उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में तारिक़ मुनव्वर की हत्या मामले में एक अदालत ने खुद को भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ता बताने वाले विनय वार्ष्णेय और दो अन्य अभियुक्तों को बरी कर दिया है.
फरवरी 2020 में एनआरसी और सीएए प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में शहर के तारिक़ मुनव्वर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में विनय वार्ष्णेय, सुरेंद्र कुमार और उनके बेटे त्रिलोकी को अभियुक्त बनाया गया था.
शुक्रवार को जेल से रिहा होने के बाद विनय वार्ष्णेय ने 150 से अधिक लोगों के साथ जुलूस भी निकाला जिसमें उनके समर्थन में नारे लगाए गए. पुलिस ने जुलूस निकालने के आरोप में धारा 144 के उल्लंघन का मामला भी दर्ज किया है.
अदालत के फ़ैसले के बारे में विनय वार्ष्णेय के वकील हरि ओम वार्ष्णेय ने बीबीसी से कहा, “कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी किया है. जो साक्ष्य अभियोजन पक्ष ने रखे थे जिसमें आरोप पत्र दाखिल किया था, वो साक्ष्य अभियोजन पक्ष कोर्ट में सिद्ध नहीं कर पाया. साथ में जो बैलिस्टिक रिपोर्ट थी, जो डाइंग डिक्लेरेशन था वो भी सिद्ध नहीं हुआ. क्योंकि डाइंग डिक्लेरेशन में ये ज़रूरी होता है या तो डॉक्टर होना चाहिए, जो रजिस्टर्ड डॉक्टर होना चाहिए और जो डाइंग डिक्लेरेशन देता है उसका अंगूठा लगवाना या हस्ताक्षर करवाना भी बहुत ज़रूरी है. उस पर वो भी नहीं थे.”
तारिक़ मुनव्वर की हत्या का मामला एनआरसी और सीएए को लेकर हुई हिंसा से जुड़ा बताते हए वकील हरि ओम वार्ष्णेय ने कहा, “क्योंकि नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत ये धरना चल रहा था जो 42 दिनों तक चला और इस धरने पर पांच छह रिपोर्ट भी हुई थीं. ये रिपोर्ट केवल राजनीतिक थी. राजनीतिक हवा देने के लिए रिपोर्ट की गई थी. जो गोली मारने वाला था उसको भी नहीं पता कि गोली किसे मारी है और जिसे गोली लगी है उसे भी पता नहीं कि किसने मारी है.”
”गोली तीसरी मंज़िल पर लगी थी. तीन मंज़िल से नीचे उतर कर जो आदमी आया उसके परिवार वालों ने ये देखा है. उसने भी नहीं बताया कि उसे गोली किसने मारी है. उसने कहा कि ऊपर छत पर गोली लगी है. बस इतना बताया और उसको लेकर हॉस्पिटल गए. तो सारे साक्ष्य ये नहीं सिद्ध कर पाए. अभियोजन पक्ष ने 12 गवाह पेश किये थे जिनमें से चार गवाह घर के थे, चार डॉक्टर थे और चार पुलिस वाले थे. कोई भी सिद्ध नहीं कर पाया. इसी अभाव में छोड़ा गया है.”
क्या है तारिक़ की हत्या से जुड़ा मामला?
तहरीर के मुताबिक़ 23 फरवरी 2020 को शाम 5:25 बजे तारिक़ और उनका भाई आमिर अपने छज्जे पर खड़े थे. आरोप था कि विनय वार्ष्णेय, सुरेंद्र कुमार और उनके बेटे त्रिलोकी तीनों ने तारिक और आमिर को गालियां देते हुए कहा कि गोली मारो. इसके बाद तहरीर में यह आरोप था कि विनय वार्ष्णेय ने फायरिंग की.
तारिक़ को गोली सीने के दाहिनी ओर लगी और वो मौके पर ही गिर गये. शिकायत के मुताबिक उनका भाई आमिर इस घटना का चश्मदीद था. गोली लगने से घायल तारिक़ की 13 मार्च 2020 को इलाज के दौरान मौत हो गई.
