शहीद-ए-आज़म भगत सिंह (Shaheed e Azam Bhagat Singh), सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar) और शिवराम हरि राजगुरु (Shivram Hari Rajguru) को ने देश के लिए हंसते-हंसते 23 मार्च, 1931 को फांसी के फंदे को चूमा. कहते हैं न इन तीनों के चेहरे पर कोई तनाव था और न माथे पर कोई शिकन. तीनों की फांसी के खिलाफ़ देशभर में आंदोलन हो रहे थे. ब्रितानिया सरकार ने उन्हें एक दिन पहले फांसी दे दी और उनके शव को जलाकर सतलुज में बहा दिया. भारत माता के तीनों सपूत गीत गाते हुए शहीद हुए.
भगत सिंह के जीवन पर बनी कई फ़िल्में
भगत सिंह के जीवन को नाटक और फ़िल्मों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की गई. 1954 में आई ‘शहीद-ए-आज़म भगत सिंह’ भगत सिंह के जीवन पर बनी पहली फ़िल्म में प्रेम अदीब ने भगत सिंह का किरदार निभाया था. 1963 में आई ‘शहीद भगत सिंह’ में शम्मी कपूर ने भगत सिंह का रोल किया था. 1965 में आई ‘शहीद’ में मनोज कुमार भगत सिंह के किरदार में नज़र आये.
2002 में भगत सिंह पर आई दो फ़िल्में
2002 में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के जीवन पर दो फ़िल्में आईं. ‘शहीद-ए-आज़म’ में भगत सिंह का किरदार सोनू सूद ने निभाया. ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’ में भगत सिंह का किरदार अजय देवगन ने निभाया. आपने भगत सिंह पर भले ही सभी फ़िल्में देखी हों लेकिन अगर फ़िल्मी दुनिया में भगत सिंह को याद करते हैं तो अजय देवगन का ही चेहरा आंखों के सामने आता है. फ़िल्म में एक-एक किरदार ने जान डाल दी थी. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भगत सिंह की मां का रोल करने वाली फ़रीदा जलाल के आंसू सच्चे थे, उन्होंने ग्लिसरीन का इस्तेमाल नहीं किया था.
भगत सिंह के भाई से मिले अजय देवगन
साल 2002 में Rediff को दिए एक इंटरव्यू में अजय देवगन ने उस वाक्ये का ज़िक्र किया जब वो भगत सिंह के छोटे भाई, कुल्तार सिंह से मिले थे. अजय देवगन ने बताया कि कुल्तार सिंह फ़िल्म यूनिट के साथ पुणे में ही रुके थे. सिंह ने शहीद-ए-आज़म से जुड़ी कई अहम जानकारियां शेयर की जिससे फ़िल्म बनाने में मदद मिली.
फूट-फूट कर रोने लगे थे अजय देवगन
अजय देवगन ने पुराना क़िस्सा शेयर करते हुए कहा कि किसी ने कुल्तार सिंह से मुझे आशीर्वाद देने को कहा. इस पर कुल्तार सिंह ने जवाब दिया, ‘मैं अपने बड़े भाई को आशीर्वाद कैसे दे सकता हूं? मैं अपने आंसू रोक नहीं पाया.’ अजय ने ये भी बताया कि कुल्तार ने कुछ ऐसी जानकारियां भी दीं जो इतिहास में मौजूद नहीं है.