तो शूटिंग की बहार है। प्रदेश में तमाम ऐसी लोकेशंस हैं, जहां पर ऐक्टर, डायरेक्टर शूट कर रहे हैं। लखनऊ के अलावा बनारस, अयोध्या, आगरा, कानपुर, प्रयागराज में भी खूब सीन फिल्माए जा रहे हैं।
आजकल फिल्ममेकर्स नए प्रयोग नहीं कर रहे
ऐक्टर ने फिल्मों को लेकर भी अपने मन की बात कही है। उनका कहना है, ‘अब फिल्ममेकर्स साहित्य से कट गए हैं। वे न ही उसके बारे में जानना चाह रहे और न ही पढ़ना। भारत कहानियों और कथाओं का देश है, जहां जन्म के बाद से बच्चा कथा-कहानियों के साथ बड़ा होता है। हमारे यहां पुरानी परंपरा रही है, जहां नानी, दादी, ताई, चाची बच्चों को कहानियां सुनाया करती हैं। अब इंडस्ट्री में लोग रीमेक पर विश्वास कर रहे हैं। पहले फिल्ममेकर्स नए-नए प्रयोग करते थे, जो अब नहीं हो रहे हैं। जब भी कोई किरदार चुनता हूं तो यह जरूर देखता हूं कि किरदार का कहानी पर कितना प्रभाव होगा।’