सोहेल ने अपनी मां को क्रोशिया चलाते तो देखा था लेकिन उनके घर पर कोई स्वेटर नहीं बुनता था.स्वेटर बुनना बतौर हॉबी शुरू किया था और इसे हॉबी की तरह ही रखना चाहते हैं.
‘अगर लड़कियां बाइक चला सकती हैं तो लड़के भी स्वेटर बुन सकते हैं.’ हंसते हुए सोहेल नरगुंद (Sohail Nargund) ने जवाब दिया.
इंडिया टाइम्स हिंदी की कोशिश है आप तक कुछ ज़िन्दादिल लोगों की कहानियां लाने की. और इस कड़ी में आज हम मिलेंगे, एक ऐसे इंजीनियर से जो कैब में बैठकर नेटफ़्लिक्स नही देखता, स्वेटर बुनता है.
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Anxiety होने लगी तो उठा लिया ऊन कांटा
पैंडमिक और लॉकडाउन की वजह से ही भारत समेत दुनिया के कई लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं. पहले के मुकाबले लोग मानसिक तौर पर ज़्यादा अस्वस्थ महसूस कर रहे हैं. सोहेल को भी लगभग एक साल पहले थोड़ी Anxiety होने लगी. सोहेल ने कहीं पढ़ा की बुनाई (Knitting) करने से उन्हें मदद मिलेगी. Hobbies की तरफ़ हमेशा से आकर्षित रहे सोहेल ने एक और हॉबी शुरू करने की सोची, स्वेटर बुनने की हॉबी. उन्होंने ऑनलाइन ही ऊन-कांटे ऑर्डर किए और यूट्यूब से सीखना शुरू किया.
रोज़ाना 1-2 घंटे का अभ्यास
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात तें सिल पर परत निशान. बिना अभ्यास के कुछ भी नहीं हो सकता. रस्सी से भी पत्थर पर तभी निशान बनते हैं, जब रस्सी को बार-बार पत्थर पर रगड़ा जाए. यूट्यूब ट्यूटोरियल्स से सीखते हुए सोहेल ने रोज़ कम से कम एक घंटा बुनाई का अभ्यास करने में लगाए. सोहेल ने बताया कि उन्होंने तीस दिनों तक अभ्यास किया और बुनाई की बारीकियां सीखी. बारीकियां सीखने के बाद उन्होंने एक स्वेटर बनाना शुरू किया, उसे पूरा किया और उसकी तस्वीरें अपने पर्सनल इंस्टाग्राम पर डालीं.
दोस्तों ने की बुने स्वेटर की मांग
सोहेल के शब्दों में, ‘स्वेटर पूरा बनाने के बाद मैंने उसकी तस्वीरें अपने पर्सनल इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल पर डालीं. मेरे ज़्यादातर दोस्तों ने रट लगा दी, हमारे लिए भी बुन दो यार. पहले तो मैंने मना किया कि नहीं मैं अपनी बहन के लिए बुन रहा हूं, बेचने के लिए नहीं.’ सोहेल ने बताया कि इसके बाद वो एक अपनी बहन के लिए ही दूसरा स्वेटर बुन रहे थे लेकिन उनकी एक दोस्त ने उनसे कहा कि वो स्वेटर खरीदना चाहती हैं. सोहेल से स्वेटर का दाम पूछा गया लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि क्या दाम रखा जाए. उन्हें कहा, 900 रुपये लेकिन उनकी दोस्त नहीं मानी. आखिर में सोहेल को लगा कि दोस्त ने 1700 दे दिए लेकिन बाकि कोई बुने स्वेटर के लिए 1700 रुपये नहीं देगा. सोहेल ने अपना दूसरा स्वेटर 650 रुपये में दिया.
