भारत का प्राचीन गणित, जिसे आपको बताये बिना पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया, वैदिक गणित को जानें

आज के आधुनिक वक्त के पहिये मे प्रत्येक क्षेत्र मे विकास दिखाई पडता है, जहाँ पर अचूकता के साथ कार्य की गती को भी अधिक महत्व दिया जाता है, वैदिक गणित (Vedic Ganit) की बात करे, तो ये आपके लिए मददगार साबित होता है। आपको कम समय मे वैदिक सूत्र से ना केवल सही रिजल्ट प्राप्त होते है, बल्की इसकी विधी समझने मे और लागू करने काफी सरल होती है।

गणित (Mathematics) एक ऐसा विषय है, जिसका हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी जीवन की परीक्षाओ से लेकर दैनिक हिसाब किताब में भी गणित विषय अहम् भूमिका निभाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी गणित विषय से काफी सारे प्रश्न पूछे जाते है, परंतु गणित की जिस पद्धति का उपयोग हो रहा है। उससे बच्चों में गणित के प्रति डर है।

काफी बच्चों का वीक पॉइंट गणित विषय है, क्योंकि स्कूलों में जहाँ बच्चों की नींव बनती है। वहाँ वैदिक गणित का चलन लगभग समाप्त हो गया है। भारत देश में बहुत से गणितज्ञयों ने जन्म लिया। गणित की शिक्षा कोई आज का विषय नहीं है। यह 3000 साल पुराना है।

इस बात को तो इतिहासकारों ने भी माना हैं कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र गणित का ही अभिन्न अंग है। यहाँ पर गणित की शिक्षा इतनी ज्यादा अच्छी थी कि आर्यभट्ट (Aryabhata) और वराह मिहिर (Varāhamihira) जैसे विद्वान हमारे देश में पैदा हुए।

वर्तमान में स्कूलों में चल रही गणित (Maths) की पद्धति अंग्रेजों की देन है। इसमें कोई दो मत नहीं की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भारतीयों को दिनों दिन असहाय बना रही है। देश तो आजाद हो गया परंतु हमारे विचार आज भी गुलाम बने हुए है। क्योंकि हमारे ही देश में एक अच्छी पद्धति होने के बाद भी हम आज उसी परंपरा से जुड़े हुए हैं जो अंग्रेजों द्वारा दी गई है।

आज के समय मे जरुरत है कि गुजरात राज्य जैसे ही भारत के अन्य राज्य की सरकारें भी बदलाव लाएं और प्राचीन भारतीय परंपराओं और शिक्षाओं का प्रयोग आधुनिक शिक्षा पद्धति में करें। सरकार CBSE के जरिये वैदिक गणित पद्धति को अपनाए और छात्रों को पढ़ाने की व्यवस्था करें। तभी भारत विचारों से आजाद होगा।

कैसे हुआ वैदिक गणित का विकास

वैदिक गणित के जन्मदाता जगद्गुरु स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थजी महाराज को माना जाता है। वैदिक गणित बहुत पुरानी भारतीय पद्धति है। स्वामीजी ने वैदिक गणित की जानकारी बीसवीं सदी के शुरुआती दिनों में दी थी।

स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र जिनको वैदिक गणित के नाम से जाना जाता है, उन्हें अथर्ववेद के माध्यम से बनाया गया है, लेकिन और विद्वानों का कहना है कि ये सूत्र अभी तक अथर्ववेद के किसी भी पृष्ठ पर नहीं देखे गए पर ऐसा भी तो हो सकता है कि ये सूत्र स्वामीजी के ही संंज्ञान में हो।

वैदिक गणित (Vedic Maths) में मात्र 16 सूत्रों से अंकगणितीय संक्रियाओं को बहुत सरलता से हल किया जा सकता है। इन सूत्रों से गणितीय गणना काफी आसान होती है। इन 16 सूत्रों का संकलन जगद्गुरु स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थजी महाराज द्वारा 1965 में छपी एक किताब से हुआ।

यह 16 सूत्र किसी भी गणना के कई चरणों को छोड़ते हुए परिणाम तक पहुंचने में मदद करता हैं। यदि कोई सवाल बहुत बड़ा है और वह 6,7 चरणों में पूरा होता है तो इन सूत्रों से उसे दो-तीन चरण में ही हल किया जा सकता है।

