पाकिस्तान के करीब आ रहा था अमेरिका तो मिखाइल ने दिया साथ, रूस के साथ कैसे बने मजबूत संबंध

गोर्बाचेव ने दिल्ली में कहा था कि हम अपनी विदेश नीति में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे भारतीय हितों को नुकसान पहुंचे। उनके कार्यकाल में ही सोवियत संघ ने भारत को टी -72 टैंक समेत विभिन्न सैन्य साजो-सामानों की आपूर्ति की थी।

Mikhail Gorbachev Death: Mikhail Gorbachev with Rajiv gandhi during India Visit

दुनिया में मिखाइल गोर्बाचेव की पहचान शीतयुद्ध खत्म कराने वाले नेता के तौर पर बनी तो भारत में उन्हें द्विपक्षीय संबंधों की मजबूत नींव रखने वाला माना गया। सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने अपने कार्यकाल में दो बार (1986, 1988) नई दिल्ली का दौरा किया।

इस दौरान उन्होंने आपसी रक्षा और आर्थिक सहयोग को गहरा करने पर जोर दिया। भारत में उनकी पहली यात्रा काफी महत्वपूर्ण मानी गई, क्योंकि तब अमेरिका दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा था।

ऐसे समय में 100 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली आकर सोवियत संघ के नेता ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के साथ काफी गहन चर्चाएं की। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय साझेदारियां बढ़ाने और परमाणु निरस्त्रीकरण पर प्रतिबद्धता दोहराई। उनकी यह यात्रा इसलिए भी ऐतिहासिक थी, क्योंकि 1985 में सोवियत संघ का शीर्ष पद संभालने के बाद वह पहली बार किसी एशियाई देश आए थे।

दोनों नेताओं ने वार्ता के बाद दिल्ली घोषणा पत्र पत्र पर दस्तखत किए, जिसमें आपसी सहयोग के व्यापक ढांचे का उल्लेख किया। 27 नवंबर 1986 को पूरी दुनिया ने राजीव गांधी और गोर्बाचेव को मुस्कुराकर हाथ मिलाते देखा। गांधी और गोर्बाचेव के बीच गहरी मित्रता और सौहार्दपूर्ण संबंध थे, जिसका सिलसिला भारतीय नेता की 1985 में मास्को की यात्रा से शुरू हुआ था।

गोर्बाचेव ने दिल्ली में कहा था कि हम अपनी विदेश नीति में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे भारतीय हितों को नुकसान पहुंचे। उनके कार्यकाल में ही सोवियत संघ ने भारत को टी -72 टैंक समेत विभिन्न सैन्य साजो-सामानों की आपूर्ति की थी। वर्ष 1988 में जब गोर्बाचेव दूसरी बार नई दिल्ली आए, तब उन्होंने राजीव गांधी के साथ दिल्ली घोषणा पत्र के क्रियान्वयन की समीक्षा की।

साथ ही रक्षा, अंतरिक्ष और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। गोर्बाचेव ने भारत ही नहीं, दुनियाभर में अपने विशिष्ट राजनीतिक दृष्टिकोण के जरिए वैश्विक नेतृत्व में अहम जगह बनाई। उनके निधन पर विश्व के कई नेताओं ने शोक जताया और उनके योगदान को याद किया।

बिना रक्तपात समाप्त किया शीतयुद्ध, लेकिन नहीं रोक सके सोवियत संघ का विघटन
सोवियत संघ के समय में दुनिया के सबसे ताकतवर नेता व इसके अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का 91 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले गोर्बाचेव ने बिना रक्तपात के शीतयुद्ध खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि वह सोवियत संघ के पतन को रोकने में नाकाम रहे। 30-31 अगस्त की दरम्यानी रात उन्होंने अंतिम सांस ली।

आज का रूस उस वक्त यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स (यूएसएसआर) कहा जाता था। बिना रक्तपात शीतयुद्ध खत्म करने पर उन्हें श्रेय जाता है तो 1989 में सोवियत संघ के पूर्वी यूरोप वाले हिस्से में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन रोकने के लिए भारी बल प्रयोग का ठीकरा भी फोड़ा जाता है।

हालांकि वह कम्युनिस्ट शासन में सुधार का बीड़ा उठाते हुए ग्लास्तनोस (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) नीति लाए। गोर्बाचेव ने मीडिया व कला जगत को भी सांस्कृतिक आजादी दी। उसी दौरान हजारों राजनीतिक कैदी और कम्यूनिस्ट शासन के आलोचकों को भी जेल से रिहा किया गया।

