टारसियर नाम का ऊपर दिख रहा ये छोटा-सा जानवर अपनी बड़ी-बड़ी और चमकीली आंखों के लिए जाना जाता है.
दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाने वाले टायसियर की एक आंख उसके दिमाग के बराबर है. वो आखों की पुतली को घुमा नहीं सकता; अगर उसे अपने आस-पास की किसी चीज़ को देखना है तो उसे अपना पूरा सिर उस तरफ़ घुमाना पड़ता है.
लेकिन टारसियर की ये डरावनी आंखें ही उसकी ख़ासियत भी है, क्योंकि वह इनसे घोर अंधेरे में भी बड़ी आसानी से देख सकता है. चाहे कितना भी अंधेरा क्यों ना हो कीड़े-मकोड़े और छोटे परिंदें टारसियर की नज़र से बच नहीं सकते.
लंदन के नेचरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के प्रोफ़ेसर जेफ़ बॉक्सशैल बताते हैं, “टारसियर को हर चीज़ एक ही रंग की दिखती है. उनकी आंखों की बनावट ऐसी है कि वो रोशनी के हर आख़िरी फ़ोटोन को इकट्ठा कर सकता है.”
“उनकी आंखें रात में देख सकने वाले किसी नाइट-विज़न चश्मे की तरह होती हैं.”
जेफ़ ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ मीशन की ओर से जुलाई में लगाई जाने वाली एक नई प्रदर्शनी के विज्ञान लीड हैं. इस प्रदर्शनी की थीम लाइफ़ इन द डार्क रखी गई है.
ऐसे कई अद्भुत जीव हैं जो अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अनोखे तरीके अपनाते हैं. साथ ही उन्हें अंधेरे में देखने की अविश्वसनीय कला भी आती है.
नेचरल हिस्ट्री म्यूज़ियम की प्रदर्शनी में कुछ ऐसी ही बेहतरीन प्रजातियों को पेश किया जाएगा. इनमें से कुछ आपके लिए जाने पहचाने हैं – जैसे कि चमगादड़.
इनमें से कुछ जीव आपके लिए बेशक नए होंगे क्योंकि उनकी खोज हाल ही में की गई है. इनमें से कई गुफाओं में रहते हैं तो कई समुद्र की गहराइयों में पाए जाते हैं.
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शरीर से निकलती है रोशनी
थ्रेडफ़िन ड्रेगनफ़िश को ही ले लीजिए. ये मछली समुद्र के उस हिस्से में पाई जाती है जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती. इसलिए वहां रोशनी की कमी होती है.
थ्रेडफ़िन ड्रेगनफ़िश के शरीर का निचला हिस्सा एक तरह की रोशनी पैदा करता है. इसके शरीर से निकलने वाली रोशनी की वेवलेंथ और ऐम्प्लिट्यूड आम रोशनी के ही बराबर होता है.
इस रोशनी से ये कहीं भी आसानी से देख पाती है. इससे उसे शिकारी से बचने में मदद भी मिलती है.
रोशनी पैदा करने वाले ख़ास अंग के अलावा थ्रेडफ़िन ड्रेगनफ़िश की आंखों के पीछे दो ‘हेड लैंप’ भी होते हैं. ये हेड लैंप ऑन-ऑफ हो सकते हैं.
जेफ़ कहते हैं, “अगर आप समुद्र में बहुत नीचे हैं और अपको कोई चमकती हुई चीज़ नज़र आती है तो वो कोई शिकारी हो सकता है या कुछ ऐसा हो सकता है जिसे आप खा सकते हैं या वो संभोग के लिए कोई संभावित साथी हो सकता है.”
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गुफाओं में रहने वाले जीव
गुफाएं भी एक ऐसी जगह है जहां रोशनी नहीं पहुंचती. इस प्रदर्शनी में गुफाओं में रहने वाले जीव भी होंगे. ऐसे ही जीवों में से एक है रिमेपेड.
रिमेपेड समुद्र के नीचे मौजूद गुफाओं में रहते हैं.
जेफ़ बताते हैं कि ये जीव अधिकतर कैरिबियन, युकाटन, मेक्सिको की खाड़ी में पाए जाते हैं.
“वो अंधे होते हैं. उनके लंबे-लंबे ऐंटिना होते हैं और एक पर्दा होता है जिससे उन्हें अपने पास आ रहे शिकारी का पता चल जाता है. उन्हें पानी में हो रही हलचल का पता चल जाता है.”
अगर जानवर भी इंसान की तरह अक़्लमंद हो जाएं, तो…?
इस प्रदर्शनी में चूहों के बारे में भी बताया जाएगा जो रात में अपनी मूछों की मदद से आस-पास के माहौल का पता लगाते हैं.
मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन विश्वविद्यालय की रोबिन ग्रैंट ने अपनी स्टडी में पता लगाने की कोशिश की कि चूहों की मूछें आख़िर किस तरह काम करती हैं.
कैमरे से देखने पर उन्होंने पाया कि चूहें एक सेकेंड में 10 बार अपनी मूछें आगे-पीछे घुमाते हैं जिससे उन्हें पता चलता है कि आगे क़दम बढ़ाना कितनी सुरक्षित है.
रोबिन बताती हैं, “चूहों की आंखें काफ़ी बड़ी होती हैं, लेकिन रात में वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते. वो अपनी मूछों की मदद से आस-पास की चीज़ों का पता लगाते हैं.”
“अगर वो पता नहीं लगा पाते तो वो कूद जाते हैं. कूदते वक़्त भी वो अपनी मूछों का इस्तेमाल करते हैं.”
हाल ही में हुई एक स्टडी से पता चला है कि मानव गतिविधियां कई स्तनधारी जीवों को अंधेरे में धकेल रही हैं.
छोटे जानवरों से लेकर बड़े अफ़्रीकी हाथियों तक कई जीव इंसानों से दूरी बनाने के मक़सद से रात में निकलते हैं.
इंसानी आबादी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में जानवरों का रात को विचरना दोनों का अस्तित्व बनाए रखने में मददगार है, लेकिन इसके कई हानिकारक परिणाम भी हो सकते हैं.
कई जानवर देखकर शिकार करते हैं. अगर उन्हें रात को शिकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा तो वो शायद शिकार ही ना कर पाएं. ऐसे में उनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा.
नेचरल हिस्ट्री म्यूज़ियम की लाइफ़ इन द डार्क प्रदर्शनी 13 जुलाई से शुरू होगी और 6 जनवरी तक चलेगी.