वैदिक गणित की क्रियाविधि

इस पद्धति का उपयोग आज के समय में ट्रिक के तोर पर हो रहा है, जो प्रतियोगी परीक्षाओ में उपयोग होती है। उदाहरण के लिए यदि आपको 94 और 98 का गुणा करने को दिया जाए, तो आप किस विधि से करेंगे या तो आप कैलकुलेटर की मदद लेंगे या तो पेन पेपर से उसी परंपरागत विधि का उपयोग करेंगे जो विद्यालय में सीखी है। लेकिन इस विधि में काफी समय लगता है।

हमारे पास दो अंक है, 94 और 96। दोनों दहाई के अंक हैं। 10²= 100 दोनों संख्या 100 से छोटी हैं। 94 100 से 6 अंक कम है और 96,4 अंक कम है। सबसे पहले 6 और 4 का गुना कर करते है तो 24 प्राप्त होता है । इसके बाद 94 में 4 और 96 में 6 घटाते है, दोनों में शेष 90 बचता है। 90 को पहले लिखते है और बाद में 24 लिखते है, तो एक पूरी संख्या बनती है 9024 जो 94 और 96 का गुणनफल है।

इसी प्रकार 92और 98 का गुना करते है। पहले 2 का गुणा 8 से करते है, तो 16 प्राप्त होता है फिर 92 में से 2 और 98 में से 8 घटाते है तो 90 प्राप्त होता है किसके बाद 90 को पहले और 16 को बाद में लिखते है, तो एक संख्या प्राप्त होती है। 9016 जो 92 और 98 का गुणनफल होता है।

एक और संख्या 104 और 106 का गुण करने के लिए सबसे पहले 4×6 करते है, तो 24 प्राप्त होता है, इसके बाद ये दोनों अंक 100 से बड़े हैं। इस लिए 104 में 6 और 106 में 4 को जोड़ देते है, इससे प्राप्त अंक 110 हो जाता है, तो पहले 110 और बाद 24 को लिखते है तो एक संख्या बनती है, 11024 जो 104 और 106 का गुणनफल होता है। याद रहे 100 से कम वाले अंक में दहाई के अंक घटाते है और 100 से ज्यादा वाले अंक में दहाई के अंक जोड़ते है।

वैदिक गणित को बढ़ावा मिलना चाहिए

योग गणित के जैसे ही वैदिक गणित है, जो हमारे प्राचीन ज्ञान परंपरा का एक लिवास है। यह हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। जिसकी रक्षा हमारी जिम्मेदारी है और दुनिया में इसके वैभव को फैलाना हमारा कर्तव्य। योग को भी तब तक बढ़ावा नहीं दिया, जब तक विदेशियो ने योग को योगा नाम नहीं दिया। हम भारतीयों की यही परेशानी है कि हम अपनी परंपराओं को तब नहीं पहचानते हैं, जब तक कोई दूसरा उसकी वाहवाही न करे। अब वैदिक गणित को भी इसकी जरुरत है।

वैदिक गणित से ही होगा एक नई जनरेशन का निर्माण

भारत में विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र हर दिन सवालों को हल करने में अपना दिमाग खपाते हैं, परंतु उन्हें कोई वैदिक गणित नहीं सीखते। वैदिक गणित की जानकारी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते समय लगती है। लेकिन तब तक उनका बेस बनने का समय निकल जाता है और अपने सीखे हुए तरीकों पर ही विश्वास करते हैं। इसलिए हमें आगे की पीढ़ी को सुधारने के लिये आज से ही प्रयास करने होंगे।

गणितीय गणना हमें हर कार्य में एक निश्चित पद्धति खोजना सिखाती हैं। यदि हम अपने बच्चों को विद्यालय के स्तर से ही गणित की सभी विधियों को अच्छे तरीके से सीखाते है, तो भारत में सक्षम विद्यार्थियों का एक अच्छा ग्रुप तैयार हो सकता है। इससे हम कई श्रीनिवास रामानुजन पैदा कर सकते है और बच्चों के लिए बोझ जैसी पढाई को आसान बना सकते है।