Amul News: अमूल, दूध और बेबी… जब ‘पॉलसन’ से तंग आकर किसानों ने बना डाला देश का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड

अमूल के जन्‍म की कहानी बेहद दिलचस्‍प और रोमांचित करने वाली है। यह किसानों के विद्रोह का नतीजा है। इन्‍होंने पॉलसन के जुल्‍मों से तंग आकर एक अनूठी इबारत लिखी। यह सहभागिता का अनूठा नमूना बन गई। आज पूरे देश में अमूल के प्रोडक्‍टों की बिक्री होती है। यह देश का बेहद मजबूत ब्रांड है।

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नई दिल्‍ली: अमूल (Amul) का दूध आज 2 रुपये लीटर महंगा हो गया है। यह खबर आपने अखबारों में पढ़ ली होगी। नहीं भी पढ़ी होगी तो दूध लाने पर आपको यह एहसास हो चुका होगा। देश में आज शायद ही कोई घर होगा जो अमूल को न जानता हो। भारत के सबसे लोकप्रिय ब्रांडों में है इसका नाम। लेकिन, शुरुआत से ऐसा नहीं था। एक जमाने में अमूल कहीं पिक्‍चर में नहीं थी। तब एक दूसरी डेयरी कंपनी का राज था देश में। उसका नाम था पॉलसन डेयरी (Polson Dairy) । तूती बोली थी इसकी। दूध हो या मक्‍खन, दही हो या पनीर डेयरी प्रोडक्‍टों के लिए यही एक नाम होता था। 1940 के दशक तक बस यही थी। ब्रेड पर चाकू से बटर लगाती सुनहरे बालों वाली लड़की इस ब्रांड की पहचान होती थी। जलवा था इसका। जो किसान दूध बेचना चाहते थे, उनके लिए कोई ठौर नहीं था। सिवाय पॉलसन के। इसका गुमान उसके सिर चढ़ गया। वह अनाप-शनाप कीमतों पर किसानों से दूध खरीदती। खुद तो खूब मुनाफा कमाती, किसानों को कौड़‍ियां देती। किसान तंग आ चुके थे इस कंपनी की मनमानी से। उन्‍होंने विद्रोह कर दिया। यहीं से अमूल के जन्‍म की कहानी शुरू होती है। वही अमूल जिसका ‘अटर्ली-बटर्ली’ बटर लोगों के मुंह में ऐसा लगा कि कभी जायका गया ही नहीं।

सड़क-चौराहों से लेकर रेहड़‍ियों और घरों तक अमूल आज देशवासियों के इर्दगिर्द है। अमूल के बटर के बगैर बन गले के नीचे नहीं उतरता। कई जगह तो चाय के साथ बन-मक्‍खन मानों डिश बन चुका है। एक समय था जब अमूल नहीं था। पॉलसन ही पॉलसन छाई थी। जड़े इसकी भी गुजरात से जुड़ी थीं। पॉलसन के ऐड में सुनहरे बालों वाली बच्‍ची ने लोगों के दिलों में घर कर लिया था। देश में कभी यह बेहद मजबूत ब्रांड बन चुका थी। खासतौर से बटर के मामले में इसकी मोनोपोली थी।

पॉलसन से खुश नहीं थे डेयरी किसान
बेशक, लोगों को पॉलसन का बटर खूब पसंद आ रहा था। लेकिन, डेयरी किसान नाखुश थे। इसकी वजह थी। पॉलसन को अपनी सफलता का गुमान हो चला था। वह पूरी तरह मनमानी पर उतर आई थी। सरकार से पॉलसन को प्रश्रय मिलता था। किसान मजबूर थे। उन्‍हें कौड़‍ियों के दाम पर इस पॉलसन डेयरी को अपना दूध बेचना पड़ता था। कंपनी फूलकर कुप्‍पा हो रही थी। ज्‍यादातर मुनाफा वह अपनी जेब में रख लेती थी। किसान बेचारा तरसता रहता था।

हालांकि, अंदर ही अंदर किसानों को भी इस मनमानी का एहसास होने लगा था। 1946 की बात है। उनके सब्र का बांध टूट गया। उन्‍होंने विद्रोह कर दिया। उन्‍होंने साथ आने का फैसला किया। इस कवायद में उन्‍होंने एक को-ऑपरेटिव बनाई। इसका नाम था कैरा डिस्ट्रिक्‍ट को-ऑपरेटिव मिल्‍क प्रोड्सर्स यूनियन लिमिटेड। दो गांव और सिर्फ 250 लीटर दूध। यहीं से शुरू हुई थी सहभागिता। पॉलसन को दूध बेचने के बजाय किसानों ने मुंबई में लोगों को सीधे दूध की सप्‍लाई शुरू कर दी। कैरा यूनियन लिमिटेड ने ही अमूल ब्रांड की शुरुआत की थी। वह अपने प्रोडक्‍टों की मार्केटिंग इसी ब्रांड नेम के साथ करती थी। अमूल संस्‍कृत के शब्‍द अमूल्‍य से निकला है। इसके संस्‍थापक नेताओं में से एक मगनभाई पटेल ने यह नाम रखा था।

अमूल ब्रांड कैरा यून‍ियन के पास था
1955 तक कैरा यूनियन के पास ही अमूल ब्रांड नेम रहा। इसके बाद में ब्रांड नेम को गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्‍क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) को ट्रांसफर कर दिया गया। अब यही सहकारी संस्‍था अमूल के प्रोडक्‍टों की मार्केटिंग करती है। इस फेडरेशन के साथ गुजरात में 36 लाख डेयरी किसान जुड़े हैं। यह 13 जिला दूध यूनियनों की शीर्ष संस्‍था है। इस संस्‍था का पहला चेयरमैन सरदार वल्‍लभाई पटेल के मार्गदर्शन में त्रिभुवनदास पटेल को बनाया गया था। 1970 में इसने श्‍वेत क्रांति में अहम भूमिका निभाई। इस क्रांति की अगुवाई डॉ वर्गीज कुरियन ने की थी। इसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्‍ध उत्‍पादक देश बना दिया।

बात अमूल की हो और अमूल गर्ल रह जाए तो यह सही नहीं है। दरअसल, इस करेक्‍टर को डिजाइन करने वाले थे सिलवेस्‍टर डाकुनहा। वह मार्केटिंग एग्‍जीक्‍यूटिव थे। उन्‍होंने शायद अमूल गर्ल को डिजाइन करने की प्रेरणा पॉलसन गर्ल से ही ली थी।