उन्होंने अमेरिका के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण समझौता लागू कर शीतयुद्ध खत्म किया। इसके लिए उन्हें 1990 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। मिखाइल गोर्बाचेव के बारे में मॉस्को में पूर्व अमेरिकी राजदूत माइकल मैकफॉल ने कहा कि उन जैसे व्यक्तित्व के बारे में सोचना तक मुश्किल है। उनका पतन अपमानजनक था।

रूसी राजनीति में आने की कोशिश नाकाम
सोवियत शासन के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव 54 साल की उम्र  में सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। इसी नाते वह देश के सर्वोच्च नेता भी बने। उस समय वह पोलित ब्यूरो के नाम से जानी जाने वाली सत्तारूढ़ परिषद के सबसे कम उम्र के सदस्य थे, लेकिन सोवियत विघटन के बाद 1996 में एक बार फिर से उन्होंने रूस की राजनीति में आने की नाकाम कोशिश की। उस वक्त राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें सिर्फ 0.5 फीसदी मत मिले थे।

खुद को गुमनामी में डाला…
मिखाइल गोर्बाचेव के बारे में मॉस्को में पूर्व अमेरिकी राजदूत माइकल मैकफॉल ने कहा कि उन जैसे व्यक्तित्व के बारे में सोचना तक मुश्किल है। उनका पतन अपमानजनक था। अगस्त 1991 में  तख्तापलट की कोशिशों से उनकी ताकत खत्म हो गई। उन्होंने 25 दिसंबर 1991 को इस्तीफा देने से पहले अपने शासनकाल के अंतिम माह गणतंत्र की घोषणा की थी।  इसके बाद उन्होंने खुद को गुमनामी में डाल दिया।

पत्नी रइसा की कब्र के पास होंगे दफन
मिखाइल गोर्बाचेव के निधन का कारण अभी नहीं बताया गया है लेकिन वे गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। उनका अंतिम संस्कार मॉस्को में होगा। रूसी न्यूज एजेंसी तास के अनुसार उन्हें नोवोदिवेची सेमेट्री उनकी पत्नी रइसा की कब्र के पास ही दफन किया जाएगा जिनका 1999 में ल्यूकेमिया से निधन हो गया था।

…तो देश गृहयुद्ध में जल जाता
सोवियत संघ के पतन के करीब 25 वर्ष बाद गोर्बाचेव ने एक न्यूज एजेंसी को बताया कि उन्होंने यूएसएसआर को साथ रखने की कोशिश की, लेकिन इसके लिए बल के इस्तेमाल पर विचार नहीं किया। उन्होंने कहा, मुझे परमाणु संपन्न देश में अराजकता का डर था। देश हथियारों से लदा हुआ था और यदि बल प्रयोग से बवंडर रोकने की कोशिश करता तो पूरा देश गृहयुद्ध में जल जाता।

दुनियाभर से श्रद्धांजलि
गोर्बाचेव के निधन के बाद दुनियाभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरस ने कहा, उन्होंने इतिहास की धारा बदल दी। वह एक खास तरह के राजनेता थे। दुनिया ने एक महान वैश्विक नेता, बहुपक्षवाद और शांति के बड़े पैरोकार को खो दिया है। यूरोपीय संघ प्रमुख उर्सुला वॉन देर लेयेन ने उन्हे भरोसेमंद और सम्मानित नेता बताया है, जिन्होंने मुक्त यूरोप का रास्ता खोला। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा, मैं गोर्बाचेव के साहस और ईमानदारी का कायल हूं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, गोर्बाचेव ने लोकतांत्रिक सुधारों के लिए काम किया। यह दुर्लभ नेता के लक्षण हैं।

पुतिन ने भी दी अंतिम विदाई 
गोर्बाचेव के पुतिन के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। पुतिन सोवियत संघ टूटने को त्रासदी मानते हैं और इसके लिए गोर्बाचेव को जिम्मेदार ठहराते रहे। पुतिन के साथ कई रूसी नेता मानते हैं कि सोवियत संघ के टूट जाने के बाद रूस कमजोर पड़ गया। हालांकि उनके निधन पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अंतिम विदाई दी।