स्वेटर बुनने वाला बेंगलुरू का इंजीनियर
स्वेटर बिकने की बात हो रही थी तो सवाल तो लाज़मी था, मैंने सोहेल से पूछ दिया क्या अब स्वेटर बुनना ही बिज़नेस है? सोहेल ने कहा, ‘नहीं नहीं, मैं बेंगलुरू में फुल टाइम इंजीनियर की नौकरी करता हूं. और बुनाई दिन में 2-3 घंटे. शाम को या कभी मेरे को टाइम मिला बस में. 2 घंटे बस में सफ़र करता हूं.’ बेंगलुरू के ट्रैफ़िक में इंसान रिटायरमेंट प्लान कर ले, इस जोक पर हम हंसे और सोहेल ने बताया कि उनका एक रील है बेंगलुरू ट्रैफ़िक में बुनाई करते हुए. इस रील ने ही दुनिया को उनके बारे में बताया. सोशल मीडिया की शक्ति अपार है, ब्रो! सोहेल का कहना है कि वो फ़ुल टाइम जॉब नहीं छोड़ना चाहते, स्वेटर बुनना बतौर हॉबी शुरू किया था और इसे हॉबी की तरह ही रखना चाहते हैं. सोहेल के शब्दों में, ‘अगर में कभी ऑर्डर ओपन भी करता हूं तो तीन महीने के लिए ही लेता हूं, जिससे मुझ पर ज़्यादा प्रेशर न हो. ‘
न मां, न दादी, न नानी सोहेल के परिवार में कोई स्वेटर नहीं बुनता था
उत्तर भारत में रहने वालों की स्मृतियों का अहम हिस्सा है स्वेटर. हर किसी ने अपने घर में मां या दादी-नानी को स्वेटर बुनते देखा ही है. सर्दियों में मोहल्ले की आंटियां साथ मिलकर छत पर धूप सेंकती थी, स्वेटर बुनती थी, ये भी एक कॉमन याद है. सोहेल ने अपनी मां को क्रोशिया चलाते तो देखा था लेकिन उनके घर पर कोई स्वेटर नहीं बुनता था. अपने परिवार के पहले Knitter हैं सोहेल.
जॉब और बुनाई में बैलेंस बनाकर चलते हैं
सोहेल अपनी नौकरी और बुनाई में बैलेंस बनाकर चलते हैं. बुनाई अब उनके लिए टाइम बिताने का सबसे अच्छा तरीका है. अब सोहेल को एक एवरेज साइज़ स्वेटर बुनने में 16-17 दिन ही लगते हैं. सोहेल ने सबसे पहले अपनी बहन के लिए स्वेटर बुना. जैसे मां या दादी-नानी नंबर वाले कांटों का इस्तेमाल करती हैं, सोहेल वैसे कांटों का इस्तेमाल नहीं करते हैं. सोहेल के शब्दों में, ‘भारत में लोगों को लगता है वही बुनाई के कांटे हैं. मैंने विदेश के कई बुनाई करने वालों को फ़ोलो करता हूं, वो सर्कुलर नीडल का इस्तेमाल करते हैं. इससे बिना सिलाई के पूरा स्वेटर बनाया जा सकता है.’ बिगीनर्स के लिए टिप्स देते हुए सोहेल ने एक पते की बात कही, ‘अभी मेटल का नीडल यूज़ करेंगे तो वो बहुत स्लिप करेगा, काफ़ी चिढ़ होगी न फिर. लकड़ी वाले नीडल में बिल्कुल भी स्लिप नहीं होता.’
परिवार का मिला पूरा समर्थन
अब लड़का स्वेटर बुनने लगे तो आमतौर पर घरवाले ताने ही देंगे, सोहेल के साथ ऐसा नहीं हुआ. उनके घरवालों ने उन्हें पूरा समर्थन दिया. सोहेल के शब्दों में, ‘मेरे को DM आते हैं कि हमलोग बुनाई करते हैं लेकिन पोस्ट करने की हिम्मत नहीं होती. मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहता हू कि बुनाई सिर्फ़ लड़कियों के लिए नहीं है. वो लोग जब बाइक चला रहे हैं तब तो कुछ बोल नहीं रहे हो. वो कूल लगते हैं, हम बुनाई क्यों नहीं कर सकते फिर?’
बुनाई शुरू करने वालों के लिए सोहेल ने सिर्फ़ एक शब्द में जवाब दिया- Patience!
पेशकश कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में बताएं. हम इस तरह की खूबसूरत कहानियां लाते रहेंगे.