नई दिल्ली. अमिताभ बच्चन आज दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसे किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उनकी आवाज को करोड़ों लोग पहचानते हैं. अमिताभ बच्चन हर मायने में देश के सबसे बड़े सुपरस्टारों में से एक हैं. किसी महफिल में उनकी मौजूदगी ही उसे कामयाब बनाने की गारंटी होती है. इन सबके बावजूद बड़े पर्दे के शहंशाह को पॉलिटिक्स में जल्द ही हार मानने के लिए मजबूर होना पड़ा. ऐसा तब हुआ जब उनके दोस्त राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे और अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद लोकसभी सीट से दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को 1984 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड वोटों से हराया था.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर के साथ हो रहे चुनाव में अमिताभ बच्चन को कुल वोटों का करीब 68 फीसद वोट मिला था. राजनीति में नौसिखिए माने जा रहे अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा को 1,87,795 वोटों से हरा दिया. इसके बावजूद बिग बी को राजनीति की कठिन रपटीली डगर का शायद ही अंदाजा था. कुछ समय बाद ही मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले राजीव गांधी पर बोफोर्स तोप घोटाले के आरोप लगने शुरू हो गए. इन आरोपों के कुछ छींटे एंग्री यंगमैन के दामन पर भी पड़े. 1987 में एक अखबार में ये खबर छपी कि उनके भाई अजिताभ बच्चन के पास स्विटजरलैंड में एक अपार्टमेंट है.
अपने दामन को राजनीति की काली कोठरी में लगने वाले दागों से बचाने के लिए अमिताभ बच्चन ने जुलाई 1987 में अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. बहरहाल बोफोर्स मामले की जांच करने वाले स्वीडन के पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रॉम ने बाद में 2012 में कहा कि भारतीय जांचकर्ताओं ने बच्चन को जानबूझ कर इस मामले में फंसा दिया था. अपने राजनीति छोड़ने के बारे में एक बार बिग बी ने कहा था कि राजनीति में शामिल होने का उनका फैसला भावनात्मक था. वे तो केवल एक दोस्त की मदद करना चाहते थे. लेकिन जब वे राजनीति में घुस गए तो उन्होंने महसूस किया कि राजनीति में भावनाओं की कोई जगह नहीं है. इसके साथ ही अमिताभ बच्चन ने ये भी स्वीकार किया कि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कई ऐसे कई वादे किए, जो किसी भी हाल में पूरे नहीं हो सकते थे. इसलिए भी उन्होंने पॉलिटिक्स छोड़ने का फैसला किया.