अदालत ने अपने फ़ैसले में पाया कि भाई आमिर और शारिक़ समेत 10 अन्य गवाह इस मामले में अपने बयानों से मुकर गए. अभियोजन पक्ष कोर्ट में इस घटना से जुड़ी अपनी थ्योरी साबित नहीं कर पाया जिसके चलते अदालत ने विनय वार्ष्णेय, सुरेंद्र कुमार और त्रिलोकी को बरी कर दिया.
बचाव पक्ष ने ये भी दलील दी थी, “तारिक़ की मौत गोली लगने के 20 दिन बाद हुई थी लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस लंबे समय में भी जांच अधिकारी ने तारिक़ का बयान रिकॉर्ड नहीं किया.”
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अदालत ने किस आधार पर किया बरी
बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में कहा, “इस मामले में विनय वार्ष्णेय के जरिए तारिक़ की हत्या करने का कोई मकसद एफ़आईआर में नहीं लिखा है.”
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा है कि मामले के जांच अधिकारी ने तारिक़ का मरने से पहले बयान (डाईंग डिक्लेरेशन) निज़ी डायरी में दर्ज किया. ये बात जांच अधिकारी ने अपनी गवाही में भी मानी है कि उसने डाइंग डिक्लेरेशन पर तारिक़ के हस्ताक्षर और अंगूठे का निशान नहीं लिया है इसलिए कोर्ट ने कहा की डाइंग डिक्लेरेशन के ऊपर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
कोर्ट ने अंत में कहा कि ये तो साबित हो रहा है कि तारिक़ मुनव्वर की हत्या गोली लगने से हुई. लेकिन अभियोजन पक्ष इस हत्या में विनय वार्ष्णेय, सुरेंद्र कुमार और त्रिलोकी का दोष साबित नहीं कर पाया. अभियोजन पक्ष के मुताबिक़ सभी गवाह अपने बयानों से पलट गए.
भाजपा के पदाधिकारी
अलीगढ़ बीजेपी के जिलाध्यक्ष धर्मवीर लोधी से बीबीसी ने विनय वार्ष्णेय की बीजेपी सदस्यता को लेकर सवाल किया तो उन्होंने बताया, “विनय वार्ष्णेय भाजपा में थे. भाजपा के पदाधिकारी थे. वो युवा मोर्चा में ज़िला महामंत्री और महानगर महामंत्री थे.”
वहीं, मीडिया से बात करते हुए भाजपा नेता विनय वार्ष्णेय ने कहा” मैं भाजपा का आरएसएस का कार्यकर्ता हूं. मुझे डंडालय पर नहीं, न्यायालय पर भरोसा था. मैं दो साल जेल में रहा. मुझे न्यायालय पर भरोसा था इसलिए मुझे न्याय मिला है. दो साल बाद न्याय मिला है. आज 848 दिनों बाद अपने घर आया हूं और अपने लोगों से मिला हूं.”
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जब जुलूस निकालने को लेकर विनय वार्ष्णेय से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “पूरा अलीगढ़ शहर मेरा परिवार है. अलीगढ़ से एटा तक मेरा परिवार है और आज सब लोग खुश हैं क्योंकि मैं निर्दोष था. अलीगढ़ से एटा तक सब लोगों ने खुशी मनाई है.”
बीबीसी ने तारिक़ के भाई और इस मामले में गवाह शारिक़ से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया. फैसले के मुताबिक़ अभियोजन पक्ष ने शारिक़ को भी होस्टाईल विटनेस बताया.
लेकिन सवाल ये भी है कि इस मामले में 12 गवाह अपने बयानों से कैसे पलट गए. हालांकि, इस सवाल के जवाब के लिए अभियोजन पक्ष के वकील से भी संपर्क करने की कोशिश के बावजूद बात नहीं हो पाई.