All Party Meeting on Sri Lanka : विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका (Sri Lanka) को लेकर कई गलत तुलनाएं की जा रही हैं। कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या ऐसे हालात भारत में भी आ सकते हैं। जयशंकर ने कहा कि यह एक काफी गलत तुलना है। विदेश मंत्री (Foreign Minister of India) ने कहा, ‘‘यह एक बहुत गंभीर संकट है और श्रीलंका में जो हम देख रहे हैं, वह कई मायने में अभूतपूर्व स्थिति है।’’
हाइलाइट्स
श्रीलंका को लेकर तुलना गलत
विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका को लेकर कई गलत तुलनाएं की जा रही हैं। कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या ऐसे हालात भारत में भी आ सकते हैं। जयशंकर ने कहा कि यह एक काफी गलत तुलना है। बता दें कि श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने औपचारिक रूप से 15 जुलाई, 2022 को इस्तीफा दे दिया था। वे विरोध प्रदर्शनों के बीच देश छोड़कर भाग गए थे।
क्यों आया श्रीलंका में आर्थिक संकट?
श्रीलंका अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय रेमिटेंस से राजस्व के साथ-साथ नए लोन्स (New Loans) पर निर्भर था। लेकिन फिर कोविड-19 आया, जिसने पर्यटन (Tourism of Sri Lanka) को बुरी तरह प्रभावित किया। अर्थशास्त्री इसे “भुगतान संतुलन संकट” कहते हैं। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) धीरे-धीरे गिरता चला गया। श्रीलंका आवश्यक आयात और अपने लोन के ब्याज का भुगतान करने में असमर्थ हो गया। इसने सरकार को अचानक शाकनाशकों और उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया। यह कुछ ऐसा था, जिससे उम्मीद थी कि देश को सालाना आयात पर 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी। कृषि पैदावार पर पड़ने वाले प्रभाव के चलते इसका किसानों ने बड़ा विरोध किया। धीरे-धीरे विरोध बढ़ता गया। कृषि पैदावार प्रभावित हुई। धीरे-धीरे ऐसी स्थिति आई कि सरकार के पास चीजें आयात करने के लिए पैसे नहीं रहे।
क्या श्रीलंका जैसा होगा भारत का हाल?
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था काफी हद तक आयात पर आधारित (Import Based Economy) है। विदेशी मुद्रा भंडार के खाली हो जाने से वहां की इकोनॉमी चरमरा गई। श्रीलंका ना तो वस्तुएं आयात कर सका और ना ही लोन का पुनर्भुगतान (Loan Repayment) कर सका। वहीं, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार काफी मजबूत स्थिति में है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस समय करीब 580.252 अरब डॉलर का है। वहीं, विदेशी कर्ज की बात करें, तो भारत के ऊपर कुल विदेशी कर्ज 620.7 अरब डॉलर है। इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी मात्र 130.8 अरब डॉलर की है, जो कुल कर्ज का 21 फीसदी है। दूसरी तरफ एक साल के अंदर कुल 267 अरब डॉलर के कर्ज का पुनर्भुगतान किया जाना है। इसमें केंद्र की हिस्सेदारी मात्र 7.7 अरब डॉलर है। यह कुल भुगतान के 3 फीसदी से भी कम है। ऐसे में यह कहना कि भारत में श्रीलंका जैसी स्थिति आ सकती है, कहीं से भी सही नहीं है।
देश की विकास दर भी अच्छी रहने का अनुमान
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 14-15 फीसदी की दर से ग्रोथ करने का अनुमान है। पहली तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े 31 अगस्त को आने हैं। 10 अर्थशास्त्रियों के एक सर्वे में पहली तिमाही के लिए जीडीपी का औसत अनुमान 14.43 फीदसी रहा। साथ ही वित्त वर्ष 2023 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.2 से 7.6 फीसदी लगाया गया। बता दें कि आरबीआई ने पहली तिमाही के लिए 16.2 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष के लिए 7.2 फीसदी ग्रोथ रेट रहने का अनुमान दिया है। देश के औद्योगिक उत्पादन में भी अच्छी ग्रोथ देखने को मिल रही है। आंकड़ों के अनुसार, मई में देश के औद्योगिक उत्पादन (IIP) में 19.6 फीसदी की वृद्धि हुई है।